Google पर पिछले एक हफ्ते में लग चुका है 2,274 करोड़ रुपए का जुर्माना, जानिए आखिर भारत में लगातार क्यों लगाया जा रहा है गूगल पर जुर्माना

प्रतिस्पर्धा आयोग के मुताबिक Google अपने प्ले स्टोर पालिसी के तहत एप डेवलपर्स को भुगतान के लिए गूगल प्ले बिलिंग सिस्टम का उपयोग करने पर बाध्य करता था और बिलिंग के किसी अन्य माध्यम का विक्लप नहीं देता है. इसके चलते गूगल पर 936 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है.

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Google पर पिछले एक हफ्ते में लग चुका है 2,274 करोड़ रुपए का जुर्माना, जानिए आखिर भारत में लगातार क्यों लगाया जा रहा है गूगल पर जुर्माना - APN News
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पिछले दस दिनों के अंदर दुनिया की सबसे बड़ी तकनीकी कंपनी गूगल (Google India) पर भारत सरकार द्वारा दो बार जुर्माना लगाया जा चुका है. गूगल की मनमानी रोकने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission Of India) ने पहले 20 अक्टूबर को फिर 25 अक्टूबर को एक बार फिर से जुर्माना लगाया है.

क्यों लगाया गया जुर्माना?

25 अक्टूबर को सीसीआई ने Google द्वारा प्ले स्टोर नीतियों में अपनी दबदबे (Dominance) की स्थिति का दुरुपयोग करने पर 936 करोड़ 44 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.

इससे पहले 20 अक्टूबर 2022 को ही सीसीआई की ओर से करीब 1,337 करोड़ 76 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. इस तरह, गूगल पर महीने में अब तक 2,274.6 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जा चुका है.

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1337.76 करोड़ का जुर्माना

Google के उपर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा यह कार्रवाई एंड्रॉयड मोबाइल उपकरण क्षेत्र के बाजार में अपनी मजबूत स्थिति या यूं कहे की एक ही प्लेयर होने के चलते अपनी मनमानी नीतियों को थोपने को लेकर की गई ह. जुर्माने के साथ-साथ ही सीसीआई ने गूगल को अनुचित कारोबारी गतिविधियों को रोकने और बंद करने का निर्देश भी दिया है. सीसीआई के अनुसार गूगल को एक निर्धारित समय-सीमा के अंदर अपने कामकाज के तरीके को बदलने का भी निर्देश दिया गया है.

नियामक ने कहा कि एंटी फ्रैगमेंटेशन एग्रीमेंट (AFA) के तहत गूगल मोबाइल सूट (Google Mobile Suite) को अनिवार्य रूप से पहले से इंस्टॉल करना उपकरण निर्माताओं पर अनुचित स्थिति थोपने के बराबर है, और इस तरह यह प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन करता है.

सीसीआई द्वारा दो साल की जांच में पाया गया कि गूगल इंडिया सर्च, म्यूजिक, ब्राउजर, ऐप लाइब्रेरी और अन्य प्रमुख सेवाओं में अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा और नवाचार का दोषी था. जांच में यह भी पाया गया कि Google उपकरणों और ऐप निर्माताओं पर एकतरफा कॉन्ट्रैक्ट थोपता है.

936 करोड़ का जुर्माना

प्रतिस्पर्धा आयोग के मुताबिक Google अपने प्ले स्टोर पालिसी के तहत एप डेवलपर्स को भुगतान के लिए गूगल प्ले बिलिंग सिस्टम का उपयोग करने पर बाध्य करता था और बिलिंग के किसी अन्य माध्यम का विक्लप नहीं देता है. इसके चलते गूगल पर 936 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है.

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के अनुसार गूगल प्ले स्टोर पर भारत के यूपीआई एप को भुगतान के विकल्प के रूप में शामिल नहीं किया गया था. आयोग ने जांच में पाया कि गूगल पे (GPay) के लिए गूगल ने जानबूझकर “इंटेंट फ्लो प्रक्रिया” (Intent Flow) बनाई गई वहीं दूसरी ओर यूपीआई एप का इस्तेमाल “कलेक्ट फ्लोर प्रक्रिया” (Collect Flow) से ही हो सकता था.

इंटेंट फ्लो तकनीक कलेक्ट फ्लो के मुकाबले कई मानकों में बेहतर है. इंटेंट फ्लो में यूजर्स और कारोबारी दोनों को फायदा होता है, इसके अलावा लेटेंसी यानी इंटरनेट की धीमी गति के बावजूद भी ट्रांजैक्शन की सफलता दर कहीं ज्यादा रहती है. इसको लेकर गूगल ने आयोग को बताया कि उसने हाल में अपनी नीति बदली है और यूपीआई के एप को भी इंटेंट फ्लो प्रक्रिया से जोड़ दिया गया है.

गूगल ने क्या कहा

सीसीआई की पहली कार्रवाई (1,337.76 करोड़) को लेकर गूगल द्वारा एक बयान जारी कर कहा गया था कि, “सीसीआई का निर्णय भारतीय उपभोक्ताओं और व्यवसायों (Users and Businesses) के लिए एक बड़ा झटका है. यह एंड्रॉइड की सुरक्षा सुविधाओं पर भरोसा करने वाले भारतीयों के लिए गंभीर सुरक्षा जोखिम के अवसर दे रहा है. यह फैसला भारतीयों के लिए मोबाइल उपकरणों की लागत को भी बढ़ाएगा.” इसके साथ ही गूगल ने कहा था कि वो फैसले की समीक्षा करेगा.

कहां से शुरू हुआ था पूरा मामला?

दरअसल भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने अप्रैल 2019 में Google के खिलाफ देशभर से आ रही एंड्रॉयड आधारित स्मार्टफोन के उपभोक्ताओं की शिकायतों के बाद मामले की विस्तृत जांच का आदेश दिया था. शिकायतों में मौटे तौर पर अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं (Unethical Business Practices) के आरोप मोबाइल एप्लिकेशन डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट (MADA) और एंटी फ्रैगमेंटेशन एग्रीमेंट (AFA) जैसे दो समझौतों से जुड़े हुए हैं.

क्या है एंड्रॉयड?

Google एंड्रॉयड दरअसल स्मार्टफोन और टैबलेट के मूल उपकरण निर्माताओं (Original Equipment Manufacturers- OEMs) द्वारा बनाया गया एक ओपन-सोर्स, मोबाइल ऑपरेटिंग प्लेटफार्म है. सीसीआई की ओर से जारी बयान में बताया गया कि स्मार्ट मोबाइल उपकरणों को एप्लिकेशन और प्रोग्राम चलाने के लिए एक ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) की जरूरत होती है.

एंड्रॉयड को 2005 में गूगल द्वारा खरीदा गया था. आयोग ने एंड्रॉयड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम को लाइसेंस देने और गूगल के विभिन्न मालिकाना मोबाइल एप्लिकेशन (जैसे Play Store, Google Search, Google Chrome, YouTube) को लेकर गूगल की विभिन्न प्रैक्टिस की जांच की है.

MakeMyTrip, Goibibo और OYO पर भी लगाया था जुर्माना

प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India) ने इसके पहले बुधवार 19 अक्टूबर को ऑनलाइन ट्रैवल फर्म MakeMyTrip, Goibibo और हॉस्पिटैलिटी सर्विस प्रोवाइडर OYO पर भी अनुचित व्यावसायिक व्यवहार के लिए कुल 392 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया था. आदेश के अनुसार मेक माई ट्रिप व गोआईबीबो (एमएमटी-गो) पर 223.48 करोड़ रुपये और ओयो पर 168.88 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था.

MakeMyTrip, Goibibo पर आरोप लगाया गया था कि कंपनी ने होटल भागीदारों के साथ अपने समझौतों में मूल्य समानता लागू की. इस तरह के समझौतों के तहत होटल भागीदारों को अपने कमरे किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर या अपने ऑनलाइन पोर्टल पर उस कीमत से कम कीमत पर बेचने की अनुमति नहीं थी, जिस कीमत पर इसे दो अन्य संस्थाओं के प्लेटफॉर्म पर पेश किया जा रहा था.

पहले भी लग चूका है जुर्माना

प्रतिस्पर्धा आयोग ने इससे पहले फरवरी, 2018 में ऑनलाइन ‘सर्च’ के लिए भारतीय बाजार में अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं (Unethical Business Practices) के लिए गूगल पर 136 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. इसके साथ ही सीसीआई ने इंटरनेट कंपनी से ऐप डेवलपर्स पर ऐसी कोई भी शर्त नहीं लगाने को कहा है, जो उन्हें प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए अनुचित, भेदभावपूर्ण या असंगत हो.

भारत ओर बिग टेक कंपनियां

पिछले दिनों आई भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि, बड़ी गैर-वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियां जिन्हें “बिग टेक – Big Tech” कहा जाता है, उनके तकनीकी लाभ, बड़ी संख्या में यूजर्स, वित्तीय संस्थानों द्वारा बड़े स्तर पर अपनाने और नेटवर्क प्रभावों के कारण वित्तीय स्थिरता के लिये जोखिम पैदा करती हैं.

बिग टेक के तहत दुनिया की दिग्गज बड़ी कंपनियां आती हैं जिनमें अमेजन, फेसबुक (META), गूगल, अलीबाबा, टेनसेंट जैसी कंपनियां शामिल हैं.

बिग टेक की बढ़ती भूमिका

बाजार में अपनी मजबूत स्थिति के कारण, बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां अब आसानी से क्रॉस-फंक्शनल डेटाबेस प्राप्त कर सकती हैं जिनका उपयोग अत्याधुनिक उत्पाद बनाने के लिये किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर अगर एक कंपनी के पास एक करोड़ लोगों का डेटा है तो वह उस आधार पर उन लोगों की जरूरत का सामान बनी सकती है. बिग टेक की व्यापकता उन्हें एक बड़ा ग्राहक आधार प्रदान करती है जो ग्राहकों के डेटा के कई पहलुओं तक पहुंच के साथ अपने प्लेटफार्मों उत्पादों का उपयोग करने में उलझे हुए हैं, जिससे मज़बूत नेटवर्क का प्रभाव उत्पन्न होता है.

भारत सरकार क्या कदम उठा रही है?

भारत में भुगतान डेटा के स्थानीय भंडारण और महत्त्वपूर्ण भुगतान मध्यस्थों को औपचारिक ढांचे में लाने को लेकर लगातार प्रयास किये जा रहे हैं. केंद्र सरकार भुगतान स्वीकृति के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और डेटा संरक्षण कानून बनाने के लिये भी पहल कर रही है.

बिग टेक, फिनटेक क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये एक समान अवसर प्रदान करने में एक बाधा हैं. इसके अलावा तकनीकी कंपनियां उपयोगकर्त्ता डेटा को कैसे संसाधित (Monetise) करती हैं, इसमें पारदर्शिता की कमी है, जिसने गंभीर और महत्त्वपूर्ण गोपनीयता से संबधित चिंताओं को उठाया है.

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