दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में ऐसी सरकारी जमीन को शवों को दफनाने के लिए इस्तेमाल करने की इजाज़त मांगी गई थी जो इस तरह के उद्देश्य के लिए आवंटित नहीं की गई है। यह याचिका सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी जिसमें सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने ऐसी ज़मीन पर किसी को न दफनाने और सभी कब्रों को हटाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि उसे इस आदेश में कोई अवैधता नज़र नहीं आती है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को किसी खुली ज़मीन का उपयोग करने का अधिकार नहीं है, विशेष तौर पर सरकारी भूमि का एक कब्रगाह के तौर पर ऐसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

हाईकोर्ट में यह याचिका एक NGO कब्रिस्तान इंतज़ामिया एसोसिएशन की तरफ से दायर की गई थी। इसमें विपीन गार्डन, उत्तम नगर, पश्चिमी दिल्ली के पास एक सरकारी जमीन को कब्रगाह के तौर पर उपयोग करने से रोकने के संबंध में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि एक विधानसभा सदस्य (विधायक) के द्वारा दिए गए बयान के आधार पर उन्होंने उस सरकारी जमीन का इस्तेमाल दफनाने के लिए शुरू किया था।

सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने मामले के कानूनी पहलू पर विचार किया और 1 अगस्त, 2017 को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 133 के तहत नोटिस जारी किया और सार्वजनिक भूमि से कब्रगाह हटाने को कहा था।

दिल्ली हाईकोर्ट की कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने कहा कि “1 अगस्त 2017 को सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश में हमें कोई अवैधता नहीं मिली है और सभी पार्टियों को कड़ाई से कानून का पालन करना होगा।”

बेंच ने यह भी कहा कि सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के आदेश के उल्लंघन के खिलाफ अधिकारियों को सख्त कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here