एक समय था जब पेट्रोल-डीजल के दामों को लेकर कांग्रेस सरकार को हमेशा घेरा जाता था। विपक्ष में बैठी भाजपा हमेशा इस बात का तंज कसती थी कि मनमोहन सरकार महंगाई पर काबू पाने में बिल्कुल नाकाम साबित हुई है। लेकिन आज जब खुद भाजपा सत्ता पर काबिज है तो वो भी पेट्रोल-डीजल के दामों पर नियंत्रण पाने में असफल है। लेकिन अगर दोनों सरकारों में अंतर करें तो एक अंतर यह जरूर है कि मनमोहन सरकार में जनता को एहसास हो जाता था कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं लेकिन मोदी सरकार बड़ी ही बारीकी से दामों को बढ़ा रही है। जनता को पता ही नहीं चला कि उसकी गाड़ी में डल रहा तेल उसके मेहनत के कमाई को कितना चूस रही है।
पेट्रोल-डीजल की कीमतें 2014 के बाद अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं। मुंबई में जहां लोग 80 रुपए में पेट्रोल खरीद रहे हैं, तो दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत 70 रुपए है। जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें लगातार घटी हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें पिछले तीन साल के दौरान 50 फीसदी से ज्यादा कम हो गई हैं, जबकि भारत में पेट्रोल-डीजल का दाम लगातार बढ़ रहा है। इसमें सबसे बुरा हाल महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का है, जहां पर पेट्रोल लगभग 79.48 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। जबकि दिल्ली में पेट्रोल 70.38 रुपए और डीजल 58.72 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। बता दें कि जब क्रूड ऑयल 105 डॉलर प्रति लीटर था तब पेट्रोल की कीमत 70 रुपए प्रति लीटर थी। अब जब क्रूड के दाम गिरकर 48.18 डॉलर प्रति लीटर पर आया है तो तेल का दाम मुंबई और दिल्ली में 70 से भी ऊपर चला गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय तेल कंपनियों को एक लीटर पेट्रोल तैयार करने में 31 रुपए के आसपास खर्चा आता है जबकि जनता को भारी टैक्स लगाकर 70 से 80 रुपए तक का तेल बांटा जा रहा है।
याद दिला दें कि केंद्र सरकार ने 16 जून से पेट्रोल-डीजल को लेकर डाइनैमिक प्राइसिंग प्रणाली अपनाया था। इस प्रणाली में रोजाना बहुत छोटे स्तर पर तेल के दाम घटेंगे और बढेंगे यानि पैसों में दाम बढ़ेंगे और घटेंगे। जाहिर है कि पैसों में हो रही बढ़ोत्तरी और कटौती का जनता को एहसास नहीं हो पाएगा कि महंगाई बढ़ रही है या घट रही है। जबकि ऑयल मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि रोज कीमतें तय करने का फायदा आम लोगों को मिलेगा लेकिन हो इसका ठीक उलटा रहा है।