सरकार देशभर में सब पढ़ें, सब बढ़ें और स्कूल चले हम का नारा बुलंद कर रही है। सरकार का कहना है कि उसकी कोशिश है कि कोई भी बच्चा निरक्षर ना रहे। लेकिन सरकार जो कहती है क्या वैसा करती भी है। इसका जायजा लेने के लिए हम देश के प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के गांव में शिक्षा व्यवस्था का जायजा लेने का फैसला किया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का गांव परौख, कानपुर देहात में पड़ता है। जब हम परौख गांव के सरकारी स्कूल पहुंचे तो स्कूल की इमारत हमें कमोवेश ठीक ठाक नजर आई। यहां एक ही परिसर में परौख गांव का प्राथमिक स्कूल और पूर्व माध्यमिक स्कूल चल रहा है। स्कूल का परिसर चारदीवारी से घिरा है। हालांकि बारिश होने पर स्कूल परिसर में पानी भर जाता है। जब हम यहां पहुंचे तो स्कूल परिसर में साफ-सफाई की कमी भी हमें देखने को मिली।  इस अव्यवस्था को देखने के बाद हम स्कूल के अंदर दाखिल हुए तो क्लास रूम में हमें बच्चे जमीन पर बैठे दिखे।

राष्ट्रपति के गांव में सरकार अधिकारियों की उदासीनता हैरान करने वाला है। सरकार बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क का इंतजाम तक नहीं कर सकी है। यहीं वजह है कि सर्दी, गर्मी हो या बरसात बच्चे इसी तरह जमीन पर टाट-पट्टी बिछा कर पढ़ने को मजबूर हैं।  हालांकि एक संस्था ने रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने पर पिछले सत्र में कुछ बच्चों को स्पेशल बैग बांटे थे जिसके साथ छोटा सा टेबल भी लगा हुआ है। लेकिन ये स्पेशल बैग इस सत्र में बच्चो को नहीं दिया गया।

देश के राष्ट्रपति के गांव में बच्चों की शिक्षा के प्रति सरकार की कोई खास गंभीरता नजर नहीं आती। हालांकि यूनिसेफ की कोशिशों से गांव के इस सरकारी स्कूल में शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर संवारने के कोशिश की गई है। स्कूल में स्मार्ट क्लास की व्यवस्था की गई है और स्कूल के लैब में बच्चों के लिए तरह-तरह की सुविधाएं दी गई है। लेकिन इनका रख रखाव यहां सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। जब एपीएन की टीम इस स्कूल में पहुंची तो हमारी उत्सुकता सरकारी स्कूल में स्मार्ट क्लास जैसी आधुनिक सुविधा देखने की हुई। लेकिन स्मार्ट क्लास तो बंद पड़ा था। हमारे कहने पर स्मार्ट क्लास का ताला खोला गया लेकिन यहां तो प्रोजेक्टर था ही नहीं और जो मशीने रखी हुई थी वो बता रही था कि संसाधनों के रख-रखाव में कितनी लापरवाही बरती जाती है।

आपको जानकर हैरत होगी कि राष्ट्रपति के गांव के इस स्कूल में बिजली का कनेक्शन कटा हुआ है। बिजली नहीं होने से स्मार्ट क्लास भी नहीं चल पा रहा है। स्कूल में शुरू हुए स्मार्ट क्लास में जो प्रोजेक्टर लगा है उसकी बैट्री सोलर लाईट से चार्ज होती है लेकिन बरसात में धूप कम निकलने की वजह से बैट्री चार्ज नहीं होती। ऐसे में प्रोजेक्टर प्रिंसिपल के घर में रखा हुआ है और स्मार्ट क्लास ठप पड़ा है।

राष्ट्रपति के गांव के इस स्कूल में समस्याओं का अंबार लगा है। जब हम स्कूल की तहकीकात कर रहे थे उसी दौरान मिड डे मिल का वक्त हो गया। बच्चों को मिड डे मिल दिया गया और बच्चे जमीन पर बैठ कर खाना खाने लगे। लेकिन खाने के बाद जो हमने देखा वो भी चौंकाने वाला था। बच्चे खाने के बाद खुद ही अपना बर्तन धो रहे थे। जबकि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत बच्चों से ऐसा काम कराए जाने की सख्त मनाही है। अब राष्ट्रपति के गांव में ही बच्चों से ऐसा काम कराया जाएगा तो दूसरे स्कूलों की बात करना ही बेमानी है। जब सरकार राष्ट्रपति जैसी बड़ी हस्ती के गांव में शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त नहीं करा सकी है तो सामान्य गांवों के स्कूलों को कौन पूछने वाला। यहां तो सब कुछ चलता है के तर्ज पर शिक्षा व्यवस्था भी चलाई जा रही है।

एपीएन ब्यूरो

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