Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी

मिथिला में प्रकृति से जुड़े त्योहारों का महत्व हमेशा से ही बहुत ज्यादा रहा है। जहां एक ओर मिथिला निवासी सूर्यदेव की पूजा कर छठ पर्व मनाते हैं।

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Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी
Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी

Chaurchan Puja in Mithila: गणेश चतुर्थी 2022 का शुभ त्योहार कल से शुरू होने जा रहा है। कल यानी 31 अगस्त से शुरू होने वाला गणेशोत्सव 9 सितंबर तक चलेगा। गणेश चतुर्थी से जुड़ी कई रस्में और परंपराएं हैं, जिनमें से एक यह है कि त्योहार के दौरान भक्तों को चंद्रमा नहीं देखना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दौरान चंद्रमा को देखना एक अपशकुन माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, बिहार के मिथिला में गणेश चतुर्थी से पूर्व संध्या काल, चंद्र देव की पूजा की जाती है? हां, यहां की रस्म पूरी तरह से विपरीत है, और इसे चौरचन के नाम से जाना जाता है। यह बिहार के मैथिलों के बीच एक महत्वपूर्ण त्योहार है।

Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी
Chaurchan Puja in Mithila

आज मिथिला क्षेत्र में चौरचन त्योहार मनाया जा रहा है जहां चंद्रमा की पूजा की जाती है। आज भक्त शाम के समय चंद्रमा को पिरिकिया, खीर, फल, दही,पूरी और मिठाई दिखाते हैं और पूजा पूरी होने के बाद, सभी खाद्य पदार्थों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस लेख में, हम आपको इस अनोखे चौरचन के पीछे की कहानी, महत्व और पूजा विधि बताते हैं:

Chaurchan Puja in Mithila: चौरचन पर्व कब मनाया जाता है?

चौरचन, गणेश चतुर्थी के दिन या एक दिन पहले तिथि के अनुसार मनाया जाता है, इस दौरान चंद्र देव और गणेश की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है।

यह भी इसी दिन मनाया जाता है। इस वर्ष चौरचन मंगलवार 30 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा। यह पर्व मिथिला यानी बिहार में मनाया जाता है। इस दिन चंद्र देव की पूजा की जाती है।

Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी
Chaurchan Puja in Mithila

Chaurchan Puja in Mithila: चौरचन का महत्व

मिथिला में प्रकृति से जुड़े त्योहारों का महत्व हमेशा से ही बहुत ज्यादा रहा है। जहां एक ओर मिथिला निवासी सूर्यदेव की पूजा कर छठ पर्व मनाते हैं। वहीं चौरचन का पर्व चंद्र देव की पूजा के लिए खास माना जाता है। इस दिन चंद्र देव की पूजा करने से जातक को झूठे कलंक से मुक्ति मिलती है। भक्त अपने घरों से उगते चंद्रमा की पूजा करके त्योहार मनाते हैं।

Chaurchan Puja in Mithila: चौरचन पूजा विधि

Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी
Chaurchan Puja in Mithila

इस दिन भक्त सुबह से शाम तक व्रत रखकर पूजा में लगे रहते हैं। शाम को घर के आंगन को गाय के गोबर से साफ करते हैं। फिर केले के पत्ते की सहायता से गोलाकार चन्द्रमा बना लें। अब उस पर तरह-तरह के मीठे व्यंजन जैसे खीर, मिठाई और फल रखें।

रोहिणी नक्षत्र सहित चतुर्थी में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके चमकीले फूल से चंद्रमा की पूजा करें। इसके बाद घर में जितने लोग हों, उतने ही भोजन से भरे बर्तन और दही का बर्तन रखें।

अब हाथों में दही का घड़ा, केला, खीरा आदि उठाते हुए एक-एक करके डाल दें। ‘सिंह: प्रसेनमवधिसिंहो जंबवत हाट। सुकुमार मंदिस्तव हयेशा स्यामंतका: स्थ ‘इस मंत्र को पढ़कर चन्द्रमा को समर्पित कर दें।

Chaurchan Puja in Mithila: चौरचन की कहानी

एक दिन भगवान गणेश अपने वाहन मूस के साथ कैलाश पर घूम रहे थे। तभी अचानक चंद्र देव उन्हें देखकर हंसने लगे, गणेश जी को उनकी हंसी का कारण समझ में नहीं आया। उन्होंने चंद्र देव से पूछा कि आप क्यों हंस रहे हो? इसका जवाब देते हुए चंद्र देव ने कहा कि वह भगवान गणेश के विचित्र रूप को देखकर हंस रहे हैं।

Chaurchan Puja in Mithila: बिहार के मिथिला में की जाती है श्रापित चंद्रमा की पूजा, जानें इसके पीछे की कहानी
Chaurchan Puja in Mithila

चंद्र देव की उनका मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति पर गणेश जी बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने चंद्र देव को श्राप दिया कि आपको अपने रूप पर इतना गर्व है कि आप बहुत सुंदर दिखते हैं लेकिन आज से आप कुरूप हो जाएंगे। जो कोई आपको देखेगा उस पर झूठा कलंक लगेगा। अपराध न होने पर भी उसे अपराधी कहा जाएगा।
श्राप सुनते ही चंद्र देव का अभिमान कुचल गया। उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी और कहा कि भगवान मुझे इस श्राप से मुक्ति दिलाएं।

चंद्र देव को क्षमा करते हुए गणेश जी ने कहा कि मैं अपना दिया हुआ श्राप वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन महीने में एक दिन आपका रंग पूर्ण रूप से काला होगा और फिर धीरे धीरे प्रतिदिन आपका आकार बड़ा होता जाएगा। तथा माह में एक बार आप पूर्ण रूप से दिखाई देंगे। कहा जाता है कि तभी से चंद्रमा प्रतिदिन घटता और बढ़ता है। गणेश जी ने कहा कि मेरे वरदान के कारण आप दिखाई अवश्य देंगे, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन जो भी भक्त आपके दर्शन करेगा उसे अशुभ फल की प्राप्ति होगी। इसलिए कहा गया कि जो कोई भी गणेश चतुर्थी पर चंद्र देव को देखेगा। उस पर झूठा आरोप लगाया जाएगा। इससे बचने के लिए मिथिला में गणेश चतुर्थी की शाम को चंद्रमा की पूजा की जाती है।

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