उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, असम जैसे राज्यों से लोग दूसरे राज्यों में रोजी रोटी कमाने जाते हैं क्योंकि इन राज्यों में रोजगार के अवसर बहुत ही कम है। यही कारण है कि, लॉकडाउन के समय अपना राज्य छोड़ कर दूसरे राज्य में कमाने गए मजदूरों पर आफत आन पड़ी थी।

लॉकडाउन में मजदूर खाने को मुस्तार हो गए थे। सर छत चली गई थी। मजदूरों के इन्हीं संकट को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ सिस्टम को सभी राज्यों में लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया था।

सरकार की इस पहल से श्रमिकों, मजदूरों, शहरी गरीबों, घरेलू नौकरों जैसे लोगों को सीधा फायदा मिलेगा। देश के किसी भी हिस्से में मजदूरों को उनके का राशन मिलता रहेगा। वहीं इलेक्ट्रॉनिक प्‍वाइंट ऑफ सेल (POS) से लैश फेयर प्राइस शॉप से अनाज का कोटा ले सकेंगे।

मोदी सरकार की इस योजना का विस्तार अब सभी राज्यों में हो चुका है। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और असम में अभी तक इसके डिजिटल सिस्टम को लागू नहीं किया गया है। हालांकि दिल्ली और पश्चिम बंगाल डिजिटल सिस्टम के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

वन नेशन वन राशनकार्ड सिस्टम को लागू करने के पीछे मोदी सरकार का मकसद है कि सभी को उनके कोटे का अनाज मिले। राज्यों को भी योग्य लाभार्थियों की पहचान करने के साथ नकली, डुप्लीकेट या अयोग्य कार्डधारकों की भी पहचान करना आसान होगा।

लाभार्थियों का आधार कार्ड राशनकार्ड से लिंक कर दिया जाता है। इसके बाद बॉयोमीट्रिक के जरिये लाभार्थियों को उनके कोटा का अनाज मुहैया कराया जाता है। अगर कोई राज्य सरकार अपने यहां के सभी लाभार्थियों के आधार कार्ड को राशन कार्ड से लिंक कर देती है और सभी फेयर प्राइस सेल के ऑटोमेशन में सफलता हासिल कर लेती है तो अपने जीडीपी का 0.25 फीसदी ओपन मार्किट से अतिरिक्त कर्ज ले सकती है।

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