COP 27 के मसौदे में भारत के प्रस्‍ताव का जिक्र नहीं, विकसित देश गरीब देशों की मदद के लिए नहीं आए आगे

COP 27: प्रस्‍तुत मसौदा कोयल विद्युत को चरणबद्ध तरीके से कम करने की दिशा में उपायों में तेजी लाने, प्रभावहीन जीवाश्‍म ईंधन सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और बदलाव के लिए समर्थन की आवश्‍यकता को पहचानने के निरंतर प्रयासों को प्रोत्‍साहित करता है।

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COP 27: शर्म अल शेख में आयोजित कॉप-27 सम्‍मेलन में संयुक्‍त राष्ट्र ने जलवायु समझौते का मसौदा प्रकाशित किया। इसमें सभी जीवाश्‍म ईंधनों का चरणबद्ध तरीके से इस्‍तेमाल बंद करने के भारत के प्रस्‍ताव का जिक्र नहीं किया।इस प्रस्‍ताप का यूरोपीय संघ और कई अन्‍य देशों ने समर्थन किया था। प्रस्‍तुत मसौदा कोयल विद्युत को चरणबद्ध तरीके से कम करने की दिशा में उपायों में तेजी लाने, प्रभावहीन जीवाश्‍म ईंधन सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और बदलाव के लिए समर्थन की आवश्‍यकता को पहचानने के निरंतर प्रयासों को प्रोत्‍साहित करता है।

मालूम हो कि पिछले वर्ष ग्‍लासगो में हुए जलवायु समझौते में भी कुछ इसी तरह की भाषा का इस्‍तेमाल हुआ था।पर्यावरण मंत्रालय की ओर से मिली जानकारी के अनुसार फिलहाल इस पर टिप्‍पणी नहीं की जा सकती।मसौदे के अंदर इस बात का भी कहीं जिक्र नहीं है कि हानि और क्षति वित्‍त की सुविधा कब शुरू की जाएगी।

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COP 27: गरीब देशों की मदद को विकसित देश तैयार नहीं

COP 27: मिस्र में हुए पर्यावरण सम्मेलन में वायुमंडल को स्वच्छ करने के लिए विकासशील और गरीब देशों को मदद देने के लिए विकसित देश तैयार नहीं हैं। यही वजह थी कि पर्यावरण सुधार संबंधी घोषणा पर सहमति न बन पाने के कारण सम्मेलन को एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया। बीते गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र की ओर से जो मसौदा सामने आया था उसमें ज्यादातर वही बातें हैं, जो 2021 में ग्लास्गो के सम्मेलन में कही गई थीं।इसमें कुछ भी नयापन नहीं देखने को मिला।

विकसित देशों, खासतौर से अमेरिका ने बाढ़, मध्यम गति के तूफान और ऐसी ही अन्य वजह से विस्थापित होने वालों की मदद से असहमति जता दी। कहा कि इससे वे दुनिया भर में सामान्य मौसमी बदलावों में मदद के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार हो जाएंगे।

COP 27: कई मसलों पर विकसित देश रहे पीछे

संयुक्त राष्ट्र का मसौदा वायुमंडल का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने के लिए हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में कमी के लिए प्रभावी प्रयासों की जरूरत बताता है।विकासशील और गरीब देशों की पर्यावरण सुधार के लिए धन की मांग पर इस सम्मेलन में विकसित देशों ने कोई चर्चा भी नहीं की, जबकि यह मुद्दा सम्मेलन की कार्यसूची में शामिल था।

विकसित देशों ने साल 2009 में सिद्धांत रूप में आर्थिक और तकनीक सहायता देने का प्रस्ताव स्वीकार किया था।वर्ष 2020 से यह दी भी जानी थी। 2015 में हुए पेरिस समझौते में भी प्रतिवर्ष 100 अरब डालर की यह सहायता देने का उल्लेख है, लेकिन विकसित देशों ने उसे देना शुरू नहीं किया। अब वे उस सहायता पर चर्चा भी नहीं करना चाहते। तेल और गैस का उपयोग चरणबद्ध तरीके बंद करने के प्रस्ताव पर भी विकसित देश चुप हैं। विशेषज्ञ इसे हैरान करने वाला रुख बता रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के ताजा मसौदे का अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई विकासशील देश समर्थन कर रहे हैं।

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