Chhawla Rape Case: जानें किन कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को किया बरी….

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Chhawla Rape Case: पुलिस की लापरवाही के कारण दोषियों को किया गया रिहा, जानें किन कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाई कोर्ट का फैसला
Chhawla Rape Case: पुलिस की लापरवाही के कारण दोषियों को किया गया रिहा, जानें किन कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाई कोर्ट का फैसला

Chhawla Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को छावला रेप मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आरोपियों को निष्पक्ष ट्रायल नहीं मिला था। साथ ही कोर्ट की तरफ से कहा गया है कि सही सबूत न मिलने के कारण इन आरोपियों को बरी किया जा रहा है।

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Chhawla Rape Case

दरअसल, यह मामला साल 2012 का है जब छावला के कुतुब विहार की रहने वाली 19 वर्षीय लड़की को राहुल, रवि और विनोद नाम के तीनों आरोपियों ने अगवा कर लिया था। कई दिनों तक लड़की की तलाश करने के बाद परिजनों को उसका शव बेहद खराब हालत में मिला।

मामले की जांच पड़ताल के दौरान पता लगा कि आरोपियों ने लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने के साथ ही उसे असहनीय यातना भी दी थी। मारपीट से मन नहीं भरा तो आरोपियों ने लड़की को सिगरेट से जगह-जगह जलाया है और उसकी आंख को तेजाब से जला दिया था।

इसके बाद सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद दिल्ली की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई और कोर्ट ने तीनों आरोपियों को दोषी ठहराते हुए लड़की के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने के लिए मौत की सजा सुनाई थी। अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है और सभी आरोपियों को रिहा करते हुए अपना पक्ष रखा।

Chhawla Rape Case: कोर्ट ने अपना पक्षा रखते हुए आरोपियों को किया रिहा

  • मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने कहा कि यह बात मानी जा रही है कि ऐसे जघन्य अपराध में जब आरोपियों को बरी कर दिया जाता है तो इससे समाज और पीड़िता के परिजनों को निराशा होती है। लेकिन कोर्ट भावनाओं और नैतिक दोषसिद्धि के आधार पर किसी अभियुक्त को दंडित नहीं कर सकता है।
  • किसी भी अभियुक्त का बाहरी दबाव और निंदा की आशंका के आधार पर आकलन नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक मामले की सुनवाई न्यायालयों की योग्यता और कानून द्वारा तय किए गए मानदंडों के आधार पर किया जाना चाहिए।
  • अदालत ने कहा कि न्यायालय ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि अदालत को सबूतों के परीक्षण के दौरान कई खामियां दिखी थीं। रिकॉर्ड में देखा गया है कि अभियोजन पक्ष की ओर से 49 गवाहों में से 10 गवाहों ने जिरह ही नहीं किया। वहीं, बचे हुए महत्वपूर्ण गवाहों से बचाव पक्ष द्वारा पर्याप्त रूप से संपर्क ही नहीं किया गया था।
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  • कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 निचली अदालतों को सच्चाई जानने के लिए गवाहों को किसी भी स्तर पर किसी भी प्रश्न को रखने के लिए शक्ति प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश से यह उम्मीद की जाती है कि वह मुकदमे में सक्रिय रूप से भाग ले और निष्क्रिय अंपायर की भूमिका निभाते हुए सभी पक्षों से पूछताछ करे। लेकिन इस मामले में देखा गया है कि निचली अदालत ने भी एक निष्क्रिय अंपायर की भूमिका नहीं निभाई और अपीलकर्ता-अभियुक्तों को निष्पक्ष सुनवाई के अधिकारों से वंचित किया गया था।
  • कोर्ट का कहना है कि किसी भी अभियुक्त को दोषी बताने के लिए ट्रायल कोर्ट के पास ठोस सबूत होने चाहिए। इतना ही नहीं सबूत ठोस होने के साथ ही दोषी की बेगुनाही के साथ असंगत भी होना चाहिए। लेकिन इस मामले में परिस्थितियों की समग्रता और रिकार्ड पर मौजूद सबूतों को देखते हुए यह मानना ​​मुश्किल है कि अभियोजन पक्ष ने अपराध साबित कर दिया था।

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