नोटबंदी में जब पूरा विपक्ष मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ था तो सीएम नीतीश कुमार ने पीएम मोदी के कदम को सही ठहरा कर सभी विपक्षी दलों को हैरत में डाल दिया था। लेकिन अब वहीं नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी के साथ हैं लेकिन उन्होंने नोटबंदी के नतीजों को लेकर अप्रत्यक्ष तौर पर मोदी सरकार के ऐक्शन पर सवाल उठाए हैं। बेबाक बयानों और भ्रष्टाचारियों के लिए शामत वाले ऐक्शन लेने वाले नीतीश ने नोटबंदी की विफलता के लिए बैंकों को जिम्मेदार ठहराया। कहा कि बैंकों की जटिल भूमिका के कारण नोटबंदी का लाभ जिस कदर आम लोगों को मिलना  चाहिए था, उतना नहीं मिल पाया। कुछ खास लोगों ने नोटबंदी में अपना पैसा एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर लिया। ऐसे में नोटबंदी के रिजल्ट पर नीतीश के ताजा दर्द यूं ही नहीं हैं, इसके सियासी मायने भी हैं।

पटना में राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति  द्वारा आयोजित समीक्षा बैठक में नीतीश कुमार ने अपने बेलाग बयानों से देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाने  का दावा करने वाले बैंक अधिकारियों की पोल खोलकर रख दी। उन्हें जमकर आईना दिखाया। कहा कि, छोटे लोगों को लोन देने के लिए विशिष्ट बननेवाले बैंक अधिकारियों को ताकतवर लोगों के भागने तक की भनक नहीं लगती। जाहिर है कि, बैंकों का काम  मजह, जमा, निकासी और कथित तौर पर पहुंच वालों या सुपात्रों को लोन देना ही नहीं रह गया है।

नीतीश का ये दर्द अचानक उभरना बीजेपी को चिंतित करने वाला है। नोटबंदी के बाद कई बैंकों के बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका संदिग्घ पाई गई। जो शायद नोटबंदी को विफल बनाना या फायदा कमाने में व्यस्त थे। ऐसे में नीतीश के बयानों से केंद्र की एनडीए सरकार थोड़ी असहज जरूर होगी। क्योंकि, एनडीए और खासकर पीएम मोदी नोटबंदी के फैसले को हमेशा बड़ी उपलब्धि के रूप में गिनाते आए हैं।जाहिर है समय बैंकिंग की जीर्ण-शीर्ण व्यवस्था के कील कांटे दुरूस्त करने की है।क्योंकि, सवाल सिस्टम, देश और जरूरतमंदों का है।

—कुमार मयंक, एपीएन

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