लोग वकालत करने के लिए लड़ते हैं, ये वकालत पाने के लिए लड़ी थीं !

गुगल आजकल हमें उन महान किरदारों से रूबरू करा रहा है, जिनके बारे में लोगों को बहुत कम ही पता है। अभी पिछले दिनों गूगल ने अपने विशेष डूडल के जरिए बिहार के प्रसिद्ध कवि अब्दुल कावि की 87 वीं जयंती पर उन्हें याद किया था। उसके बाद लोग उर्दू के इस अनजाने कवि को जान पाए थे। ठीक उसी तरह से आज गूगल देश की पहली महिला बैरिस्टर और वकील कार्नेलिया सोराबजी को याद कर रहा है। आज उनका 151वां जन्मदिन है।

पढ़ें प्रसिद्ध कवि अब्दुल कावि की 87 वीं जयंती आज, गूगल डूडल सहित कई दिग्गजों ने किया याद

कार्नेलिया का जन्म 15 नवंबर 1866 को महाराष्ट्र के नासिक में एक पारसी परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा देश में ही ग्रहण करने के बाद उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। वह बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला थी। इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए वह 1892 में इंग्लैंड गई। वहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। इस तरह उन्होंने ब्रिटेन में पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला और कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला बनने का गौरव भी हासिल किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वहां पर कुछ दिनों तक लॉ की प्रैक्टिस भी की। लेकिन थोड़े दिनों बाद वह भारत आ गई और यहां पर अपने प्रैक्टिस को जारी रखा।

ब्रिटिश काल में महिलाओं को कुछ खास अधिकार नहीं थे और ना ही वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत भी थी। इसलिए कार्नेलिया ने वकालत के साथ महिलाओं को कानूनी परामर्श देना भी प्रारंभ किया ताकि उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता चल सके। भारत में पहले महिलाओं को वकालत करने का अधिकार नहीं प्राप्त था। कार्नेलिया ने उसके लिए भी लड़ाई लड़ी और महिलाओं के लिए वकील का पेशा खोलने की मांग उठाई। आखिरकार 1907 में उन्हें इसमें पहली सफलता मिली और महिलाओं को वकालत का अधिकार मिला। हालांकि उन्हें सिर्फ सहायक वकील का ही अधिकार मिला। कार्नेलिया ने खुद बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील की जिम्मेदारी निभाई।

इसके बाद 1924 में भी इस क्रम में कार्नेलिया को बड़ी सफलता मिली, जब महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को और शिथिल किया गया और उन्हें मुख्य वकील और बैरिस्टर का पद दिया जाने लगा। 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुईं। इसके बाद वह लंदन चली गई, जहां 1954 में 88 की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।

आज भी वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में पूरे भारत और ब्रिटेन में कार्नेलिया का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। समाज सुधार और कानूनी कार्य के अलावा उन्होने अनेकों पुस्तकों, लघुकथाओं एवं लेखों की रचना भी कीं। उन्होंने दो आत्मकथाएं- इंडिया कॉलिंग (1934) और इंडिया रिकॉल्ड (1936) भी लिखी हैं। 2012 में, लंदन के प्रतिष्ठित ‘लिंकन इन’ सूची में उनके नाम को शामिल किया गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here