प्रेमिका के मरने पर 18 साल की उम्र में लिया संन्यास, अंग्रेज 40 लाख का इनाम रखने को हुए मजबूर, जानें कौन थे अल्लूरी सीताराम राजू

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आज अल्लूरी सीताराम राजू की जयंती है। अल्लूरी एक क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था। मौजूदा आंध्र प्रदेश में 1897/1898 के आस-पास जन्मे अल्लूरी ने मद्रास वन कानून का विरोध किया था। यह कानून आदिवासियों को जंगलों में स्वच्छंद घूमने से रोकता था। यहां तक कि आदिवासियों से उनकी आजीविका भी छीन लेता था। देश में असहयोग आंदोलन को देख अल्लूरी ने विद्रोह का बिगुल बजाया था। आज के ओडिशा और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में अल्लूरी और उनके साथियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था।

अल्लूरी के जीवन की दिलचस्प बात ये कि वे एक समय में सीता नाम की लड़की से प्यार करते थे। कम उम्र में वह लड़की मर गई जिसके बाद अल्लूरी ने 18 साल की उम्र में संन्यास ले लिया और अपने नाम में सीता जोड़ लिया। 1922 के रम्पा विद्रोह का श्रेय अल्लूरी को जाता है। अल्लूरी और उनके लोगों ने विद्रोह के दौरान पुलिस स्टेशनों पर हमला बोला और हथियार अपने कब्जे में ले लिए थे। इसके बाद तो अंग्रेज अल्लूरी की तलाश में लग गए। उस समय उन्होंने अल्लूरी पर 40 लाख रुपये का इनाम रखा।

आपको बता दें कि अल्लूरी के पिता फोटोग्राफी का काम किया करते थे। जब अल्लूरी महज आठ साल के थे तब उनके पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। अपनी शिक्षा प्राप्त करते हुए अल्लूरी ने आदिवासियों के संघर्ष को करीब से देखा। अल्लूरी ने सोचा कि वे आदिवासियों के लिए आंदोलन करेंगे। अंग्रेजों की एक बात अल्लूरी को नागवार गुजरती थी कि कैसे अंग्रेज भोलेभाले आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। समय के साथ अल्लूरी आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हो गए। लोग उन्हें दैवीय अवतार मानने लगे। उन्हें “मन्यम वीरुडु” (जंगल का नायक) उपनाम दिया गया।

उस समय आदिवासियों को जंगल में पशु चराने, लकड़ी और फल इकट्ठा करने और जंगल की चीजें बेचने पर भी रोक थी। यहां तक कि उनको जंगल की भूमि को अपनी आजिविका के तौर पर उपयोग करने का भी अधिकार नहीं था। जब अंग्रेजों के जुल्म की इंतहा हो गई तो अल्लूरी ने हथियार उठाने का फैसला किया। इसके बाद अल्लूरी और उनके साथियों ने गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया।

बता दें कि अंग्रेजों ने वनों के दोहन के लिए 1882 में मद्रास वन कानून पारित किया था। इससे आदिवासियों पर कई रोक लगीं। उनकी आजीविका प्रभावित हुई। आदिवासी भूखे रहने को मजबूर हुए। फिर क्या था अंग्रेजों ने उनको मजदूरी के काम में लगा दिया। ऐसे हालात देख धीरे धीरे अल्लूरी ने लोगों को एकजुट किया। राजू ने असहयोग आंदोलन की भी कुछ चीजें अपनाईं। हालांकि राजू का मानना था कि अंग्रेजों के साथ अहिंसा काम नहीं कर सकती। अल्लूरी और उनके साथी धनुष बाण ही चलाते थे। बाद में उन्होंने पुलिस स्टेशन पर हमला बोल, अंग्रेजों के हथियार अपने कब्जे में ले लिए। आखिर 7 मई 1924 को राजू अंग्रेजों की पकड़ में आ गए और राजू को मार दिया गया।

महात्मा गांधी ने अल्लूरी के लिए कहा था, “मैं युवा श्री राम राजू जैसे बहादुर, इतने बलिदानी, इतने सरल और इतने महान चरित्र वाले युवा को अपनी श्रद्धांजलि देने से नहीं रोक सकता… राजू एक महान नायक थे। ”

जवाहरलाल नेहरू ने टिप्पणी की थी कि, “राजू उन कुछ नायकों में से एक थे जिन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है।” नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि अल्लूरी अपने संकल्प में दृढ़ थे, और लोगों के लिए उनका अद्वितीय साहस और बलिदान उन्हें इतिहास में एक स्थान सुनिश्चित करेगा।

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