देश में 17वीं लोकसभा के चुनाव की तैयारियों के बीच पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रकाशित पुस्तक ‘ग्रेट मार्च आफ डेमोक्रेसी, सेवेन डिकेड आफ इंडियाज इलेक्शन’ की प्रस्तावना में प्रणव मुखर्जी ने कहा कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के बहुत से कदम उठाये गये हैं लेकिन मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धनबल और बाहुबल का बेजा इस्तेमाल अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है।

उन्होंने कहा कि इस बुरी प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया तो लोकतंत्र की भावना पर कुठाराघात होगा। इस पुस्तक का संपादन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने किया है। चुनाव प्रणाली में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग के प्रयासों की सराहना करते हुये प्रणव मुखर्जी ने कहा कि आयोग और उसके अधिकारियों ने देश में सफलतापूर्वक चुनाव कराने में अहम भूमिका अदा की है। आयोग ने मतदाताओं की संख्या बढ़ाने, उन्हें शिक्षित और प्रेरित कर चुनाव प्रणाली में उनकी भागीदारी बढ़ाने, चुनाव में कालेधन, धनबल और पेड न्यूज पर अंकुश लगाने तथा लोगों के लिए बिना भय के मतदान करने का माहौल तैयार करने जैसे सराहनीय काम किये हैं।

उन्होंने कहा कि लोगों की भागीदारी बढ़ने से हमारे लोकतंत्र तथा चुनाव प्रणाली को और अधिक ताकत मिलेगी तथा इसकी चमक बढ़ेगी। चुनाव प्रणाली की सफलता हमारे संस्थाओं की ताकत पर निर्भर है और सभी नागरिकों को इसमें लगातार अपनी सक्रियता बनाये रखनी होगी। उन्होंने कहा कि चुनाव प्रणाली में मतदाताओं की भागेदारी किसी भी लोकतंत्र के सफल संचालन को दर्शाती है और इससे पता चलता है कि जनता का लोकतंत्र में कितना विश्वास है।

प्रणव मुखर्जी ने कहा कि आजादी मिलने के बाद हमने जब वयस्क मताधिकार के जरिये चुनाव कराने का रास्ता चुना तो बहुत से लोग हमारे ऐसा कर पाने की क्षमता को लेकर सशंकित थे। देश में जिस तरह सफलतापूर्वक पहले चुनाव का आयोजन किया गया उसने इस तरह की शंकाओं को शांत कर दिया। उसके बाद से चुनाव आयोग लगातार सफलतापूर्वक चुनावों का आयोजन कर रहा है तथा खामियों को दूर करने  और मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने का काम कर रहा है।

आजादी के सत्तर वर्ष के दौरान देश भले ही उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरा हो लेकिन यह बात हम पूरे गर्व से कह सकते हैं कि भारत विश्व का सबसे बड़ा सक्रिय लोकतंत्र है। हम एक स्वतंत्र देश का निर्माण करने के अपने प्रयासों में सफल रहे है। भारत को जब आजादी मिली थी उसी दौरान कई और देश स्वतंत्र हुये थे लेकिन दुर्भाग्य से उनमें से कई तानाशाही का शिकार हो गये। भारत उन गिने चुने देशों में है जिसने अपने लोकतंत्र को मजबूत किया है।

-साभार, ईएनसी टाईम्स

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