त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के एक फैसले से गरीब बच्चों और उनके अभिभावकों के ऊपर चारों तरफ से मार पड़नी तय है…दरअसल, सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को त्रिवेंद्र सरकार अब सीधे किताबें नहीं देगी…इसके लिए सरकार बच्चों के खातों में पैसे डालने जा रही है…सरकार ने अब सभी बच्चों के लिए बैंकों में खाता खुलवाना अनिवार्य कर दिया है, जिससे बच्चों के अभिभावक परेशान हैं…ऐसे में गरीब बच्चों के अभिभावकों के सामने दोहरी मुसीबत आन पड़ी है…क्योंकि, शिक्षा विभाग ने किताब की राशि बच्चों के खाते में जमा करने का फरमान सुना दिया है…

दूसरी तरफ हजारों बच्चे ऐसे हैं जिनका बैंक अकाउंट खुलना बेहद मुश्किल हो गया है क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं है…अब ऐसे बच्चे शिक्षा पाने से वंचित हो सकते हैं…त्रिवेंद्र सरकार का ये फरमान इन बच्चों की पढ़ाई पर और बड़ी मुसीबत बनकर टूट पड़ा है…क्योंकि, बच्चों का बैंक खाता खुलने पर उसे आधार से लिंक करना भी अनिवार्य है…जिसके बाद से अब सरकारी स्कूलों में मुफ्त की किताबों से पढ़ाई करने वाले गरीब बच्चों को भविष्य पर संकट मंडराने लगा है…

वहीं, खंड शिक्षाधिकारी के मुताबिक, अब तक सरकार सरकारी स्कूलों में बढ़ने वाले बच्चों को कक्षा एक से 12 तक की किताबें मुफ्त उपलब्ध कराती थीं…लेकिन अब डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना (डीबीटी)के तहत बच्चों के किताबों के पैसे सीधे उनके बैंक खातों में डाले जाएंगे…

तीसरी मुसीबत भी इन बच्चों और उनके अभिभावकों के सिर पर मंडरा रही है…जानकारों के मुताबिक, शिक्षा विभाग बच्चों के बैंक अकाउंट्स में उनके शैक्षणिक सत्र की किताबों के एवज में महज 150 रुपये से लेकर 205 रूपये तक ही ट्रांसफर करेगी…ऐसे में अब बच्चों को स्कूलों में पढ़ने और अपना भविष्य बनाने की बजाय अपने अभिभावकों के साथ बैंक के चक्कर काटने पड़ेंगे…

चौथी मुसीबत ये कि इन पचड़ों में पड़कर आर्थिक रुप से कमजोर अभिभावक छुट्टी लेकर बैंक दौड़ते रहेंगे तो उनके ऊपर दोहरी मार पड़नी तय है…उनके लिए अपने घर का खर्च तक चलाना मुश्किल हो जाएगा और इन बच्चों की पढ़ाई पर जो मार पड़ेगी वो अलग से…ऐसे में पीएम मोदी के उस नारे का क्या होगा, जिसमें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और सब पढ़ेंगे-सब बढ़ेंगे के साथ ही सबका साथ-सबका विकास के बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं…त्रिवेंद्र सरकार के इस फैसले से उत्तराखंड के गरीब बच्चों का भविष्य चौपट होगा या उज्जवल ये बताने की जरुरत नहीं है।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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