उत्तर प्रदेश में क्या दलित राजनीति नया मोड़ ले रही है? सहारनपुर में हिंसा के बाद भीम सेना के दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन के साथ दलितों के बीच एक और चेहरा उभरने की कोशिश में दिख रहा है। मौजूदा राजनीति में अभी तक दलितों के रहनुमा के तौर पर मायावती का ही नाम उभर कर सामने आता था लेकिन अब भीम सेना के मुखिया चंद्रशेखर ने इसको तोड़ने की कोशिश की है और अपनी अलग पहचान बनाई है। शायद इसलिए मायावती को चुनाव के अलावा भी अपने घर से बाहर निकल कर सड़क पर उतरना पड़ रहा है। क्या जिस तरह के हालिया चुनावी नतीजे रहे उससे यह तस्वीर अब साफ होने लगी है कि मायावती का साम्राज्य अब दरकने लगा है।

मगंलवार 23 मई को एपीएन न्यूज के खास कार्यक्रम मुद्दा में दो अहम विषयों पर चर्चा हुई। इसके पहले हिस्से में मायावती के दरकते सामाज्य पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन), फैज खान (बसपा प्रवक्ता), शहजाद पूनावाला (कांग्रेस नेता), प्रो. रविकांत (दलित चिंतक) हरीश श्रीवास्तव (प्रवक्ता बीजेपी) शामिल थे।

फैज खान ने कहा कि दलितों तथा अल्पसंख्यकों पर जब भी अत्याचार हुआ है। यूपी में ही नही देश में कही भी जब भी हुआ है बहन जी पहुंची हैं और सहारनपुर जाने का सिर्फ एक ही मकसद है जातिवाद की राजनीति जो बीजेपी यूपी में कर रही है योगी जी के नेतृत्व में वह निहायत ही दुखद है। 2 महीने की सरकार जो जातिवाद हिंसक रुप ले चुकी है। बीजेपी सामाजिक रुप से प्रदेश में जो बंटवारा कर रही है वो निहायत ही शर्मनाक है।

प्रो. रविकांत ने कहा कि मायावती जी पहुंची हैं अच्छी बात है। सारे राजनीतिक दलों को इसकी पहल करनी चाहिए कि हिंसा ना हो। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव और इस विधानसभा चुनाव में दलितों को हिन्दू की भूमिका में बदल दिया। दलितों में जो चेतना थी उसको धर्म में तब्दील कर दिया है।

गोविंद पंत राजू ने कहा कि मायावती का सहारनपुर जाने की मुख्य वजह ये है कि उनको दुकान बंद होने का खतरा लग रहा है। दलित राजनीति को बीएसपी ने यूपी में एक मुकाम दिया था और सहारनपुर वो जगह है जहां से दलित राजनीति का वह पहला पड़ाव है जहाँ मायावती जी ने राजनीति में कदम रखे थे। मायावती जितनी बार भी मुख्यमंत्री बनी उनकी राजनीति में ईमानदारी से दलितों के लिए कहीं कोई चिन्ता नही दिखी। केवल व्यक्तिगत कोष के लिए चिंता थी और अपने आस-पास जो लोग है उनके हित में रही।

हरीश श्रीवास्तव ने कहा कि जो लोग केवल स्लोगन की राजनीति करते रहे उनके मुंह से ऐसी बात अच्छी नही लगती। मुजफ्फरनगर में दलितों के घर उजाड़ दिये गये थे मायावती जी को वहां जाने का अवसर नही मिला था और वो सहारनपुर दलितों के लिए नही गई हैं उनके मन में दलितों के लिए प्रेम नही वोट के लिए प्रेम है। यूपी की सरकार गरीबों के लिए समर्पित सरकार है और लोगों के लिए समान रुप से न्याय दिलाने के लिए समर्पित है।

तीन तलाक पर AIMPLB का नरम रुख

तीन तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रुख में लगातार नरमी आती जा रही है। रुख में यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट में छह दिन तक चली सुनवाई के दौरान ही दिखने लगा था लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश की है। सुप्रीम कोर्ट में दिये गये हलफनामे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वह कुछ नियमों की अडवाइजरी जारी करेगा जो निकाह करने वालों को मानना होगा। आखिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अचानक इस नरम रुख की वजह क्या है? क्या ये वक्त की नजाकत है जिसे वो स्वीकार करने पर मजबूर है

इसके दूसरे हिस्से में तीन तलाक के मुद्दे पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए भी विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू, हरीश श्रीवास्तव, शहजाद पूनावाला, अजय गौतम ( हिन्दू धर्मगुरु) व अब्दुल हमीद नमानी ( मुस्लिम धर्म गुरु) शामिल थे।

गोविंद पंत राजू ने कहा कि इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि जो सच्चाई है उसको स्वीकार करना मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को वक्त की नजाकत और जरुरत को समझते हुए सही दिखाई दे रही है कि सच्चाई को स्वीकार करें। शुरु में जो इन्होने इसको शरियत का अपर्हाय हिस्सा कहने का जो एक तरह की अपनी जिद रखी थी वो समाज में अपने वर्चस्व को बरकरार रखने की कोशिश का हिस्सा थी।

अब्दुल हमीद नमानी ने कहा कि आपके यहां भी हत्या और भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बना हुआ है लेकिन लोग उसके खिलाफ जा रहे हैं तो वो अपराधी है। जो एक बार में तीनों तलाक दे रहा है तो उसको अपराधी घोषित करके कानून बनाके उसको सजा देने का प्रावधान क्यों नही करते हैं। इसमें दिक्कत क्या है?

शहजाद पूनावाला ने कहा कि  ये बात तो सही है कि जो स्थिति ईस्लाम में है तीन तलाक को एक समय में कहने की उस स्थिति से अलग स्टैंड ले रहा है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और पता नही क्यों इस मुल्क ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को तमाम मुसलमानों का रहनुमा बना कर रख दिया है। लेकिन अगर किसी भी दबाव के कारण अगर वो उदारवादी नीति पर चल रहे हैं तो अच्छी बात है।

हरीश श्रीवास्तव ने कहा कि  अनेक मामले अखबारों के माध्यम से मीडिया के माध्यम से सामने आते हैं कि किस तरह से तीन तलाक से महिलाएं पीड़ित होती है किस तरह का जीवन उनको बसर करना पड़ता है। ये मामला सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में लिया है।

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