7 साल की उम्र में सर से उठा मां का साया, एक आम कार्यकर्ता से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सफर

1972 में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए। खड़गे के लिए ये महज शुरुआत थी। 1972 के बाद खड़गे लगातार 9 बार इसी सीट से विधायक चुने गए पहली बार विधायक बनने पर ही खड़गे को तब के सीएम देवराज उर्स ने मंत्री बना दिया था।

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Mallikarjun Kharge: 7 साल की उम्र में सर से उठा मां का साया, एक आम कार्यकर्ता से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सफर
Mallikarjun Kharge: 7 साल की उम्र में सर से उठा मां का साया, एक आम कार्यकर्ता से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सफर

Mallikarjun Kharge: 24 साल बाद कांग्रेस को उसका अपना गैर-कांग्रेसी अध्यक्ष आज मिल गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने शशि थरूर से ज्यादा वोट हासिल कर अध्यक्ष की कुर्सी अपने नाम कर ली है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने 8 गुना ज्यादा वोट हासिल करते हुए अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है। मल्लिकार्जुन खड़गे की कांग्रेस में एंट्री 70 दशक में हुई। पार्टी में इनकी छवि ईमानदार नेता के रूप में रही है। कर्नाटक के ये दलित नेता हमेशा से ही आलाकमान के चहेते रहे हैं।

खड़गे गांधी परिवार के वफादार नेताओं में से एक माने जाते हैं। इनके राजनीतिक सफर पर नजर डाले तो इनका कद बहुत ऊंचा है। 70 के दशक में जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी, तब कांग्रेस बुरे वक्त से गुजर रही थी, उस वक्त कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई थी, एक पुराने नेताओं का गुट था तो दूसरा युवाओं का। इंदिरा गांधी युवाओं का नेतृत्व कर रही थीं। कर्नाटक के रहने वाले 27 साल के नौजवान मल्लिकार्जुन इंदिरा गांधी के गुट में शामिल हुए थे।

Mallikarjun Kharge: 7 साल की उम्र में सर से उठा मां का साया, एक आम कार्यकर्ता से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सफर
Mallikarjun Kharge:

Mallikarjun Kharge: कॉलेज से शुरू हुआ राजनीतिक सफर

80 साल के दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में कांग्रेस के नेता विपक्ष हैं। लंबे वक्त से कर्नाटक की राजनीति में सक्रिय और मजबूत नेता खड़गे की इस राजनीतिक करियर की नींव उनके कॉलेज के दिनों से ही पड़ गई थी। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का आगाज एक छात्र संघ के नेता के तौर पर किया था। गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज में उन्हें छात्रसंघ महासचिव के पद पर जीत हासिल हुई थी। इसके बाद से तो वह नेतृत्व करने की पोजिशन में रम गए। साल 1969 एमएसके मिल्स कर्मचारी संघ के कानूनी सलाहकार बनाए गए। खड़गे संयुक्त मजदूर संघ के एक प्रभावशाली और दमदार श्रमिक संघ नेता बनकर उभरे।

Mallikarjun Kharge: कैसे हुई कांग्रेस में एंट्री

मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में एक जाना-माना चेहरा है। मगर जब वो नौजवान थे तो भले ही उनकी उम्र कम थी, लेकिन उनके हौसले काफी बुलंद थे। साल 1969 में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस में एंट्री मारी। तब वह गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। ये जीत शुरुआत थी आने वाले वक्त में एक कद्दावर नेता के उदय की। कर्नाटक की राजनीति में चमकता ये सितारा अब सोनिया गांधी के वफादार और भरोसे वाले नेताओं की कैटगेरी में शामिल हो गए।

1972 में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए। खड़गे के लिए ये महज शुरुआत थी। 1972 के बाद खड़गे लगातार 9 बार इसी सीट से विधायक चुने गए पहली बार विधायक बनने पर ही खड़गे को तब के सीएम देवराज उर्स ने मंत्री बना दिया था। 1976 में खड़गे पहली बार प्राथमिक शिक्षा विभाग में राज्य मंत्री बनाए गए। इसके बाद खड़गे लगातार कर्नाटक सरकार के अलग-अलग विभागों का जिम्मा संभालते रहे।

Mallikarjun Kharge: 7 साल की उम्र में सर से उठा मां का साया, एक आम कार्यकर्ता से कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सफर
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Mallikarjun Kharge: जब 2019 में पहली बार हारे चुनाव

राजनीतिक प्रतिभा के धनी मल्लिकार्जुन खड़गे 2019 में लोकसभा चुनाव हार गए थे। उनके राजनीतिक करियर में ये पहली हार थी। हार के बाद भी पार्टी आलाकमान की मेहरबानी उन पर बनी रही और उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया गया। खड़गे को ना सिर्फ राज्यसभा भेजा गया, बल्कि उन्हें 2021 में सदन में विपक्ष का नेता भी बनाया गया।

Mallikarjun Kharge: तीन बार कर्नाटक के CM बनते-बनते कैसे चूंक गए खड़गे

2004 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी। उस समय कांग्रेस और JDS ने मिलकर सरकार बनायी। इस बार ये लगभग तय माना जा रहा था कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही सीएम की कुर्सी पर विराजमान होंगे। मगर ऐसा हो ना सका और धरम सिंह को सीएम कुर्सी की कमान सौंप दी गई।

2009 में कांग्रेस ने खड़गे को गुलबर्गा सीट पर टिकट दिया। खड़गे लोकसभा पहुंचे और मनमोहन सिंह की सरकार में यूपी में मंत्री बने। 2013 में जब कांग्रेस कर्नाटक में वापस आयी तो उम्मीद की गई कि खड़गे ही सीएम बनने वाले हैं, लेकिन खड़गे के हाथ खाली रह गए।

2013 के बाद से कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया, लेकिन खड़गे की राजनीति चमकती गई। 2014 लोकसभा चुनावों में जब कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट कर रह गई यहां तक कि ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों की जमानत तक जब्त हो गई। तब खड़गे, इस मोदी लहर में भी जीतकर लोकसभा पहुंचे थे और कांग्रेस ने उन्हें संसद के निचले सदन में पार्टी का नेता चुना था।

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Mallikarjun Kharge: अपनी मां और बहन को आंखों के सामने मरता देखा

12 जुलाई 1942 को दलित दंपत्ति मपन्ना खड़गे और सबव्वा के घर एक शिशु का जन्म हुआ, जिसका नाम पड़ा मपन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे। वह कर्नाटक के वर्वट्टी गांव में जन्में थे जो हैदराबाद के निजाम के अधीन था। कहा जाता है कि उन्होंने महज 7 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां और बहन को आंखों के सामने मरते देखा था।

1945 के समय की बात है जब हैदराबाद निजाम के सैनिक खड़गे के गांव पहुंचे। उस समय वो अपने घर के बाहर खेल रहे थे और घर में मां-बहन थी। निजाम के सैनिकों ने उनकी मां और बहन को उनकी आंखों के सामने ही जला दिया। खड़गे खड़े-खड़े सब कुछ देखते रहे पर वो कुछ ना कर सके। मां की मौत के बाद खड़के और उनके पिता गुलबर्ग शहर चले आए। गुलबर्ग में ही खड़गे की शुरुआती पढ़ाई हुई और उसके बाद वहीं के सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति की शुरुआती शिक्षा भी उन्हें यहीं से मिली।

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