अहोई अष्टमी का व्रत पुत्र प्राप्ती, लंबी आयु और सुख के लिए किया जाता है। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस दिन मां अपने पुत्र के लिए व्रत रखती है। उनके लंबी आयु की कामना करती है।

परंपरा के अनुसार अहोई अष्टमी खत्म होने के एक दिन पहले  राधाकुंड में स्नान किया जाता है। इससे प्रभु श्री कृष्ण और राधा रानी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। यहां सप्तमी की अर्ध रात्रि से स्नान किया जाता है।

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ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास की अष्टमी को निर्जला व्रत रखते हैं और सप्तमी की रात्रि को पुष्य नक्षत्र में रात्रि 12 बजे से राधा कुंड में स्नान करते हैं। इसके बाद राधा की भक्ति कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। 

पुराणों के अनुसार  महारास के बाद श्रीकृष्ण ने राधाजी की इच्‍छानुसार उन्हें वरदान दिया था कि जो भी विवाहित जोड़ा राधा कुंड में इस विशेष दिन स्नान करेगा उसे संतान की प्राप्ति होगी। 

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ऐसा माना जाता है कि आज भी कार्तिक मास के पुष्य नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि बारह बजे तक राधाजी के साथ राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं। इसलिए अहोई अष्टमी के दिन यहां अष्टमी मेला लगाया जाता है। 

बता दे कि कोरोना के कारण हर साल अहोई अष्टमी मेले पर राधाकुंड श्यामकुंड में अर्ध रात्रि को होने वाला महा स्नान न होने सुना रह जाएगा। 8 नवंबर को लगने वाला मेला अहोई अष्टमी कोरोना के चलते प्रशासन द्वारा रद्द कर दिया गया है।

अहोई अष्टमी पर मथुरा  से लगभग 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा में राधा कुंड तीर्थस्थान है। यह परिक्रमा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

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