किसानों की कर्जमाफी का वादा इस समय राजनीति के सबसे सफल दांव के रूप में देखा जा रहा है। सत्ता में काबिज होने के लिए राजनैतिक दल किसानों के कर्ज का मुद्दा अच्छे से भुनाते हैं और किसानों के वोट हासिल करने के लिए किसानों के कर्ज को माफ करने की घोषणा करते हैं। बता दें कि देश में सबसे पहले वीपी सिंह ने 1990 के चुनाव में किसानों के कर्जमाफ करने की घोषणा की थी। उसके बाद से चुनावी राजनीति को इसका रोग लग गया जो अब भी बदस्तूर जारी है।

माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को मिली अभूतपूर्व सफलता के पीछे किसानों को कर्जमाफी देने की घोषणा ही थी। सम्भवतः उसी से ‘सीख’ लेते हुए दो दिन पूर्व राहुल गांधी ने भी छत्तीसगढ़ की चुनावी रैली में सरकार बनने के दस दिन के अंदर किसानों का पूरा कर्ज माफ करने की घोषणा कर दी, लेकिन इस तरह की घोषणाओं से देश की अर्थ व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए एक बैंक कर्मचारी संगठन ने चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों को इस तरह की घोषणा करने से रोकने की मांग की है।

नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष अश्वनी राणा ने मंगलवार को चुनाव आयोग को एक पत्र लिखकर मांग की है कि वह राजनीतिक दलों को कर्जमाफी की घोषणाएं करने से रोकने का निर्देश जारी करें। राणा ने कहा कि बैंकों की स्थिति बहुत खराब चल रही है। एनपीए से निबटने के लिए उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है। राजनीतिक दलों की ओर से कर्जमाफी का वायदा करने के बाद वे लोग जो कर्ज की अदायगी करने में सक्षम होते हैं, वे भी कर्ज वापसी नहीं करते जिससे बैंकों का भार बढ़ता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को इस तरह की घोषणाओं को करने से रोकना ही देशहित में होगा।

इंडियन काउन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनोमिक रिलेशन के एक शोध पत्र के मुताबिक़ वीपी सिंह के की ओर से कर्जमाफी की घोषणा करने के बाद बैंकों के ओर से कर्जवसूली क्षमता में भारी कमी आई थी। अकेले कर्नाटक राज्य में ही बैंकों के द्वारा कर्ज वसूलने की क्षमता कुल कर्ज के 74.9 फीसदी से घटकर 41.1 फीसदी रह गई थी।

साल 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा 36,000 करोड़ का कर्ज माफ करने के बाद सरकार को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा और उसे कर्मचारियों को वेतन देने में भी परेशानी का सामना करना पड़ा।

हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि किसानों का कर्ज सरकार या बैंक के लिए उतनी बड़ी मुसीबत नहीं हैं जितना कि इसे बताया जा रहा है।

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