इंदौर में मैंने एक चुनरी-यात्रा में भाग लिया। इस चुनरी-यात्रा का अनुभव असाधारण था, इसलिए आज उसके विषय में लिख रहा हूं।

इंदौर में अब से 55-60 साल पहले मैंने हजारों छात्रों के जोशीले जुलूसों का नेतृत्व भी किया है लेकिन ऐसा जुलूस, जैसा मैंने कल देखा, इंदौर में तो क्या देश में भी कहीं नहीं देखा। हां, ईरान के शंहशांह के खिलाफ जब बगावत का माहौल था, तब मैंने लगभग ऐसा ही माहौल करीब 40 साल पहले तेहरान में देखा था। लेकिन इंदौर की चुनरी-यात्रा का माहौल बगावत का नहीं, श्रद्धा का था।

मेरे साथ हमारी बहन सुमित्रा महाजन (लोकसभा अध्यक्ष) जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं। उनके प्रति इंदौर की जनता का श्रद्धा-भाव देखने लायक था। मुझे 1957 के उस दिन की याद आ गई, जिस दिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की कार हमारे मोहल्ले से गुजरी थी। मैंने देखा कि कांग्रेस-विरोधी लोग भी उन पर फूल बरसा रहे थे। सुमित्राजी को लोगों ने मालाओं, पगड़ियों और दुप्पटों से लाद दिया।

हम लोगों का अभिनंदन करने के लिए रास्ते में दर्जनों मंच बने हुए थे। उन मंचों में इंदौर के पठानों और अल्पसंख्यकों के भी दो मंच थे। सभी जातियों, सभी संप्रदायों और सभी वर्गों के लोगों को देखकर मुझे लगा कि सहिष्णुता, श्रद्धा और प्रेम का इससे बढ़िया उदाहरण क्या हो सकता है?

यह चुनरी-यात्रा इंदौर के वार्ड न. 1 के विधायक सुदर्शन गुप्ता आयोजित करते हैं। उनके स्व. पिता इंद्रदेव आर्य मेरे पिताजी के अनन्य भक्त और मित्र थे। इस यात्रा में कम से कम एक लाख स्त्रियां और पुरुष तो जरुर भाग लेते हैं। छह किलोमीटर लंबी इस यात्रा में मनुष्य की आंखें जितनी दूर तक देख सकती हैं, आगे और पीछे लोग ही लोग दिखाई पड़ते हैं। ऐसा लगता है कि आप लाखों लोगों के जुलूस में चल रहे हैं।

लगभग डेढ़ घंटे के इस जुलूस में न तो कोई भगदड़ होती है, न चिल्ला-चोंट और न ही कोई धक्का मुक्की ! सड़क के बायीं ओर जुलूस और दायीं ओर नियमित यातायात चलता रहा। सुमित्राजी ने मुझे बताया कि हजारों फूलमालाओं को सड़कों पर से साफ करने वाले लोग पीछे-पीछे चल रहे हैं।

इस जुलूस के रथ पर सुमित्राजी और मेरे अलावा  सर्वश्री उत्तम स्वामी, सुधीर गुप्ता (सांसद), शंकर लालवानी, सुदर्शन गुप्ता और श्वेतकेतु वैदिक भी सवार थे। इस जुलूस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि एक लाल रंग की सुंदर चुनरी, जिसकी लंबाई दो मील है, उसे लोग अपने सिर पर उठाए-उठाए चलते रहते हैं। यदि यह दृश्य हेलिकाप्टर में बैठकर देखा जाए तो कितना अद्भुत अनुभव होगा। दुनिया में इतना मनोहारी जुलूस शायद ही कहीं  और निकलता हो।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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