Gujarat Election: गुजरात में 182 विधानसभा सीटों के आगामी चुनावों के लिए, बीजेपी ने 45 पाटीदारों को और कांग्रेस ने 42 को मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी ने भी 46 पाटीदार नेताओं को टिकट दिया है। दरअसल, पाटीदार राज्य में जमींदारों का सबसे बड़ा समुदाय है। इसमें लेउवा और कदवा भी शामिल हैं। पहले पटेल के रूप में जाना जाने वाले पाटिदारों को 1950 के दशक में सौराष्ट्र भूमि सुधार अधिनियम, 1952 से बड़े पैमाने पर लाभ हुआ था। इस अधिनियम के चलते काश्तकार किसानों को दखल का अधिकार दिया गया था।
सौराष्ट्र क्षेत्र में मूंगफली और कपास जैसी फसलों की खेती शुरू करने से पटेल धीरे-धीरे समृद्ध होते गए। उन्होंने पीतल, सिरेमिक, हीरा, ऑटो इंजीनियरिंग और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र में भी निवेश किया। धीरे-धीरे पाटीदार समुदाय जमीन खरीदकर गुजरात के अन्य हिस्सों में अपना प्रभुत्व फैला लिया। इतना ही नहीं, सौराष्ट्र पटेल लॉबी भी राजनीति में प्रमुख स्थान हासिल करने के लिए आगे बढ़ी।

“पाटीदारों को लुभाने की कोशिश में सभी पार्टियां”
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अमित ढोलकिया के मुताबिक, “पाटीदार एक संगठित और समृद्ध समुदाय हैं और इसलिए, उनका प्रभाव उनकी संख्या के अनुपात में नहीं है। वे कई व्यवसायों, व्यापार और यहां तक कि सहकारी समितियों को नियंत्रित करते हैं।”
“साथ ही, स्वामीनारायण संप्रदाय के बीच उनकी बहुत बड़ी उपस्थिति है, जो एक बहुत शक्तिशाली धार्मिक संगठन है। साथ ही, बड़ी संख्या में एनआरआई पाटीदार हैं। इन सभी पहलुओं को देखते हुए, सभी शक्तिशाली पार्टियां उन्हें लुभाने की कोशिश करती रही हैं।”
कहीं न कहीं यही कारण है कि गुजरात चुनाव नजदीक आने के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां प्रभावशाली पाटीदार समुदाय को रिझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के कुल वोटरों में से 12-14 फीसदी पाटीदार वोटर हैं।
राज्य के कुछेक इलाके ऐसे हैं जहां पाटीदार वोटरों का बोलवाला है। इसमें आणंद, खेड़ा और मेहसाणा जिलों और पाटन और अहमदाबाद जिलों के कुछ हिस्से शामिल है। सूरत शहर में, कम से कम चार सीटों पर उनका दबदबा है। सौराष्ट्र में, राजकोट, अमरेली और मोरबी जिलों में भी इस पाटीदारों की मजबूत उपस्थिति है।
क्या बीजेपी के समर्थक रहे हैं पाटीदार?
अगर गत चुनावों का आकलन करें तो पाटीदार तीन दशकों से अधिक समय से मुख्य रूप से 1990 के दशक से बीजेपी के प्रबल समर्थक रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अस्सी के दशक के मध्य में पार्टी का प्रबल समर्थक था, क्षत्रिय, हरिजन और आदिवासी। धीरे-धीरे भाजपा ने पाटीदारों को अपने पाले में लाने में सफलता हासिल की।
हालांकि, यही पाटीदार हैं, जिन्होंने 2015 में अनामत आंदोलन समिति के संयोजक हार्दिक पटेल के नेतृत्व में समुदाय के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर के केंद्र सरकार की नींद उड़ा दी थी। इसी आंदोलन का खामियाजा भाजपा ने भूगता भी राज्य विधानसभा चुनाव में 99 सीटें जीतकर। दूसरी ओर, कांग्रेस ने 2017 के चुनावों में 77 सीटें जीतकर प्रभावशाली प्रदर्शन किया था। जबकि भाजपा ने 2017 में सूरत शहर में सभी 12 सीटें जीतीं। पाटीदारों के विरोध के बावजूद, सौराष्ट्र क्षेत्र में पटेल बहुल मोरबी और अमरेली जिलों में आठ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
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