भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में संसदीय समिति को भेजे गए जवाब में एक नोट के जरिए कहा कि बैंकिंग धोखाधड़ी से संबंधित हाई-प्रोफाइल मामलों की एक लिस्ट कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई थी। लेकिन, इस लिस्ट पर आगे कुछ कार्रवाई हुई या नहीं, इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ी का आकार बढ़ रहा है, हालांकि एनपीए की कुल मात्रा के मुकाबले इसका आकार छोटा है।

राजन ने आगे कहा, कि  ‘जब मैं जांच एजेंसियों के लिए धोखाधड़ी के मामलों की शुरुआती रिपोर्टिंग के लिए गवर्नर था, तब आरबीआई ने धोखाधड़ी कंट्रोल रूम बनाया था। मैंने पीएमओ को हाई-प्रोफाइल मामलों की एक लिस्ट भी भेजी कि हम कम से कम एक या दो के खिलाफ समन्वयित कार्रवाई करें। मुझे नहीं पता कि इस मामले में आगे क्या हुआ। यह ऐसा मामला था जिस पर तेजी से कार्रवाई होनी चाहिए थी।’

उन्होंने बताया कि सिस्टम हाई-प्रोफाइल धोखेबाजों को पकड़ने में नाकाम रहा है। उन्होंने कहा धोखेबाजी एनपीए से अलग है। ‘एक के बाद एक फ्रॉड होते हैं तो जांच एजेंसियां बैंकों को दोषी ठहराती हैं, इसके बाद बैंक कर्ज देना कम कर देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अगर एक बार लेन-देन के लिए धोखाधड़ी का लेबल लगा, तो जांच एजेंसियों दोषियों को पकड़े बिना उनका उत्पीड़न करने लगेंगी।’

आरबीआई के बेहतर करने के सवाल पर रघुराम राजन ने कहा कि आत्म-मूल्यांकन करना मुश्किल है लेकिन बैंकों द्वारा ऋण देने के शुरुआती दिनों में आरबीआई को अधिक सवाल करने चाहिए थे। अंत में उन्होंने कहा कि आरबीआई गैर अनुपालन बैंकों पर दंड लागू करने में अधिक निर्णायक हो सकता था।

आपको बता दें कि सितंबर 2016 तक तीन साल आरबीआई गवर्नर रहने वाले रघुराम राजन वर्तमान में शिकागो यूनिवर्सिटी में इकॉनोमिक्स के प्रोफेसर हैं।

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