CITES के तहत भारत के दायित्वों को प्रभावी बनाने के लिए वन्यजीव संरक्षण कानून में बदलाव, जानिए Wildlife Protection Amendment 2021 से क्या कुछ बदलेगा

Wildlife Protection Amendment के मुख्य लक्ष्यों में से एक लुप्तप्राय प्रजातियों (Endangered Species) का संरक्षण करना है। विधेयक के जरिए अवैध वन्यजीव व्यापार के लिये सजा बढ़ाने को भी लेकर कदम उठाये गये हैं।

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CITES के तहत भारत के दायित्वों को प्रभावी बनाने के लिए वन्यजीव संरक्षण कानून में बदलाव, जानिए Wildlife Protection Amendment 2021 से क्या कुछ बदलेगा - APN News
Wildlife Protection Amendment 2021

8 दिसंबर 2022 को राज्यसभा ने वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 (the Wildlife Protection Amendment Bill, 2021) को अपनी मंजूरी दे दी है। 1972 में बने वन्यजीव (संरक्षण) कानून के 50 साल के समय में इसे आठवीं बाद संशोधित किया गया है। ये विधेयक वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्त होने के कगार पर खड़ी प्रजातियों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन (Convention on International Trade on Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के तहत भारत के दायित्वों को प्रभावी बनाने के लिए लाया गया है।

पचास साल पहले वजूद में आए वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 में अब तक कई बार संशोधन हुए हैं। यह आठवां संशोधन इस कानून में प्रस्तावित है। इससे पहले 1982, 1986, 1991, 1993, 2002, 2006 और 2013 में इसमें संशोधन हो चुके हैं।

विधेयक को लेकर बोलते हुए केन्‍द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्‍द्र यादव ने वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और वन्‍यजीवों के संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि देश का वन क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। उन्‍होंने कहा कि वर्ष 2004 से 2014 के बीच जहां देश में दो लाख 26 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक के वन क्षेत्र का उपयोग दूसरे कार्यो के लिए किया गया वहीं 2014 से 2022 के बीच केवल एक लाख 30 हजार वन क्षेत्र का ही ऐसा इस्‍तेमाल हुआ है।

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Wild Protection Act 1972 1

क्या है Wildlife Protection Amendment के लक्ष्य?

Wildlife Protection Amendment के मुख्य लक्ष्यों में से एक लुप्तप्राय प्रजातियों (Endangered Species) का संरक्षण करना है। विधेयक के जरिए अवैध वन्यजीव व्यापार के लिये सजा बढ़ाने को भी लेकर कदम उठाये गये हैं।

इसके अलावा इस विधेयक में संरक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) के बेहतर प्रबंधन को लेकर भी उपाय किए गए हैं। यह स्थानीय समुदायों द्वारा पशुओं के चरने या आवाजाही और पीने एवं घरेलू जल के वास्तविक उपयोग जैसी कुछ जरूरी गतिविधियों के लिये मंजूरी देता है।

वहीं, वन भूमि के संरक्षण को लकेर इस विधेयक में संबद्धित वनक्षेत्र में सदियों से रह रहे लोगों के अधिकारों की सुरक्षा को समान रूप से शामिल किया गया है।

Wildlife Protection Amendment में संशोधन

इस संशोधन के माध्यम से CITES के तहत सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये एक नया कार्यक्रम प्रस्तावित किया गया है। इसके अलावा ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग करने एवं स्थायी समिति का गठन करने के लिये धारा 6 में संशोधन किया गया है जिससे इसे राज्य वन्यजीव बोर्ड द्वारा लागू किया जा सकता है।

पहले से लागू अधिनियम की धारा 43 में संशोधन किया गया जिसमें ‘धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य’ (Religious or any other purpose) के लिये हाथियों के उपयोग की अनुमति दी गई है।

केंद्र सरकार को एक प्रबंधन प्राधिकरण नियुक्त करने में सक्षम बनाने के लिये धारा 49E को जोड़ा गया है। वहीं इसके पिछे का मकसद केंद्र सरकार को एक वैज्ञानिक प्राधिकरण नियुक्त करने की अनुमति देना है जो व्यापार किये जाने वाले नमूनों के अस्तित्व पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित मामलों को लेकर दिशानिर्देश प्रदान कर सके।

इस विधेयक में जो सबसे बड़ी बात ये है कि ये केंद्र सरकार को विदेशी प्रजातियों के आक्रामक पौधे या पशु के आयात, व्यापार या नियंत्रण को विनियमित करने और रोकने का भी अधिकार देता है।

कितना बढ़ा जुर्माना?

इस विधेयक, अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये निर्धारित दंड को भी बढ़ाता है। इसके माध्यम से ‘सामान्य उल्लंघन’ के लिये अधिकतम जुर्माना जो पहले 25,000 रूपए था से बढ़ाकर 1 लाख रूपए कर दिया गया है। इसके अलावा विशेष रूप से संरक्षित पशुओं के मामले में न्यूनतम जुर्माना की राशि को 10,000 रूपए से बढ़ाकर 25,000 रूपए कर दिया गया है।

लेकिन अभी भी कुछ चिंताएं

इस विधेयक में हाथियों के मामले में “कोई अन्य उद्देश्य” अस्पष्ट है जो हाथियों के वाणिज्यिक व्यापार को प्रोत्साहित करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा मानव-वन्यजीव संघर्ष (International Union for Conservation of Nature), पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र नियम आदि से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया है।

India Wild Protection

संसदीय स्थायी समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार विधेयक की तीनों अनुसूचियों में सूचीबद्ध प्रजातियां अधूरी हैं। वैज्ञानिक, वनस्पतिशास्त्री, जीवविज्ञानी संख्या में कम हैं और वन्यजीवों की सभी मौजूदा प्रजातियों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिये उन्हें अधिक से अधिक शामिल करने की जरूरत है।

वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act) जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन एवं विनियमन के साथ-साथ जंगली जानवरों, पौधों व उनसे बने उत्पादों के व्यापार पर नियंत्रण को लेकर एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इसके अलावा यह 1972 में आया ये अधिनियम सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा और निगरानी प्राप्त उन पौधों और पशुओं की अनुसूची को भी सूचीबद्ध करता है।

क्या है CITES?

The Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। साल 1963 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) के सदस्य देशों की बैठक में अपनाए गए एक प्रस्ताव के बाद CITES का मसौदा तैयार किया गया था जो जुलाई 1975 में लागू हुआ था। CITES सचिवालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है और यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रशासित है। भारत भी CITES का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिये संवैधानिक प्रावधान

भारत सरकार द्वारा 1976 में किए गये 42वें संशोधन अधिनियम, 1976, के जरिये वन और जंगली पशुओं और पक्षियों के संरक्षण को राज्य से समवर्ती सूची (Concurrent List) में स्थानांतरित किया गया था। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 51A(G) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा। वहीं, संविधान के चौथे भाग में दर्ज राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) में अनुच्छेद 48A, के तहत कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और विकसित करने के साथ-साथ देश के वनों और वन्य जीव की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

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