कांवड मेला खत्म होने के बाद धर्मनगरी की सूरत बदल गई है। हर ओर फैले कूडे़ के ढेर और गंदगी का आलम इस कदर है कि लोग घर से निकलने में हिचक रहे हैं। जिला प्रशासन के लिए इस गंदगी से निपटना चुनौती बना हुआ है। क्योंकि बरसात के चलते गंदगी से महामारी फैलने का खतरा भी सता रहा है। सावन की महाशिवरात्रि पर हरिद्वार में हर की पैड़ी और गंगा किनारे लगा मेला खत्म हो गया है। गंगा जल भरने के लिए उमड़े कांवडियों का रेला भी अब कहीं नजर नहीं आ रहा। अब कुछ नजर आ रहा है तो है हर तरफ फैले गंदगी का अंबार।

कांवड़ मेला खत्म होने के बाद शहर की ये ही सच्चाई रह गई है। गंदगी के ढेर को हटाने और शहर को स्वच्छ बनाने में जिला प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं। क्योंकि गंदगी का आलम ये है कि स्थानीय लोगों का घरों से निकलना मुश्किल हो गया है। बरसात के इस मौसम में महामारी का खतरा भी सताने लगा है। हर साल सावन की महाशिवरात्रि से पहले कुछ ऐसा ही होता है। लेकिन जिला प्रशासन इस तरह के खास मौकों पर कचरा प्रबंधन के लिए कोई ठोस उपाय करने में अब तक सफल नहीं हो सका है। हालांकि, हर बार की तरह इस बार भी जिला प्रशासन गंदगी से निपटने के बड़े बड़े दावे करने में पीछे नहीं है।

स्वच्छता मिशन में हरिद्वार का स्थान यूं भी कोई अव्वल नहीं है। आम दिनों में भी नगर निगम शहर को स्वच्छ रखने पूरी तरह से सक्षम नहीं रहता है। जबकि, कांवड़ मेले को छोड़ भी दें ते हर की पैड़ी पर हर समय श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। धार्मिक नगरी होने के नाते हरिद्वार में भी भक्तों का आना-जाना बना ही रहता है। ऐसे में कचरा प्रबंधन के लिए स्थायी समाधान तलाशे जाने की जरूरत है। ताकि कांवड़ मेले जैसे आयोजनों के बाद लोगों को इस तरह के हालात का सामना ना करना पड़े।

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