Universities में नियुक्ति को लेकर केरल सरकार और राज्यपाल में ठनी, जानिए विश्वविद्यालयों को लेकर कितनी है Governor की शक्तियां?

केंद्र सरकार के तहत आने वाले संस्थानों में कुलपति (Vice Chancellor) की नियुक्ति, केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई चयन समितियों द्वारा चुने गए नामों के पैनलों से की जाती है.

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Universities में नियुक्ति को लेकर केरल सरकार और राज्यपाल में ठनी, जानिए विश्वविद्यालयों को लेकर कितनी है Governor की शक्तियां? - APN News
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पिछले कुछ दिनों से केरल सरकार (Kerala Government) और राज्यपाल आरिफ मोहमद खान के बीच विश्वविद्यालय में नियुक्ति (Appointment in Universities) के मामलों को लेकर ठनी हुई है. इसी कड़ी में बढ़ते टकराव के बीच केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को केरल कलामंडलम डीम्ड-टू-विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के पद से हटा दिया है. केरल सरकार ने घोषणा कि की वह कला और संस्कृति के क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ आरिफ मोहम्मद खान को बदलने के लिए विश्वविद्यालय के नियमों में बदलाव कर रही है.

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क्या है पूरा मामला?

बुधवार 9 नवंबर को हुई केरल की सत्तारूढ़ एलडीएफ सरकार की बैठक के बाद जानकारी देते हुए बताया गया कि उसने राज्य के विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को कुलाधिपति बनाने के लिए अध्यादेश (Ordinance) लाने का फैसला किया.

केरल सरकार के इस फैसले का कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी विरोध किया है. मुख्यमंत्री कार्यालय के बयान के अनुसार मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला किया गया कि खान से अध्यादेश को मंजूरी देने की सिफारिश की जाएगी जो विश्वविद्यालय कानूनों में कुलापधिपति की नियुक्ति से संबंधित धारा को हटा देगा जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल राज्य के 14 विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होंगे. हालांकि इस अध्यादेश को भी राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत पड़ेगी.

इससे पहले केरल के राज्यपाल ने नियुक्ति में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों के उल्लंघन का हवाला देते कुछ दिनों पहले दस विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से इस्तीफा मांग लिया. उनका कहना था कि उनकी नियुक्ति में तय नियम-कायदों का पालन नहीं किया गया. इस्तीफा मांगे जाने के बाद केरल की पिनाराई विजयन सरकार और राज्यपाल लआरिफ मोहमद खान के बीच ठन गई. बाद में केरल उच्च न्यायालय ने राज्यपाल के आदेश पर रोक लगा दी थी.

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विश्वविद्यालय के संबंध में कितनी है राज्यपाल की शक्तियां ?

राज्य विश्वविद्यालय (State Universities)

राज्य के राज्यपाल जिस राज्य में उनकी नियुक्ति हुई के विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति (Chancellor) होते हैं. राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद (Cabinet) की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और सभी विश्वविद्यालयों के मामलों को लेकर खुद फैसला करता है.

केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central University)

केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 और अन्य कानूनों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का विजिटर होगा. केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (Chancellor) नाममात्र के प्रमुख होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक (Visitor) के रूप में चुना जाता है, उनके कर्तव्यों को दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तक ही सीमित किया जाता है.

केंद्र सरकार के तहत आने वाले संस्थानों में कुलपति (Vice Chancellor) की नियुक्ति, केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई चयन समितियों द्वारा चुने गए नामों के पैनलों से की जाती है.

2009 के अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को विजिटर के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक (Academic and Non Academic) पहलुओं की जांच करने एवं पूछताछ करने का अधिकार भी होगा.

क्यों बनाया जाता है राज्यपालों को कुलपति?

देश के विभिन्न राज्यों में राज्यपालों को कुलपति बनाने के पिछे का मूल उद्देश्य विश्वविद्यालयों को राजनीतिक प्रभाव से बचाना था.

राज्यपाल को लेकर विभिन्न आयोग की सिफारिशें

सरकारिया आयोग

न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया आयोग द्वारा पाया गया था कि कुछ राज्यपालों द्वारा विश्वविद्यालय की कुछ नियुक्तियों में विवेक (Discretion) का इस्तेमाल करना आलोचना के दायरे में है. सामान्य तौर पर ऐसे मामलों में राज्यपाल अपने चेहते लोगों की नियुक्ति कर देते हैं. हालांकि सरकारिया आयोग ने राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका (Constitutional Role) और कुलपति के रूप में निभाई गई वैधानिक भूमिका (Statutory role) के बीच अंतर को स्वीकार करते हुए यह भी रेखांकित किया कि कुलपति सरकार की सलाह लेने के लिये बाध्य नहीं है.

M. M. पुंछी आयोग

एम.एम. पुंछी आयोग ने पाया कि राज्यपाल को ऐसी शक्तियां न दी जाएं जिससे इसका पद ही विवादों या सार्वजनिक आलोचना (Public Criticism) के दायरे में आ जाए. आयोग ने राज्यपाल को वैधानिक शक्तियां (Statutory Roles) प्रदान करने को स्वीकार नहीं किया.

विश्वविद्यालय के मामलों में क्या है UGC की भूमिका?

भारत के संविधान में शिक्षा को समवर्ती सूची (Concurrent List) में रखा गया है, लेकिन संघ सूची (Union List) की 66 नबंर की एंट्री में लिखा गया है कि “उच्च शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों के मानकों का समन्वय तथा निर्धारण” केंद्र को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुप्रीम अधिकार देता है.

इसके अलावा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नियुक्तियों के मामले में भी मानक-निर्धारण की भूमिका निभाता है. UGC (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य अकादमिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिये न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिये अन्य उपाय) विनियम, 2018 के अनुसार, “विजिटर / चांसलर”- ज्यादातर राज्यों में राज्यपाल, खोज एवं चयन समितियों द्वारा तय किए गए नामों के पैनल में से किसी एक का चयन कुलपति के रुप में करेंगे.

उच्च शिक्षण संस्थानों, विशेष रूप से जिन्हें UGC से पैसा मिलता है, उन्हें इसके नियमों का पालन करना जररी है. आमतौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में बिना किसी टकराव के इन नियमों को मान लिया जाता है, लेकिन कभी-कभी राज्य विश्वविद्यालयों के मामले में राज्यों द्वारा इसका विरोध किया जाता है.

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