RD Burman’s Birth Anniversary: पंचम दा ‘सुरों के जादूगर’…

पंचम दा को बॉलीवुड संगीत में क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। उनके संगीत में विभिन्न शैलियों के प्रभावों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल थी। उन्होंने लोकप्रिय प्रेम कहानियों में संगीत देने के लिये इलेक्ट्रॉनिक रॉक को लोकप्रिय बनाया तो वहीं वह अक्सर बंगाली लोक संगीत के साथ डिस्को और रॉक तत्वों की जुगलबंदी किया करते थे।

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RD Burman's Birth Anniversary
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RD Burman’s Birth Anniversary: पंचम दा यानी आर.डी. बर्मन संगीत जगत का वो नाम है जिसमें केवल और केवल सुर ही सुनायी देते हैं संगीत के साथ एक्सपेरीमेन्ट ,पाश्चात्य और पेपी म्यूज़िक की शुरूआत आर.डी. बर्मन ने ही की और इसी के साथ दुनिया के सामने आए पंचम के वो सुरीले सुर जिसने सबको अपना दीवाना बनाया। तो आईये आपको पंचम सुरों के अनोखे सफऱ के बारे में बताते हैं:

RD Burman’s Birth Anniversary: पंचम सुर में रोते थे पंचम दा…

राहुल देव बर्मन का जन्म 27 जून 1939 को कोलकाता में हुआ। इनकी माता मीरा और पिता सचिन देव बर्मन, जो खुद हिन्दी सिनेमा के महान संगीतकार औऱ गायक थे, उन्होनें बचपन से ही आर. डी बर्मन को संगीत के सुरों में बांधना शुरू कर दिया था और संगीत के दांव-पेंच सिखाने शुरु कर दिये थे। कहा जाता है बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, जिसके चलते इन्हें पंचम कह कर पुकारा जाने लगा। कुछ लोगों का कहना ये भी है कि जब अभिनेता अशोक कुमार ने राहुल को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि ‘ये पंचम में रोता है’ तब से उन्हें “पंचम” कहा जाने लगा।

आर.डी. बर्मन ने अपनी शुरुआती शिक्षा बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल कोलकाता से ली। उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद भी सीखा औऱ केवल नौ बरस की उम्र में ही उन्होंने अपना पहला संगीत ”ऐ मेरी टोपी पलट के” को दिया, जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। छोटी सी उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये” की धुन तैयार कर ली थी जिसे गुरुदत्त ने अपनी फ़िल्म “प्यासा” में लिया।

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जब सचिन दा के बजाय महमूद ने अपनी फिल्म के लिये पंचम को चुना…

1961 की बात है। जब निर्देशक एस.ए. अकबर एक फिल्म बना रहे थे। फिल्म का नाम “छोटे नवाब” था। इस फिल्म में महमूद, जॉनी वॉकर और हेलेन जैसे कलाकार अभिनय कर रहे थे। इस फिल्म को हास्य कलाकार महमूद ही प्रोड्यूस भी कर रहे थे। वो चाहते थे कि एस.डी. बर्मन इस फिल्म का संगीत कम्पोज़ करें लेकिन बर्मन दादा के पास उस समय तारीखों की दिक्कत थी इसलिए उन्होंने इस फिल्म का संगीत तैयार करने से मना कर दिया। उसी रोज़ महमूद की नज़र आर.डी. बर्मन पर गई जो उस वक्त रियाज़ कर रहे थे, बस, फिर क्या था महमूद ने सोच लिया कि उनकी फिल्म का संगीत आर. डी. बर्मन ही देगें और फौरन ही इस फिल्म के संगीत के लिए उन्हें साइन कर लिया। स्वतन्त्र रूप से बतौर संगीत निर्देशक आर.डी. बर्मन की ये पहली फिल्म थी।


पंचम दा ने जब अपनी पहली फिल्म के पहले गाने का संगीत जैसे ही तैयार किया, उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ लता मंगेशकर का नाम आया। दरअसल, वो अपना तैयार किया गया पहला गाना लता मंगेशकर की आवाज़ में ही रिकॉर्ड कराना चाहते थे। पर परेशानी ये थी कि उस समय लता मंगेशकर और आर.डी. बर्मन के पिता एस.डी. बर्मन में इस समय मनमुटाव चल रहा था। हालात ऐसे थे कि दोनों एक दूसरे के लिए काम करना बंद कर चुके थे। ना तो बर्मन दा लता मंगेशकर से गाने गवाते थे और न ही लता मंगेशकर उनके लिए गाने को तैयार होती थीं।

ये सिलसिला काफी साल तक चला। इस मनमुटाव की कहानी जानने के बाद भी आर.डी. बर्मन ने संगीतकार जयदेव के जरिए अपनी बात लता जी तक पहुंचाई। जयदेव उस वक्त सचिन दा के सहायक हुआ करते थे। लता मंगेशकर इस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए तैयार हो गईं । लेकिन वो क्या वजह थी कि लता पंचम दा की बात मानने को तैयार हो गयीं इससे जुड़ा किस्सा भी बेहद दिलचस्प है।

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आखिर लता नाराज़ होने के बाद भी पंचम दा के लिये गाने को तैयार हो गयीं…

दरअसल, आरडी बर्मन जब 15-16 साल के थे। तो एक रोज़ वो महालक्ष्मी स्टूडियो में लता मंगेशकर से ऑटोग्राफ लेने पहुंच गए। उस वक्त आरडी बर्मन ने शर्ट और शॉर्ट्स पहन रखी थी। लता जी ने सचिन दा से पूछा कि “भई ये कौन लड़का है” तो सचिन दा ने बोला कि “ये अपना पंचम है” । लता जी आर.डी. बर्मन के बारे में काफी सुन रखा था । वो जानती थीं कि आर.डी. बहुत शरारती हैं। उन्होंने ऑटोग्राफ तो दिया लेकिन उस पर लिखा, “आर.डी. शरारत छोड़ो।” ये दिलचस्प बात है कि ठीक 5 साल बीते ही थे कि जब आर.डी. बर्मन ने बाकायदा संगीत निर्देशक अपने पहले गाने के लिए लता मंगेशकर से संपर्क किया। बस फिर क्या था ,लता मंगेशकर भी ना नहीं कर पाईं। उन्होंने ना सिर्फ इस गाने को रिकॉर्ड किया बल्कि पंचम को बहुत सारी कामयाबी की शुभकामनाएं भी दीं।
पंचम केवल पाश्चात्य धुनों के साथ ही प्रयोग कर सकते हैं…

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विजय आनंद के निर्देशन में 1966 में फिल्म तीसरी मंजिल रिलीज हुई। इस फिल्म में शम्मी कपूर और आशा पारिख अभिनय कर रहे थे। इस फिल्म की सफलता में इसके संगीत का बड़ा योगदान रहा। इस फिल्म के गानों को याद कीजिए। एक से बढ़कर एक गाने मसलन- ओ हसीना जुल्फों वाली जानेजहां, आजा-आजा मैं हूं प्यार तेरा, तुमने मुझे देखा और ओ मेरी सोना रे सोना रे जैसे गाने रातोंरात लोगों की जुबान पर चढ़ गए। यूं तो पंचम दा फिल्म इंडस्ट्री में तब तक एक स्वतंत्र संगीत निर्देशक के तौर पर करीब पांच साल का वक्त बीता चुके थे।

इन गानों की कामयाबी के साथ फिल्म इंडस्ट्री में आर.डी. बर्मन को एक नई पहचान मिली और वो पंचम दा के नाम से मशहूर हुये। इस फिल्म के संगीत में खास किस्म की तेजी थी, नशा था। पाश्चात्य धुनों के साथ-साथ पाश्चात्य इंस्ट्रूमेंट्स का काफी इस्तेमाल हुआ था। यही वजह थी कि उस दौर में कुछ लोगों ने आर.डी. बर्मन की संगीत की जानकारी पर सवाल उठाने लगे कि वो केवल पाश्चात्य धुनों के साथ ही प्रयोग कर सकते हैं लेकिन संजीदा संगीत की बात की जाये तो पंचम की धुनों में देखने को नहीं मिलता।

इस सवाल का जवाब आर.डी. बर्मन ने अगले ही साल रिलीज हुयी फिल्म “चंदन का पालना” के एक गाने “ओ गंगा मईया” से दिया।जिसका संगीत शास्त्रीय राग जोगिया पर आधारित था। ये फिल्म इस्माइल मेमन की थी और इसमे धर्मेंद्र और मीना कुमारी ने अभिनय किया था। इस गाने के बाद लोगों को पता चला कि आरडी बर्मन को पारपंरिक संगीत की भी बखूबी जानकारी है और हो भी क्यों ना पंचम दा ने बाकायदा उस्ताद अली अकबर खान और सामता प्रसाद जैसे विश्वविख्यात कलाकारों के सानिध्य में रहकर संगीत की बारीकियां सीखीं थीं। सलिल चौधरी को वो अपना गुरू मानते थे। यही वजह थी की उन्हें पारंपरिक संगीत की अच्छी समझ थी। यही नहीं राग थोड़ी और खामज पर भी इनकी अच्छी पकड़ थी उन्होनें इस पर आधारित एक गाना “रैना बीती जाये” का संगीत दिया जिसे आनंद बख्शी ने लिखा था और आवाज़ दी थी लता जी ने ….ये गाना आज भी बेहतरीन क्लासिकल गानों में शामिल किया जाता है। इसके बाद कई और गानों की धुन दी जो शास्त्रीय रागों पर आधारित थे। इनमें शामिल हैं बीते न बितायी रैना,मेरे नैना सावन भादो,पिया बावरी,हमें तुमसे प्यार कितना ,क्यों नये लग रहें हैं धरती,गगन जैसे कई ऐसे गाने जो बेहद हिट रहे और क्लासिकल गानों की फेहरिस्त में बेहतरीन गानों में शुमार किये जाते हैं।

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आशा और पंचम की जुगलबंदी…

पंचम दा की दो शादियाँ हुयीं। आर. डी. बर्मन की पहली पत्नी रीता पटेल थीं, जिनसे वह दार्जिलिंग में मिले थे । कहा जाता है कि उनकी प्रशंसक रीता ने अपने दोस्तों से शर्त लगाई थी कि उसे बर्मन के साथ फिल्म-डेट मिल जाएगी। दोनों ने 1966 में शादी कर ली लेकिन वो असफल रही और 1979 में दोनों का तलाक हो गया। 1982 में आयी “परिचय” का गीत “मुसाफिर हूँ यारों” तब रचा गया था जब वह अलगाव के बाद एक होटल में अकेले रह रहे थे। हालांकि पहली शादी चल नहीं पायी और आशा जी से उनकी दूसरी शादी हुयी।

पंचम ने 1980 में आशा से शादी कर ली। उन्होंने साथ में कई हिट गाने रिकॉर्ड किए और कई लाइव कॉन्सर्ट भी किए। आशा और पंचम का रिश्ता न केवल म्यूजिक से ही जुड़ा था बल्कि पंचम दा की शरारतें भी आशा जी को बहुत भाती थीं। शरारती बर्मन और आशा के बीच अक्सर खाना बनाने को लेकर झगड़ा होता था। वो कहते थे कि “वो ज्यादा अच्छा खाना बना लेते है” जब कि आशा जी कहतीं की “वो ज्यादा अच्छा बना लेती हैं”। आशा जी ने तो उनके सारे खाने सीख लिये थे लेकिन पंचम दा कभी भी उनके जैसा खाना बना नहीं पाते थे। आशा जी ने अपने रेस्टोरेन्ट में उनके नाम की कई डिशेस भी रखी है । जो आज भी पंचम के नाम से फेमस है।

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पंचम दा को राजेश खन्ना,आशा और किशोर की तिकड़ी पसंद थी…

पंचम दा को राजेश खन्ना ,आशा और किशोर कुमार की तिकड़ी बेहद पसन्द थी। उनके अधिकतर कम्पोज़ किये गये गाने इन्हीं के लिये कम्पोज़ किये गये थे। जो बेहद हिट रहे। ‘कटी पतंग’,’अराधना’, ‘अमर प्रेम’ फिल्में खासतौर से अपने संगीत के लिये जानी जाती हैं।1970 में पंचम ने ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के लिये संगीत तैयार किया। इस फिल्म का गाना ‘दम मारो दम’ जिसे आशा जी ने गाया था बेहद हिट रहा हालांकि इस गाने का पूरा संस्करण देव साहेब ने अपनी फिल्म में शामिल नहीं किया क्योंकि उन्हें डर था कि पूरी फिल्म पर ये गाना कहीं भारी न पड़े।

पिता सचिन दा की आखिरी फिल्म को बेटे राहुल देव ने पूरा किया…

31 अक्टूबर 1975 में अपने पिता सचिन देव बर्मन की मृत्यु के बाद उन्होंने कई ऐसी फिल्में कीं । जो बेहद हिट रही औऱ अपनी पिता की उस अधूरी फिल्म में भी पंचम दा ने ही संगीत दिया जो उनकी आक्समिक मृत्यु के बाद अधूरी रह गयी थी और वो फिल्म थी “मिली”… जिसे पंचम दा ने पूरा किया और इस फिल्म का संगीत बेहद हिट रहा। पंचम ने कई ऐसे नये गायकों को मौका दिया जो बाद में सफलतम गायकों में से शुमार हुये जिनमें हरिहरन, अभिजीत, कुमार शानू खास तौर से वो गायक हैं जिन्होंने पंचम के संगीत को अपने सुरों से सजाया।

पंचम दा का अन्तिम सफऱ मुफलिसी में बीता…

राजेश खन्ना ,आशा और किशोर कुमार की तिकड़ी पंचम की सबसे फेमस तिकड़ी थी। राजेश खन्ना-किशोर-आरडी बर्मन तीनों ने एक साथ 32 फिल्मों में एक साथ काम किया लेकिन कोई और भी था जो पंचम के लिये बेहद खास था और वह थी गुलजार साहब और पंचम दा की दोस्ती। दोनों ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक यादगार नगमों को दिया औऱ उस वक्त भी गुलज़ार ने पंचम का साथ दिया जब वो नये संगीतकारों की भीड़ में गुम से हो गये थे। 1980 के दशक की शुरूआत में बप्पी लाहिड़ी और अन्य संगीतकारों के आ जाने से पंचम दा को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

कई निर्माताओं ने उन्हें अपने फिल्मों में नहीं लिया और एक के बाद एक फ्लॉप फिल्मों की वजह से उन्हें काम मिलना बन्द हो गया। नासिर हुसैन जिनकी फिल्म ‘तीसरी मंज़िल’ में पंचम दा ने हिट संगीत दिया था उन्होंने भी अपनी फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में पंचम दा को नहीं लिया। 1986 में पंचम दा को ‘इजाज़त’ फिल्म में संगीत देने का मौका मिला ,जो उनके सर्वश्रेष्ठ संगीत में से एक माना गया। हालांकि, यह फिल्म कला फिल्म यानि समानांतर सिनेमा शैली से संबंधित थी , इसलिए इसने पंचम दा के व्यावसायिक फिल्मी करियर के पतन को नहीं रोक पायी। इस फिल्म के सभी 4 गाने जिन्हें आशा जी ने गाया था और गुलज़ार ने लिखा था बेहद हिट रहे और ‘मेरा कुछ सामान’ गाने के लिये आशा भोंसले को सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका और गुलज़ार को सर्वश्रेष्ठ गीत के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया लेकिन पंचम दा को कोई भी पुरूस्कार नहीं मिला।

दुर्भाग्य देखिये कि 1988 में पंचम दा को दिल का दौरा पड़ा और एक साल बाद लंदन के ‘द प्रिंसेस ग्रेस’ अस्पताल में उनकी दिल की बाईपास सर्जरी की गयी । उन्होंने 1989 में विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘परिंदा’ के लिये संगीत बनाया। उन्होंने “छोड़ के ना जाना” नामक एक गीत की रचना भी की, जिसे आशा भोंसले ने फिल्म गैंग के लिये गाया था । लेकिन चूंकि फिल्म को रिलीज होने में बहुत अधिक समय लगा और पंचम साल 1994 में सिर्फ 55 साल की उम्र में अचानक दुनिया को छोड़ कर चले गए। तो उनकी असामयिक मृत्यु के कारण निर्देशक मजहर खान ने फिल्म के संगीत के लिए तत्कालीन संगीतकार अनु मलिक को साइन कर लिया । प्रियदर्शन की एक मलयालम् फिल्म ‘थेनमाविन कोम्बाथ’ उनके  द्वारा साइन की गई आखिरी फिल्म थी, लेकिन फिल्म बने, उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। ‘1942 संगीत- ए लव स्टोरी’ उनकी आखिरी फिल्म थी जो उनके मृत्यु के बाद रिलीज़ हुयी और इसका गीत-संगीत बेहद हिट रहा और पंचम दा को उनके मरणोपरांत उनके तीसरे और आखिरी फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया।  

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गुलज़ार और पंचम का याराना…

गुलज़ार और पंचम की दोस्ती इतनी गहरी थी कि गुलजार ने अपने दोस्त पंचम के लिए बाकयदा एक नज्म लिखी। जिसका संगीत गुलजार साहब के पसंदीदा संगीतकार विशाल भारद्वाज ने तैयार किया और आवाज दी भूपिंदर ने और वो गाना था, “बारिशों का दिन,पंचम याद है,जब पहाड़ी के नीचे वादी में धुंध से झांककर निकलती हुई केल की पटरियां गुज़रती थीं,धुंध में ऐसे लग रहे थे हम जैसे दो पौधे पास बैठे हों।“


पंचम दा को बॉलीवुड संगीत में क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। उनके संगीत में विभिन्न शैलियों के प्रभावों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल थी। उन्होंने लोकप्रिय प्रेम कहानियों में संगीत देने के लिये इलेक्ट्रॉनिक रॉक को लोकप्रिय बनाया तो वहीं वह अक्सर बंगाली लोक संगीत के साथ डिस्को और रॉक तत्वों की जुगलबंदी किया करते थे । उन्होंने अपने संगीत में जैज़ म्यूज़िक का भी खूब इस्तेमाल किया, जो उन्हें स्टूडियो पियानोवादक केर्सी लॉर्ड द्वारा गिफ्ट किया गया था। पंचम दा पाश्चात्य, लैटिन, ओरिएंटल और अरबी संगीत से प्रभावित थे और इसे उन्होंने अपने संगीत में भी शामिल किया। उनका संगीत में प्रयोग कुछ अलग किस्म का था मसलन उन्होंने सैंडपेपर को रगड़ने और बांस की छड़ियों को एक साथ खटखटाने जैसी विधियों से उत्पन्न विभिन्न संगीत ध्वनियों के साथ भी प्रयोग किया ,तो वहीं उन्होंने “महबूबा, महबूबा” की शुरुआती धुनों के लिए बीयर की बोतलों में फूंक मार के संगीत की धुन को बनाया। इसी तरह, उन्होंने फिल्म ‘यादों की बारात’ के गाने “चुरा लिया है तुमने दिल को ” के लिए तीखी आवाज़ बनाने के लिए कप और तश्तरी का प्रयोग किया। उन्होंने फिल्म ‘पड़ोसन’ के गाने “मेरी सामने वाली खिड़की में” में एक खुरदरी सतह पर एक कंघे को रगड़ा, जो एक कर्कश ध्वनि उत्पन्न करने के लिए प्रयोग में लाया गया था। वाकई में पंचम दा उन रत्नों में से हैं जिसकी चमक कभी भी कम नहीं हुयी ।चाहे कोई भी जनरेशन हो हर कोई पंचम दा के म्यूज़िक पर थिरकने लगता है और जब बात संजीदा गीतों की हो तो उसमें भी पंचम दा के सुरों में लोग डूब जाते हैं ऐसे थे हमारे पंचम दा।

  • Shweta Rai

लेखक: एपीएन न्यूज़ हिंदी के लिए

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