Aditi Singh: उत्तर प्रदेश के रायबरेली (Raebareli) सदर विधानसभा सीट पर चौथे चरण के तहत 23 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली सदर सीट पर सपा, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। पांच बार के विधायक अखिलेश सिंह के लिए जाने जाने वाले कांग्रेस के गढ़ में भाजपा ने चुनाव से पहले सेंधमारी कर दी है। दरअसल, अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह, जो कांग्रेस की विधायक थीं, उन्हें भाजपा ने अपने पाले में कर लिया है।
इस वजह से कांग्रेस की गढ़ कही जाने वाली रायबरेली का रण इस बार आसान नहीं होने वाली है। बता दें कि इस सीट पर 2017 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अदिति सिंह ने बहुजन समाज पार्टी के मोहम्मद शाहबाज खान को 89,163 वोटों के मार्जिन से हराया था। रायबरेली विधानसभा सीट रायबरेली संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। इस संसदीय क्षेत्र से सोनिया गांधी सांसद हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा) के दिनेश प्रताप सिंह को 1,67,178 से हराया था।
Aditi Singh के खिलाफ कांग्रेस ने मनीष चौहान को दिया टिकट
अगर रायबरेली विधानसभा सीट से उम्मीदवारी की बात की जाए तो नवंबर में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुईं अदिति सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने डॉक्टर मनीष चौहान को मैदान में उतारा है। वहीं समाजवादी पार्टी ने आरपी यादव को रायबरेली से टिकट दिया है। बसपा ने मोहम्द अशरफ को रायबरेली के रण में उतारा है। वहीं आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गौरभ सिंह भी चुनावी समर में ताल ठोक रहे हैं।
रायबरेली की राजनीतिक इतिहास
बता दें कि वर्तमान में यह सीट अदिति सिंह की है, जिन्होंने 2017 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीती थी, उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार शबाज खान को 80 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था। मई 2020 में, अदिति सिंह को भाजपा के करीब होने की अफवाहों के बीच अनुशासनहीनता के लिए कांग्रेस पार्टी से निलंबित कर दिया गया था।
नवंबर 2021 में अदिति सिंह आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल हो गईं। बता ते चलें कि रायबरेली सदर विधानसभा सीट कभी मजबूत और पांच बार के कांग्रेस विधायक अखिलेश सिंह का पर्याय थी, जिनकी विरासत को 2017 में उनकी बेटी अदिति ने आगे बढ़ाया।
गौरतलब है कि रायबरेली सदर सीट पर 1967 से कांग्रेस का कब्जा रहा है। चुनाव आयोग के आकड़े के मुताबिक, अभी तक यहां से 10 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है । 1967 में पहली बार कांग्रेस के मदन मोहन मिश्रा ने जीत दर्ज की थी। 1969 में मदन मोहन मिश्रा दोबारा विधायक बने।
वहीं इसके बाद 1974 में सुनीता चौहान, 1977 में मोहन लाल त्रिपाठी, 1980 और 1985 में रमेश चंद्र कांग्रेस से विधायक बने। 1989 में कांग्रेस यहां से हारी। 1991 तक लगातार दो बार अशोक सिंह विधायक बने। इसके बाद रायबरेली की राजनीति में अखिलेश सिंह की एंट्री हुई, जिसके बाद उनका नाम ही जीत की गारंटी बन गया। 1993 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर अखिलेश सिंह विधायक बने। इसके बाद से उनकी बेटी विरासत को आगे बढा रही है।
Raebareli में कास्ट फैक्टर
बता दें कि रायबरेली जिले के रायबरेली विधानसभा में लगभग 3 लाख 51 हजार मतदाता हैं। रायबरेली विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर 32 % दलित, 30 % पिछडों और 12% मुस्लिम वोटर हैं।
Aditi Singh कौन हैं?
अदिति सिंह भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वह उत्तर प्रदेश राज्य के रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं। अदिति सिंह उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा की सबसे कम उम्र की सदस्यों में से एक हैं। हाल ही में, वह भाजपा उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हुईं। 2019 में, दिनेश प्रताप सिंह के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की एक रिपोर्ट में उन पर गुंडों द्वारा हमला किया गया था।
उनके पिता अखिलेश कुमार सिंह कई राजनीतिक दलों के लिए रायबरेली सदर के पांच बार प्रतिनिधि थे। प्रबंधन में डिग्री के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में ड्यूक विश्वविद्यालय में भाग लेने से पहले अदिति की शिक्षा दिल्ली और मसूरी में हुई थी। वह अपने राजनीतिक जीवन से पहले सामाजिक कार्यों में शामिल थीं।
कौन हैं आर पी यादव?
बता दें कि आरपी यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कॉलेज में पढ़ते समय ही छात्रसंघ से की थी। वह समाजवादी युवजन सभा के जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आरपी यादव ने पंचायत चुनाव के जरिए चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाया था। किसान परिवार से आने वाले आरपी यादव का पूरा नाम राम प्रताप यादव है। तीन भाइयों में आरपी यादव सबसे छोटे हैं। रायबरेली के राही ब्लाक के समोहिया गांव के रहने वाले आरपी की शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई है। रायबरेली के राही ब्लॉक से साल 2000 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़े, लेकिन गणेश मार्य के हाथों 100 वोटों से हार गए।
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