उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में बाढ़ विकराल रूप लेते जा रही है। बाढ़ की विभिषिका में लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ रहा है। घर-बार छोड़कर लोग सरकारी स्कूलों और दूसरे स्थानों पर शरण लेने को मजबूर हैं। सरकारी मोहकमा बाढ़ पीड़ितों तक हर मदद पहुंचाने का दावा करता है पर कानपुर देहात में प्रशासन के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। पीड़ित परेशान हैं और अधिकारी नदारद। स्थानीय लोगों और समाजसेवियों की तरफ से कुछ मदद जरूर पहुंचाई जा रही है।

कानपुर देहात के रसूलाबाद तहसील के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ ने कहर बरपा रखा है। बाहर की सड़कों से लेकर गांव की गलियां तक दरिया बनी हुई हैं। लोगों के घर आंगन पानी में डूबे हैं। घरों में रखे अनाज और समान पानी में भीगे हुए हैं। बाढ़ से बेहाल लोगों पर बारिश ने भी सितम ढा रखा है। लगातार हो रही बरसात से लोगों के घर गिरने की कगार पर पहुंच गए हैं। जान जाने के डर से लोग घर बार छोड़कर स्कूल और दूसरे सरकारी भवनों में शरण लिए हैं।

भैसाया पंचायत के महेंद्र नगर बंगाली डेरा के 100 से ज्यादा परिवार के लोग एक स्कूल में शरण लिए हैं। लेकिन उनके पास खाने पीने को कुछ नहीं है। मदद के नाम पर प्रशासन ने इन लोगों के साथ मजाक ही किया है। बारिश और बाढ़ से दर बदर हुए ग्रामीणों की जिला प्रशासन ने भले ही सुध नहीं ली है लेकिन स्थानीय लोगों और समाजसेवियों ने इनके खाने पीने की व्यवस्था की है। समाज सेवी गोपाल गुप्ता अपने स्तर पर इन लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया है। भंडारा चलाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि बाढ़ पीड़ितों का प्रशासन को ख्याल नहीं है। एसडीएम आए थे, दो बोरी चावल और दो-दो रुपये के बिस्किट के कुछ पैकेट दे गए। लेकिन उन्होंने ये जानने की कोशिश तक नहीं की कि बाढ़ पीड़ित चावल पकाएंगे तो कैसे और किसी तरह पकाने का इंतजाम हो भी गया तो उसे खाएंगे कैसे।

बाढ़ पीड़ितों के प्रति प्रशासन की इस बेरहमी पर सीडीओ बात करने के लिए मिले तो बहुत ही चालाकी से सरकारी महकमों की बेशर्मी पर पर्दा डाल दिया। ऐसा नहीं है कि इस इलाके में बाढ़ पहली बार आई है। ये इलाका ही ऐसा है कि हर बरसात के सीजन में पानी भर जाता है। इस बार बारिश ज्यादा हुई तो हालात कुछ ज्यादा बिगड़ गए हैं। और इस बिगड़े हालात ने प्रशासन की तैयारियों की पोल खोल के रख दी है।

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