ASHA Workers: केंद्र सरकार देश की 10 लाख से अधिक आशा (Accredited Social Health Activist- ASHA) कार्यकर्ताओं को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने के बारे में सोच रही है. प्रस्ताव के तहत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) को ईपीएफ और एमपी अधिनियम, 1952 अधिनियम (EPFO) के प्रावधानों के अनुसार सामाजिक सुरक्षा लाभ का विस्तार दिया जा सकता है. अभी सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoH&FW) द्वारा चलाये जा रहे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के एक भाग के रूप में कार्य कर रही हैं.
ASHA Workers द्वारा लंबे समय से की जा रही है मांग
विज्ञान भवन में 20-21 जुलाई, 2015 को आयोजित हुए भारतीय श्रम सम्मेलन नई दिल्ली में पेश की गई एक रिपोर्ट में आशा कार्यकर्ताओं को ईपीएफ के तहत कवरेज देने की बात को रखा गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुख्यालय जिनेवा में 22 से 28 मई, 2022 तक आयोजित किये गए विश्व स्वास्थ्य सभा के 75वें सत्र में भारत के मान्यता प्राप्त ‘सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (आशा)’ को 75वें विश्व स्वास्थ्य सभा में ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड से सम्मानित किया था, ताकि “वैश्विक स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने, नेतृत्व करने और क्षेत्रीय स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति प्रतिबद्धता” के लिये उनके अतुलनीय योगदान को मान्यता दी जा सके.
क्या है आशा कार्यक्रम ?
समुदाय के सदस्यों का क्षमता निर्माण करने जिससे वे अपने स्वयं के स्वास्थ्य की देखभाल कर सकें और स्वास्थ्य सेवाओं में भागीदार बन सकें, के मूल उद्देश्य के साथ भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के एक भाग के रूप में वर्ष 2005-06 में आशा कार्यक्रम को शुरू किया गया था. बाद में वर्ष 2013 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) के शुभारंभ के साथ इस कार्यक्रम का विस्तार देश के शहरी क्षेत्र में भी कर दिया गया था.
ASHA कार्यक्रम के लिये कहां से आई प्रेरणा?
देश में इतने बड़े स्तर का आशा कार्यक्रम, इससे पूर्व की दो पहलों से मिली सीख से जुड़ा हुआ था. जिसमें पहला था वर्ष 1975 में ‘जनता द्वारा स्वास्थ्य’ (Health by the People) शीर्षक WHO मोनोग्राफ का जारी होना और दूसरा वर्ष 1978 में तत्कालीन सोवियत संघ और अब कजाखस्तान के अल्मा अता (Alma Ata) में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन. वहीं भारत में आशा कार्यक्रम को अंतिम रूप देने की सबसे बड़ी प्रेरणा छत्तीसगढ़ की ‘मितानिन’ पहल (छत्तीसगढ़ी में मितानिन का अर्थ है ‘एक महिला मित्र’) से मिली जो मई 2002 में शुरू की गई थी. मितानिन प्रत्येक 50 घरों और 250 लोगों के लिये उपलब्ध महिला स्वयंसेवक थीं.
क्या काम करती हैं आशा वर्कर्स?
‘आशा’ वर्कर्स देश के ग्रामीण हिस्सों में खासकर जहां अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है, में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. इसके अलावा आशा वर्कर्स राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NHRM) के प्रमुख घटकों में से एक है. आशा वर्कर्स 25-45 वर्ष के आयु वर्ग में एक सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता होती हैं, जो महिलाओं और बच्चों सहित ग्रामीण आबादी के वंचित वर्गों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिये संपर्क के पहले स्तर के रूप में कार्य करती हैं.
भारत में आमतौर पर प्रति 1000 जनसंख्या पर एक आशा कार्यकर्ता होती है. हालांकि जनजातीय, पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में काम के बोझ को कम करने के लिए प्रत्येक बस्ती में लिए एक आशा कार्यकर्ता काम करती है.
आशा वर्कर्स की क्या हैं जिम्मेदारियां और कितनी है भूमिका ?
आशा कार्यकर्ताओं के मुख्य कार्यों में लोगों को पोषण, बुनियादी स्वच्छता और स्वच्छ प्रथाओं, स्वस्थ रहने के अलावा काम करने की स्थिति आदि के बारे में जानकारी प्रदान करके के साथ-साथ स्वास्थ्य निर्धारकों के बारे में जागरूकता पैदा करना है. इसके अलावा वह मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में भी जानकारी देती है और लोगों को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवाओं के समय पर उपयोग के लिये प्रोत्साहित करती है.
प्रमुख कार्यों में जैसे जन्म की तैयारी, सुरक्षित प्रसव के फायदे, स्तनपान, गर्भनिरोधक, टीकाकरण, बच्चे की देखभाल और प्रजनन के दौरान संक्रमण / यौन संचारित संक्रमण (RTI / STI) की रोकथाम पर महिलाओं को सलाह भी देती है. इन सब के अलावा संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत बुखार, दस्त और मामूली चोटों जैसे छोटे रोगों के लिये प्राथमिक चिकित्सा देखभाल भी प्रदान करती हैं.
इस समय स्वैच्छिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में NHM के तहत 10 लाख से अधिक आशा कार्यकर्ता कार्य कर रही हैं. एनएचएम के तहत इन आशाओं की राज्यवार सूची इस प्रकार है-
(डाटा लोकसभा में पूछे गए अतारांकित प्रश्न संख्या 3,306 जिसका उत्तर जो 17 दिसंबर, 2021 को दिया गया था से लिया गया है)
ASHA Workers: आखिर कहां है समस्या?
राज्य/जिला स्वास्थ्य समितियां जो प्रत्येक राज्य और जिले में एनएचएम के लिए जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन एजेंसियां हैं और एनएचएम के तहत सभी कर्मचारी ईपीएफ लाभ के लिए पात्र हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने आशा कार्यकर्ताओं को छोड़कर एनएचएम के तहत काम करने वाले सभी संविदा कर्मचारियों (Contractual Workers) को ईपीएफ और एमपी अधिनियम के तहत लाभ दिया हुआ है लेकिन आशा कार्यकर्ताओं के बारे में मंत्रालय ने कहा कि ये (आशा कार्यकर्ता) एनएचएम के तहत स्वैच्छिक कार्यकर्ता हैं जो केवल प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन प्राप्त करती हैं. (“ASHA workers are voluntary activist under NHM who only receives performance based incentives”).
अगस्त, 2016 में तत्कालीन वित्त मंत्री की अध्यक्षता में हुई एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने सामाजिक सुरक्षा के दयरे में विभिन्न केंद्र प्रायोजित योजनाओं के स्वयंसेवकों (volunteers) की कवरेज को लेकर कहा था कि “सरकार ने सैद्धांतिक रूप से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की छत्रछाया में विभिन्न केंद्रीय योजनाओं जैसे आशा स्वयंसेवकों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया है.”
इस अंतर-मंत्रालयी समिति की बैठक के दौरान लिए गए निर्णय के अनुसरण में श्रम और रोजगार मंत्रालय के तहत एक समिति गठित की गई जिसमें आशा कार्यकर्ताओं को सामाजिक सुरक्षा लाभ देने के मुद्दे की जांच करने के लिए कहा गया. 17 अक्टूबर, 2016 को विभिन्न केंद्र प्रायोजित योजनाओं के स्वयंसेवकों को सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए आयोजित बैठक में आशा कार्यकर्ताओं को लेकर सुझाव दिया कि इन स्वयंसेवकों को पीएफ/पेंशन की सुविधा दी जानी चाहिए.
ASHA Workers की क्या है बड़ी समस्याएं?
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह माना है कि EPF अधिनियम की धारा 2(एफ) के संदर्भ में मजदूरी के लिए नियोजित सभी कर्मचारी, यहां तक कि घरेलू कार्यकर्ता भी ‘कर्मचारी’ (Workers) हैं. इसके अलावा भारत सरकार ने भी आशा कार्यकर्ताओं को ईपीएफ लाभ देने का सैद्धांतिक मंजूरी का निर्णय पहले ही ले लिया है. इस प्रकार, ईपीएफ लाभ देने के उद्देश्य से आशा कार्यकर्ता को कर्मचारी मानने में कोई अस्पष्टता नहीं है.
कोविड-19 महामारी के दौरान अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के रूप में आशा की भूमिका की विश्व स्तर पर सराहना की गई और उन्हें 2020 में टाइम मैगजीन द्वारा “गार्डियन ऑफ द ईयर” के रूप में दिखाया गया.
आशा कार्यकर्ता ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं हैं, और उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने से न केवल महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास का कारण बनेगा, बल्कि उनके परिवार के सदस्यों के जीवन को भी प्रभावित करेगा. इस प्रकार 10 लाख आशा कार्यकर्ताओं को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने से ग्रामीण और सीमांत वर्ग के 30 से 40 लाख गरीब लोगों के जीवन को छूने वाले समान संख्या में परिवारों का जीवन सुरक्षित होगा.
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