थिएटर कौन लोग करते हैं? आपका जवाब होगा, रंगकर्मी। लेकिन क्या आप ऐसे नाटक के बारे में सोच सकते हैं जिसमें गैर-पेशेवर नाट्यकर्मियों को जगह दी जाती हो। जी हां ऐसा हुआ है। एक ऐसे नाटककार और निर्देशक थे जो ऐसा किया करते थे, नाम था हबीब तनवीर। जिनके बारें में हम आज आपको बताएंगे।
आज जाने माने नाटककार हबीब तनवीर की पुण्यतिथि है। करीब 14 साल पहले इस रंगकर्मी ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। तनवीर का जन्म 1 सितंबर 1923 को रायपुर में हुआ था। उनकी गिनती हिंदी- उर्दू के मशहूर नाटककारों में होती है। इसके अलावा वे नाटकों का निर्देशन भी किया करते थे। उन्होंने खुद बतौर शायर और अभिनेता काम भी किया। जो लोग उनके बारे में नहीं जानते , वे ये समझ सकते हैं कि उनकी गिनती पृथ्वीराज कपूर के साथ होती थी।
हबीब तनवीर के जाने -माने नाटकों की बात की जाए तो इसमें ‘आगरा बाजार’ और ‘चरणदास चोर’ शामिल हैं। उनकी खासियत ये थी कि उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनजातियों संग ‘नया थिएटर’ की शुरूआत की। उन्होंने थिएटर को एक नई जुबां देने का काम किया। तनवीर अपने थिएटर के जरिए ग्रामीण लोगों के जीवन को शहरी लोगों तक लाते थे। वे दो समाजों के बीच थिएटर के जरिए पुल बनाते थे।
उनके करियर की बात की जाए तो उन्होंने शायरी लिखने से शुरूआत की। 1945 में वे बम्बई पहुंचे और ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की। उस समय वे फिल्मों के लिए गीत भी लिखते थे। इसके बादे वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गए और इप्टा के लिए काम करने लगे।
1954 में वे दिल्ली आए और हिंदुस्तानी थिएटर के लिए काम किया। इस बीच वे चिलड्रन थिएटर से भी जुड़े रहे और कई नाटक लिखे। उन्होंने नजीर अकबराबादी की शायरी के आधार पर ‘आगरा बाजार’ नाटक रचा।
इसके बाद हबीब यूरोप गए। वहां उन्होंने जर्मन नाटक कंपनी Berliner Ensemble का नाटक Bertolt Brecht देखा , जिसका उन पर गहरा असर हुआ। भारत लौटे तो उन्होंने छत्तीसगढ़ी नाच और पांडवानी के साथ प्रयोग किया।
भारत सरकार ने उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, कालीदास सम्मान, पद्मूभूषण से सम्मानित किया। वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे।