क्या है राज्यों को मिलने वाला विशेष श्रेणी दर्जा, जिसकी बिहार कर रहा मांग?

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हाल ही में बिहार कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसके अनुसार राज्य के लिए विशेष श्रेणी दर्जे की मांग की गयी है। इस मांग के पीछे राज्य सरकार का तर्क है कि हाल ही में किए गए जातीय सर्वेक्षण से ये बात सामने आई है कि बिहार की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। इसलिए राज्य के लिए विशेष श्रेणी दर्जे की मांग तेज हो गई है। आइए विशेष श्रेणी दर्जे से जुड़ी कुछ बातें जान लेते हैं:

विशेष श्रेणी दर्जा क्या है?

विशेष श्रेणी दर्जा भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक नुकसान झेल रहे राज्यों के विकास में सहायता के लिए केंद्र द्वारा किया गया एक वर्गीकरण है। संविधान ऐसे दर्जे के लिए कोई प्रावधान नहीं करता है और यह वर्गीकरण बाद में 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों पर किया गया था। जम्मू-कश्मीर, असम और नागालैंड को पहली बार 1969 में यह दर्जा दिया गया था। पूर्व में विशेष श्रेणी दर्जा योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा प्रदान किया गया था। असम, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित ग्यारह राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया है। भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना को भी यह दर्जा दिया गया क्योंकि इसे दूसरे राज्य आंध्र प्रदेश से अलग कर बनाया गया था।

14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए ‘विशेष श्रेणी दर्जा’ खत्म कर दिया है। आयोग ने ऐसे राज्यों में संसाधन की कमी को पूरा करने के लिए कर हस्तांतरण का सुझाव दिया है और इसे 32% से बढ़ाकर 42% करने को कहा है।

गौरतलब है कि विशेष श्रेणी दर्जा, विशेष दर्जे से अलग है जो कि कुछ विशेष विधायी और राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है जबकि विशेष श्रेणी दर्जा केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 370 निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।

गाडगिल फॉर्मूला पर आधारित पैमाने:

पहाड़ी इलाका; कम जनसंख्या घनत्व या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा; पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान; आर्थिक और बुनियादी ढाँचे का पिछड़ापन; और राज्य के वित्त की गैर-व्यवहार्य प्रकृति।

विशेष श्रेणी दर्जे के क्या लाभ हैं?

विशेष श्रेणी दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र-प्रायोजित योजना में आवश्यक धनराशि का 90% भुगतान करता है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में यह 60% या 75% है, जबकि शेष धनराशि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है। एक वित्तीय वर्ष में खर्च न किया गया पैसा लैप्स नहीं होता और आगे बढ़ जाता है। इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर में रियायतें प्रदान की जाती हैं। केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी राज्यों को जाता है।

विशेष श्रेणी दर्जे के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

इससे केंद्र सरकार के खजाने पर पर बोझ बढ़ता है। साथ ही, किसी राज्य को विशेष श्रेणी दर्जा देने से अन्य राज्यों की ओर से भी मांग उठती है।

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