वैलेंटाइन डे का इंतजार हर प्यार करने वाले को रहता है। खासकर प्रेमी जोड़े इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हर प्यार करने वाला चाहता है कि वह अपने महबूब से खास अंदाज में अपनी मोहब्बत का इजहार करे। इस बात से शायद ही कोई इंकार करे कि शायरी इश्क का इजहार करने के मामले में आज भी बहुत कारगर है।
मिर्जा गालिब ने इश्क पर इतना कुछ लिखा है जिससे साफ जाहिर है कि उन्होंने भी मोहब्बत की थी। उनकी मोहब्बत के कुछ किस्से सुनने को मिलते हैं जिनका यहां-वहां जिक्र होता है।
गालिब को मुगल जान से हुई थी मोहब्बत
गालिब की मोहब्बत का एक किस्सा है। इस किस्से के मुताबिक गालिब को मुगल जान से प्यार हो गया था। मुगल जान नाचने गाने का काम किया करती थीं। ऐसी ही एक महफिल में गालिब को मुगल जान से मोहब्बत हो गई थी। कई जगह मुगल जान का नाम नवाब जान भी मिलता है।
हालांकि मुगल जान गालिब से नहीं किसी और से प्यार किया करती थीं। मुगल जान उस समय के एक और बेहतरीन शायर से प्यार करती थीं। मुगल जान की कम उम्र में मौत हो जाने से इस मोहब्बत का अंत हो गया।
ऐसा नहीं है कि गालिब को अपनी जिंदगी में सिर्फ एक बार मोहब्बत हुई। कई जगह एक महिला का जिक्र आता है। जिनका नाम तुर्क महिला बताया जाता है। गालिब और वे शेरो शायरी के बहाने एक दूसरे के करीब आए। हालांकि जब महिला का नाम बदनाम होने लगा तो उन्होंने खुदकुशी कर ली जिससे गालिब को बहुत दुख पहुंचा।
वैलेंटाइन डे के मौके पर मिर्जा गालिब के कुछ शेर आप लोगों के साथ हम शेयर कर रहे हैं। जिन्हें आप अपने स्पेशल वन के साथ शेयर कर सकते हैं और अपनी मोहब्बत का इजहार कर सकते हैं-
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे