कहते हैं मतलब की दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकती।यही हुआ सपा-कांग्रेस की बेमेल दोस्ती का भी। जिसका असर अब जनता को राज्य के निकाय चुनाव में देखने को मिलेगा। हाल ही में यूपी विधानसभा चुनाव में जनता के बीच “यूपी को ये साथ पसंद है” का नारा देने वाले राहुल-अखिलेश की जोड़ी राज्य में होने वाले निकाय चुनाव में अलग-अलग नजर आएगी। दिल्ली में पार्टी महासचिव गुलाम नबी आजाद और यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर की मौजूदगी में हुई बैठक में पार्टी ने खुद के दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। खबरों के मुताबिक बैठक में मौजूद पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर देश के सबसे बड़े राज्य में पार्टी को दोबारा खड़ा करना है तो स्थानीय चुनाव में अकेले ही उतरना बेहतर होगा।

एपीएन की खास पेशकश मुद्दा में आज कांग्रेस-सपा के दोस्तानें पर लगते सवालिया निशान पर चर्चा किया गया। इस चर्चा में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया गया। जिसमें अतुल चंद्रा (वरिष्ठ पत्रकार), बी के गोस्वामी (प्रवक्ता बीजेपी), रविदास मेहरोत्रा (नेता सपा) सुरेन्द्र राजपूत (नेता कांग्रेस) शामिल रहे। शो का संचालन एंकर हिमांशु दीक्षित ने किया।

कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत का मत है कि स्थनीय निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होते हैं। पहले स्थानीय और ग्राम पंचायत चुनाव में राजनीति नहीं होती थी लेकिन समय के साथ-साथ वह भी बदल गया। आज हमारे पार्टी कार्यकर्ता संप्रदायिक शक्तियों से लड़ने के लिए उत्साहित हैं, जिसके लिए हम हर वार्ड और क्षेत्र में जाकर लोगों के बीच अपना मत रखेंगे। उन्होंने बीजेपी प्रवक्ता पर तंज कसा की आज वह हार जीत की बातें कर रहे हैं। पीएम मोदी के बल पर जीतने वाली बीजेपी बताए कि पिछले सालों में वह कितनी बार चुनाव जीते हैं।

सपा नेता रविदास मेहरोत्रा ने कांग्रेस प्रवक्ता पर कटाक्ष करते हुए कहा कि हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 2012 चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को हराया था। लेकिन इस बार हमें हराने में कांग्रेस का हाथ रहा। उन्होंने 1976 के गठबंधन का उदाहरण देते हुए बताया था कि किस प्रकार जय प्रकाश नारायण जी ने आपातकाल के दौरान सारी पार्टियों को एकत्रित कर एक सशक्त गठबंधन तैयार कर इंदिरा जी को हराने का काम किया था।

बीजेपी प्रवक्ता बी के गोस्वामी का मत है कि यूपी चुनाव में गठबंधन के बाद कांग्रेस की स्थिती बत से बत्तर हो गई। 22-25 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी 7 सीटों पर सिमट कर रह गई। हम किसी की चुटकी नहीं ले रहे केवल जनता से किए वादे और घोषणापत्र पर काम कर रहे हैं। इसी कम के लिए जनता ने विपक्षी दलों को सिरे से नकारकर बीजेपी को सत्ता में बैठाया है।

वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा का मत है कि 60 सालों से सत्ता में राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का जनाधार खत्म हो गया है जिसका कारण कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा अपने कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ना है। कांग्रेस को आत्ममंथन की जरुरत है जिसके लिए पार्टी को गठबंधन से अलग होकर खुद के बल पर निकाय चुनाव सहित अन्य चुनाव लड़ने की जरुरत है। उन्होंने सपा नेता पर तंज कसा कि “सपा के हार का कारण राहुल-अखिलेश गठबंधन नहीं बल्कि सपा का अपना पारिवारिक कलह था।“

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