AADHAAR-Voter ID Linkage | आखिर क्यों चर्चा में है मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड के साथ जोड़ने का मुद्दा और क्यों उठ रहे हैं सवाल

लेकिन कई ऐसे उदाहरण (ऑनलाइन) सामने आए हैं जहां ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने मतदाताओं से अपने आधार को अपने वोटर आईडी (AADHAAR-Voter ID Linkage) से जोड़ने के लिए बोल रहे है, और ऐसा नहीं करने पर उनकी वोटर आईडी को रद्द करने की बात कर रहे हैं.

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AADHAAR-Voter ID Linkage | आखिर क्यों चर्चा में है मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड के साथ जोड़ने का मुद्दा और क्यों उठ रहे हैं सवाल - APN News

केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा 1 अगस्त 2022 से देशभर में वोटर आईडी कार्ड को आधार कार्ड (AADHAAR-Voter ID Linkage) से जोड़ने के लिए एक अभियान की शुरूआत की गई है. अभियान के तहत देशभर के लोगों से स्वैच्छिक (Voluntarily) रूप से अपने वोटर कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का आग्रह किया गया है. अभी तक करोड़ों लोग इस अभियान के तहत अपने मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड के साथ जोड़ने के लिए अपना विवरण पेश कर चुके हैं.

लेकिन कई ऐसे उदाहरण (ऑनलाइन) सामने आए हैं जहां ब्लॉक स्तर के अधिकारियों ने मतदाताओं से अपने आधार को अपने वोटर आईडी (AADHAAR-Voter ID Linkage) से जोड़ने के लिए बोल रहे हैं, और ऐसा नहीं करने पर उनकी वोटर आईडी को रद्द करने की बात कर रहे हैं.

आधार-वोटर आईडी कार्ड को क्यों लिंक करना चाहती है सरकार?

केंद्रीय चुनाव आयोग, मतदाताओं का सटीक और विश्वसनीय रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए नियमित तौर पर नये-नये प्रयोग करता रहता है. चुनाव आयोग के अनुसार मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड के साथ जोड़ने के पीछे का कारण मतदाताओं के दोहराव को समाप्त करना है. आयोग के अनुसार, जैसे कि प्रवासी श्रमिक जो विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता सूची में एक से अधिक बार पंजीकृत हो सकते हैं या एक ही निर्वाचन क्षेत्र में कई बार पंजीकृत व्यक्तियों को केवल एक ही मतदाता सूची में रखना है.

क्या आधार को मतदाता पहचान पत्र से लिंक करना अनिवार्य है?

कानूनी पक्ष

दिसंबर 2021 में, संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में संशोधन करने के लिए चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम, 2021 पारित किया गया जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में धारा 23(4) में संशोधन का प्रावधान करता है. संशोधन में कहा गया है कि निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी “किसी भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से” या “निर्वाचक नामावली में प्रविष्टियों के प्रमाणीकरण के प्रयोजनों के लिए” कर सकता है जहां एक या एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में” पहले से नामांकित नागरिकों के लिए, उन्हें अपनी आधार नंबर देना पड़ सकता है.

संशोधन के बाद केंद्र सरकार द्वारा  जून 2022 में ‘निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम, 1960’ में परिवर्तनों को अधिसूचित किया. संशोधन के माध्यम से नियम 26B को जोड़ा गया है जिसके तहत “प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम सूची में सूचीबद्ध है, पंजीकरण अधिकारी को अपना आधार नंबर सूचित कर सकता है”.

संशोधनों के दौरान विवेकाधीन भाषा के उपयोग के साथ सरकार और चुनाव आयोग दोनों ने आश्वासन दिया है कि आधार को मतदाता पहचान पत्र के साथ जोड़ना वैकल्पिक (Voluntarily) है. हालांकि, यह नए नियम 26बी के तहत जारी फॉर्म 6बी में परिलक्षित नहीं होता है. फॉर्म 6बी वह प्रारूप प्रदान करता है जिसमें आधार की जानकारी निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी को प्रस्तुत की जा सकती है. फॉर्म 6बी मतदाता को अपना आधार नंबर या कोई अन्य सूचीबद्ध दस्तावेज जमा करने के लिए प्रदान करता है. हालांकि, अन्य सूचीबद्ध दस्तावेजों को जमा करने का विकल्प केवल तभी प्रयोग किया जा सकता है जब मतदाता “अपना आधार संख्या प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उनके पास आधार संख्या नहीं है”.

आधार को वोटर आईडी से लिंक करना मुद्दा क्यों?

अब तक सरकार (केंद्र एंव राज्य) और निजी क्षेत्र दोनों द्वारा सत्यापन और प्रमाणीकरण के लिए आधार का उपयोग करने की प्राथमिकता मौटे तौर पर दो कारणों से दी जा रही है-

2021 के अंत तक, 99.7 फीसदी वयस्क भारतीय आबादी के पास आधार कार्ड था. यह कवरेज किसी भी अन्य आधिकारिक रूप से मान्य दस्तावेज जैसे कि ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, पैन कार्ड आदि से अधिक है.

आधार को इसलिए भी प्राथमिकता दी जाती है, चूंकि आधार बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की अनुमति देता है. आधार आधारित प्रमाणीकरण और सत्यापन को अन्य किसी भी पहचान पत्र की तुलना में अधिक विश्वसनीय, तेज और लागत प्रभावी माना जाता है.

लेकिन वर्ष 2017 के पुट्टस्वामी मामले में आए फैसले के अनुसार सीमित परिस्थितियों को छोड़कर आधार को अनिवार्य करना पर्याप्त नहीं हैं. इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि क्या आधार को वोटर आईडी के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ने से दोहरीकरण (De-duplication) के उद्देश्य को पूरा कर पायेगा या नहीं.

उच्चतम न्यायालय ने माना कि किसी व्यक्ति को गैर-लिंकेज (आधार से जोड़ना) के लिए संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. इस संदर्भ में, इस पर विचार करने की आवश्यकता है कि क्या आधार धारक को प्रमाणीकरण या सत्यापन के लिए अनिवार्य रूप से आधार प्रदान करने की आवश्यकता को उनकी सूचनात्मक स्वायत्तता (निजता के अधिकार) का उल्लंघन नहीं माना जाएगा, जो उन्हें यह तय करने की अनुमति देगा कि वे सत्यापन और प्रमाणीकरण के लिए किस आधिकारिक दस्तावेज का उपयोग करना चाहते हैं.

1995 के लाल बाबू हुसैन मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि वोट के अधिकार को केवल पहचान के चार प्रमाणों पर ही निर्भर नहीं रखा जा सकता है – मतदाता पहचान के किसी अन्य प्रमाण को देकर भी वोट का अधिकार प्राप्त कर सकते हैं.

चुनौतियां

देशभर में मतदाताओं के निर्धारण के लिए आधार को वरीयता देना काफी उलझन भरा मामला है क्योंकि आधार केवल निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं. इसलिए, इसके केवल दोहराव को रोकन में मदद मिलेगी, लेकिन मतदाता सूची उन मतदाताओं को नहीं हटाया जाएगा जो भारत के नागरिक नहीं हैं.

दूसरा, बॉयोमीट्रिक आधारित प्रमाणीकरण में त्रुटि दर का अनुमान व्यापक रूप से भिन्न है. 2018 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के अनुसार, आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण में 12 फीसदी त्रुटि दर थी. इसके कारण उच्चतम न्यायालय ने पुट्टस्वामी में यह फैसला सुनाया कि आधार आधारित प्रमाणीकरण नहीं होने की स्थिति में किसी व्यक्ति को लाभों से वंचित नहीं किया जाएगा. यह चिंता मतदाता सूची को आधार से जोड़ने के पिछले अनुभवों में भी परिलक्षित होती है.

संवैधानिक व्यवस्था

भारत में स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 324 में मतदाता सूची तैयार करने और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और हर राज्य के लिये राज्य विधायिकाओं हेतु चुनाव कराने के पर्यवेक्षण, निर्देश और नियंत्रण निहित हैं.

संसद और राज्य विधायिकाओं के चुनाव दो कानूनों के प्रावधानों के तहत संपन्न होते हैं- जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951.

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950

यह मुख्य रूप से निर्वाचक सूचियों की तैयारी और संशोधन संबंधी मामलों से संबंधित है. इस कानून के प्रावधानों के पूरक के रूप में इस कानून की धारा 28 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1960 बनाए हैं एवं ये नियम निर्वाचक सूचियों की तैयारी, उनके आवधिक संशोधन और अद्यतन, पात्र नाम शामिल करने, गलत नाम हटाने, विवरण इत्यादि ठीक करने संबंधी सभी पहलुओं को देखते हैं.

2021 में इन नियमों में संशोधन किया गया है. ये नियम राज्य के खर्चे पर फोटो सहित पंजीकृत मतदाताओं के पहचान कार्ड के मुद्दे भी देखते हैं. ये नियम अन्य विवरण के अलावा निर्वाचक के फोटो सहित फोटो निर्वाचक सूचियां तैयार करने के लिये निर्वाचन आयोग को अधिकार देते हैं.

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951

भारत में चुनावों का आयोजन कराने से संबंधित सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं. इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाए हैं. इस कानून और नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जांच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किए गए हैं.

आगे की राह

2021 में लाए गए संशोधन और चुनाव आयोग द्वारा लिंकेज के लिए अभियान शुरू करने को लेकर उच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की गई है.

याचिकाकर्ता ने इन संशोधनों को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है. उच्चतम न्यायालय ने याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट के पास भेज दिया है.

नागरिक समाज का कहना है कि सरकार फॉर्म 6बी में सुधार करते हुए यह स्पष्ट करें कि लिंकिंग अनिवार्य नहीं है.

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