गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ भावार्थ : गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है. भारतीय संस्कृति में गुरू और शिष्य का रिश्ता बेहद पवित्र होता है. गुरू यानि शिक्षक का स्थान भगवान से भी बड़ा माना गया है. माता पिता हमें जन्म देकर इस दुनिया का हिस्सा बनाते है और शिक्षक हमें ज्ञानवान बनाकर इस दुनिया में जीने लायक बनाता है. इसलिए शिक्षक को मनुष्य का दूसरा जनक कहा जाता है.

हिन्दुस्तान में गुरू शिष्य के संबंध का प्रमाण एकलव्य है. जिन्होंने अपने गुरू कहने के अपना अंगूठा दान कर दिया था. हिन्दुस्तान में जिस तरह होली दिवाली ईद को जोरो शोरो से मनाया जाता है, ठिक उसी तरह 5 सितंबर यानि शिक्षक दिवस को मनाया जाता है. इस दिन को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म के मौके पर शिक्षक दिवस के रुप में मनाते है. इस दिन, छात्र पूरे देश में अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं. हालांकि इस वक्त कोरोना वायरस के कारण स्कूल-कॉलेज बंद हैं तो ऑनलाइन ही शिक्षक दिवस मनाया जाएगा.

टीचर्स डे के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिक्षकों को शुभकामनाएं दी हैं. शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि- हमारे राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास से हमारा जुड़ाव गहरा करने के लिए हमारे ज्ञानवान शिक्षकों से बेहतर कौन है. पीएम ने मन की बात कार्यक्रम के दौरान, मैंने छात्रों को महान स्वतंत्रता संघर्ष के पहलुओं के बारे में छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को लेकर अपनी बात साझा की थी.

मन की बात में पीएम मोदी ने कहा था कि हमारे शिक्षक हमारे हीरो हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने टीचर्स डे के अवसर पर शिक्षकों के योगदान को याद किया और उन्हें देश के निर्माण की नींव तैयार करने वाला बताया. प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक दिवस के अवसर पर हम अपने शिक्षकों के शानदार काम के लिए उनके प्रति आभार जताते हैं.

पीएम ने ट्वीट करते हुए कहा कि  ‘ हम अपने परिश्रमी शिक्षकों के प्रति कृतज्ञ हैं. इस दिन शिक्षकों के बेहतरीन प्रयासों के प्रति हम आभार जताते हैं. हम डॉक्टर एस राधाकृष्णन की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि भी देते हैं.’

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आइए जानते हैं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में

अपने जीवन में आदर्श शिक्षक रहे भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में हुआ था. इनके पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी राजस्व विभाग में काम करते थे. इनकी मां का नाम सीतम्मा था. इनकी प्रारंभिक शिक्षा लूनर्थ मिशनरी स्कूल, तिरुपति और वेल्लूर में हुई. इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई की. 1903 में सिवाकामू के साथ उनका विवाह हुआ.

डॉ. राधकृष्णन ने दर्शन शास्त्र से एम.ए. किया और 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई. उन्होंने 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम किया. वो 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे और 1939 से 1948 तक वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे. उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया. साल 1952 में उन्हें भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति बनाया गया और भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनने से पहले 1953 से 1962 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति थे. इसी बीच 1954 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया. डॉ. राधाकृष्णन को ब्रिटिश शासनकाल में ‘सर’ की उपाधि भी दी गई थी. इसके अलावा 1961 में इन्हें जर्मनी के पुस्तक प्रकाशन द्वारा ‘विश्व शांति पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था. कहा जाता है कि वे कई बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हुए थे.

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डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रुप में मनाए जाने के पीछे एक बेहद दिलचस्प कहानी भी है. एक बार उनके कुछ प्रशंसकों और शिष्यों ने डॉ. राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाने की इच्छा जाहिर की जिस पर उन्होंने कहा कि ‘मेर लिए इससे बड़े सम्मान की बात और कुछ हो ही नहीं सकती की मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाए’ और तभी से 5 सितंबर यानि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाने लगा. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उनके योगदान के लिए भारत रत्न की उपाधि से भी सम्मानित किया गया. 17 अप्रैल, 1975 को हुआ डॉ. राधाकृष्णन का निधन हो गया लेकिन एक आदर्श शिक्षक और दार्शनिक के रूप में वो हमेशा सभी के लिए प्रेरणादायक रहेंगे

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