आज दिल्ली ने राजधानी के रूप में 106 साल पूरे कर लिए हैं। 12 दिसंबर 1911 में आज ही के दिन दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने का ऐलान किया गया था, लेकिन एलान के 20 साल बाद 13 फरवरी 1931 को दिल्ली को कानूनी तौर पर भारत के राजधानी की मान्यता प्राप्त हुई। दिल्ली से पहले कोलकाता को भारत की राजधानी बनाया गया था।
कैसे पड़ा दिल्ली नाम
भारत की राजधानी दिल्ली का इतिहास आज से करीब पांच हजार साल पुराना हैं। दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा, इसे लेकर कई रोचक कहानियां हैं। कई इतिहासकारों का मानना हैं कि वर्ष 50 ईसा पूर्व में एक मौर्य राजा हुआ करते थे, जिनका नाम दिलु था। उन्ही राजा ने इस शहर का निर्माण कराया था, जिसके बाद उस शहर का नाम उन्हीं राजा के नाम पर दिल्ली पड़ा ।
वही कुछ इतिहासकार दिल्ली को ‘दहलीज’ का अपभ्रंश मानते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि गंगा की शुरुआत इसी “दहलीज” से होती है, तो इस तरह दिल्ली का नाम दिल्ली पड़ा।
वहीं कुछ लोगों का ये भी मानना है कि दिल्ली का नाम तोमर राजा ढिल्लू के नाम पर दिल्ली पड़ा। ये कहानी बेहद रोचक है, कहा जाता हैं-एक अभिशाप को झूठा सिद्ध करने के लिए राजा ढिल्लू ने इस शहर की बुनियाद में गड़ी एक कील को खुदवाने की कोशिश की। उनके ऐसा करने के बाद उनके राजपाट का तो अंत हो गया, लेकिन एक कहावत मशहूर हो गई-‘किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर हुए मतीहीन’, उनके राजपाट का अंत होने के बाद लोगों ने मौजूदा शहर को दिल्ली को नाम दिया।
दिल्ली ने महानगरों को पछाड़ा
जिस समय दिल्ली को राजधानी घोषित करने की चर्चा चल रही थी, उस समय दिल्ली शहर बहुत पिछड़ा हुआ शहर था। मुंबई और कोलकाता महानगर, दिल्ली शहर से हर तरीके से अव्वल थे। लेकिन जब 12 दिसंबर 1911 की सुबह 80 हजार से भी ज्यादा लोगों के सामने ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा की, तब वहां मौजूद लोग ये बात समझने में असमर्थ हो रहे थे, कि एक से एक बेहतरीन महानगरों को छोड़कर दिल्ली को राजधानी क्यों बनाया जा रहा हैं। किंग जॉर्ज पंचम ने ये एलान तो कर दिया, लेकिन एलान के बाद दिल्ली को राजधानी नहीं बनाया गया, बल्कि दिल्ली की जगह कोलकाता को राजधानी बनाया गया। लगभग 20 साल बाद 13 फरवरी 1931 को दिल्ली को आधिकारिक तौर पर राजधानी की मान्यता मिली।