राम जन्म भूमि अयोध्या में इस बार होने जा रहा राम लीला बहुत खास होने जा रहा है। दशहरे के अवसर पर हर साल होने वाले इस विश्वप्रसिद्ध रामलीला में इंडोनेशिया के कलाकार भी हिस्सा लेंगे। इस रामलीला में इंडोनेशिया के 12 कलाकार लगभग 13 दुर्लभ वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तृति देंगे। इन 12 कलाकारों में सभी मुस्लिम हैं, जिनमें 6 पुरुष और 6 महिलाएं हैं।

आपको बता दें कि मुस्लिम बाहुल्य देश इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत दोनों की काफी मान्यता है और वहां के लोग इन दोनों महाग्रंथों में आस्था रखते हैं। हालांकि जहां भारत में ऋषि वाल्मीकि और तुलसीदास के रामायण को मान्यता प्राप्त है तो वहीं इंडोनेशिया में कवि योगेश्वर की लिखी रामायण का मंचन किया जाता है।

उत्तर प्रदेश के संस्कृति एवं धार्मिक कार्य विभाग के मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने बताया कि, ‘इंडोनेशिया की एक रामलीला समिति अयोध्या और लखनऊ में 13 से 15 सितंबर के बीच रामलीला का मंचन करेगी। मंचन करने वाले कलाकार मुस्लिम हैं और वे मांसाहारी नहीं हैं। वे हिंसा में भी विश्वास नहीं करते।’

मंत्री ने दावा किया कि पहली बार राज्य में इस तरह की रामलीला का मंचन हो रहा है, जिसमें विदेशी कलाकार हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि इंडोनेशिया के मुस्लिम कलाकारों के रामलीला मंचन के जरिए हम ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि मुस्लिम बाहुल्य देश होने के बावजूद वहां के कलाकारों को रामलीला का मंचन करने में कोई दिक्कत नहीं है। चौधरी ने दो टूक कहा कि ‘जब विदेशी कलाकारों को भगवान राम को स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं आती तो हमारे यहां क्यों दिक्कत आती है?’

पढें- सरकार मस्जिद के लिए कहीं और विकल्प दे तो बन सकता है राम मंदिर : शिया वक्फ बोर्ड

कार्यक्रम की जानकारी देते हुए अवध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने बताया कि विश्वविद्यालय के स्वामी विवेकानंद सभागार में रामलीला का मंचन होगा। उन्होंने कहा कि रामलीला का इंडोनेशिया से सुदृढ सांस्कृतिक संबंध है। हम चाहते हैं कि राम नगरी होने के कारण अयोध्या में अधिक से अधिक देशों की रामलीला का मंचन हो। प्रो. दीक्षित ने बताया कि दुनिया भर में 65 देश हैं, जहां रामलीला का मंचन होता है। इसके अलावा भारत में भी सौ तरह की रामलीलाएं होती हैं और हम इन रामलीलाओं का मंचन अयोध्या में कराने का प्रयास कर रहे हैं।

इंडोनेशिया में रामायण

रामायण का इंडोनेशियाई संस्करण सातवीं सदी में मेदांग राजवंश के शासन के दौरान मध्य जावा में लिखा गया था। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णन है कि कपिराज सुग्रीव ने सीता की खोज में पूर्व की तरफ रवाना हुए दूतों को यवनद्वीप और सुवर्ण द्वीप जाने का भी आदेश दिया था। कई इतिहासकारों के मुताबिक यही आज के जावा और सुमात्रा हैं। आपको बता दें कि इंडोनेशिया में तीन तरह की रामलीला होती हैं जिसे पपेट, शैडो पपेट और बैले रामलीला कहा जाता है। इंडोनेशियाई रामायण की एक खासियत यह है कि कलाकार रामलीला की शुरुआत सीता हरण से करते हैं और रावण के वध पर समाप्त कर देते हैं। यहां दशरथ को विश्वरंजन, सीता को सिंता, हनुमान को अनोमान कहा जाता है।

[vc_video link=”https://www.youtube.com/watch?v=J2WCNhqjGVA”]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here