श्रीलंका में राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रपति सिरीसेना ने संसद को भंग कर दिया है। उनके इस कदम से अब मध्यावधि चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। एक अधिसूचना के जरिए 225 सदस्यों वाली संसद को भंग करने का फैसला किया गया। बता दें कि रानिल विक्रमसिंघे की जगह महिंदा राजपक्षे को पीएम बनाने पर राजनीतिक विवाद उठ खड़ा हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक मंत्री ने बताया कि इस बात की ज्यादा संभावना है कि सरकार जनवरी में चुनाव करा सकती है।

श्रीलंका की 225 सदस्यीय संसद में बहुमत के लिए 113 सदस्यों का विश्वास हासिल करना जरूरी होता है। इससे पहले शुक्रवार को पत्रकारों से बात करते हुए ‘यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम अलायंस’ यानि यूपीएफए प्रवक्ता केहेलिया रम्बुकवेला ने राजपक्षे का समर्थन करने वाले सांसदों की कुल संख्या प्रकट किए बिना कहा था कि उन्हें 105 से 106 सांसदों का समर्थन हासिल है। इससे साफ हो गया कि सिरीसेना की पार्टी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पा रही थी। इसके बाद राष्ट्रपति ने यह फैसला लिया है।

राष्ट्रपति सिरीसेना ने 26 अक्टूबर को विक्रमसिंघे क पीएम पद से हटाकर चीन समर्थक माने जाने वाले महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई थी। रॉयटर्स के मुताबिक राष्ट्रपति सिरीसेना की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के दौरान कोलंबो बंदरगाह को लेकर तीखी नोंकझोंक हुई थी। कोलंबो बंदरगाह का प्रोजेक्ट भारत-जापान के संयुक्त वेंचर को दिए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। विक्रमसिंघे ने उन्हें हटाने के पीछे भारत-चीन विवाद को लेकर प्रतिक्रिया देने से इनकार किया था। चीन ने भी बीते दिनों श्रीलंका में राजनीतिक दखल से इनकार किया था।

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रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति सिरीसेना के फैसले का विरोध किया था। उन्होंने विश्वासमत हासिल करने के लिए संसद सत्र बुलाने की मांग की थी। लेकिन उनकी मांग को दरकिनार करते हुए सिरीसेना ने 14 नवंबर तक संसद को निलंबित कर दिया। मध्यावधि चुनाव को लेकर अभी सस्पेंस बना हुआ है। सिरीसेना की पार्टी श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के महासचिव ने कहा था कि न तो संसद भंग की जाएगी न ही चुनाव कराए जाने की जरूरत है।

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