झारखंड का लातेहार जिला लंबे समय से नक्सल प्रभावित रहा है। पुलिस और सुरक्षाकर्मी लगातार इस इलाके में नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रही है, लेकिन नक्सलियों की कमर टूटती नहीं दिख रही है। नक्सलियों के कारण लातेहार के ग्रामीण इलाकों में विकास कार्यों पर भी असर पड़ रहा है। नक्सली नहीं चाहते कि इस इलाके में विकास की रोशनी पहुंचे। उन्हें मालूम है कि इलाके में विकास कार्य होते हीं ग्रामीणों पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। नक्सलियों की इस नीति के कारण हीं लातेहार के जिरम गांव के लोग विकास से कोसों दूर है।

लातेहार शहर और प्रखंड कार्यालय तक जाने के लिए लोगों को एक बरसाती नदी पार करना पड़ता है। नदी पर कोई पुल न होने के कारण बरसात के दिनों में गावंवाले रोज अपनी जान जोखिम में डाल कर  नदी पार करते हैं। चाहे ग्रामीण हो या बच्चे लोग जान जोखिम में डालकर अपने गांव से शहर और शहर से गांव जाते हैं। यहां अगर कोई वाहन पार कराना हो तो इसके लिए लोगों की सहायता लेनी पड़ती है। लोग जान जोखिम में डालकर मोटरसाइकिल पार कराते हैं। खासकर जब बरसात का मौसम हो तो इनके लिए परेशानी और बढ़ जाती है।

दरअसल, यहां के नदी पर पुल बनाने की मांग सालों से चली आ रही है। लोगों का कहना है कि नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण यहां नक्सली पुल का निर्माण नहीं होने देते हैं। नतीजतन बरसात के मौसम में जब नदी में पानी का फ्लो बढ़ जाता है तो वह लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाता है।

गांव के ग्रामीण ने बताया कि कुछ साल पहले पुल बनाने का काम शुरु भी हुआ था, लेकिन नक्सलियों ने काम रुकवा दिया। उन्होंने मजदूरों को डरा धमका कर वापस भेज दिया और निर्माण में लगी मशीनों को भी आग के हवाले कर डाला। ठेकेदार को काम बंद करने की धमकी दी गई। उसके बाद काम बंद हुआ तो आज तक चालू नहीं हो सका है।

यहां के लोगों ने कई बार पुल निर्माण के लिए आंदोलन भी किया लेकिन हर बार भरोसा देकर मामला टाल दिया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि एक तरफ जहां नक्सली विकास की रौशनी गांवों में पहुंचने नहीं दे रहे हों और दूसरी तरफ सरकारी अफसर भी अपनी जान खतरे में बताकर गावंवावों की मुश्किलें दूर करने को तैयार न हों तो फिर इन गांववावों का दर्द कौन सुनेगा ।

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