दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में सूखे मेवे के लिए प्रसिद्ध खारी बावली मार्केट में आयकर विभाग को एक दुकान के अंदर तलघर में 300 लॉकरों मिले है जिनमें पैसे भरे है। छापेमारी के बाद विभाग ने इन लॉकरों को सील कर दिया था।

विभाग की तरफ से सील किए गए 300 लॉकरों में से 200 लॉकर के मालिक ही जांच के लिए आयकर विभाग के सामने आये है। जबकि 100 लॉकरों के मालिकों का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है।

बता दें आयकर विभाग ने 5 नवंबर को खारी बावली में फकीर चंद लॉकर्स एंड वॉल्टस प्राइवेट लिमिटेड के नाम से चल रहे लॉकर को जांच के लिए सील किया था। तब से अब तक आयकर विभाग ने 150 लॉकर को खोल लिया है। इसमें से 25 करोड़ मिलने की बात सामने आई है।

लॉकर संचालित करने वाली कंपनी के मालिक अशोक कुमार ने कहा बाकी बचे 150 लॉकर में से 50 लॉकर मालिकों की चाबियां जांच के लिए रखी हुई हैं। जबकि 100 लॉकर मालिक ऐसे हैं, जो लॉकर आवंटित होने के बाद से एक-दो बार के बाद से नहीं आए।

लॉकरों तक ऐसे पहुंचा आयकर विभाग
आयकर विभाग ने अक्टूबर में एक केमिकल व्यापारी के यहां छापा मारा था। जिस दौरान मिली चाबियों ने आयकर विभाग को इन लॉकर तक पहुंचाया। छापे के दौरान कुछ चाबियों के अनुपयोगी मिलने पर उनके बारे में पूछने पर व्यापारी ने लॉकर की जानकारी दी।

31 अक्तूबर को आयकर विभाग ने लॉकर का सर्वे करने को लेकर नोटिस दिया था, लेकिन 2 नवंबर को विभाग ने जांच करने के लिए नोटिस जारी किया। इसके बाद इन लॉकरों को सील कर दिया गया। तब से इनकी जांच की जा रही है।

बड़े व छोटे लॉकर का किराया अलग-अलग
आयकर विभाग की तरफ से सील किए गए लॉकर आकार के हिसाब से पांच प्रकार से बंटे हुए हैं। सबसे बड़े लॉकर के लिए हर साल 24 हजार रुपये, जबकि सबसे छोटे आकार के लॉकर का किराया 4 हजार रुपये वार्षिक है। बताया जाता है कि यह पुरानी दिल्ली की एकमात्र निजी लॉकर सेवा है।

लॉकर रूम में प्रवेश के लिए रजिस्टर में एंट्री करनी पड़ती थी। तीन रजिस्टर में से दो रजिस्टर आयकर विभाग ने जब्त किए हैं। लॉकर रूम के अंदर सीसीटीवी भी लगे हुए हैं। लॉकर रोजाना सुबह 11:20 बजे से शाम 7:20 तक खुले रहते थे। उधर, किराना कमेटी दिल्ली के अध्यक्ष विजय गुप्ता बंटी का कहना है कि सभी बैंक चार बजे बंद हो जाते हैं। व्यापारी दुकान में पैसा रखता है, तो वहां चोरी का भय रहता है।

एनआईए भी कर चुकी है लॉकरों की जांच
लॉकर कंपनी के स्वामी अशोक कुमार ने बताया कि आरबीआई की मंजूरी के बाद 1992 से यह कंपनी संचालित होती आ रही है। कंपनी की वार्षिक आम बैठक भी आयोजित की जाती है और इसके दो निदेशक हैं। कंपनी नियमित तौर पर अपनी बैलेंस सीट मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स को भेजती है।

उधर, व्यापारियों का कहना है कि अशोक कुमार व उनके भाई ने इस व्यवसाय को शुरू किया था। छह साल पहले उनके भाई इससे अलग हो गए। अशोक कुमार के अनुसार, इन लॉकरों की जांच राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) भी कर चुकी है। 5 सितंबर 2017 को एनआईए की टीम जांच के लिए यहां आई थी। उन्होंने कुछ लॉकरों की जांच की थी, जबकि करीब 10 साल पहले फेरा के तहत भी लॉकरों की जांच की चा चुकी है।

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