अब योग दिवस को भी राजनीतिक दलों ने सियासी अखाड़ा बनाना शुरु कर दिया है। 21 जून को योग दिवस तो मनाया सभी ने लेकिन सबके तरीके अलग-अलग थे। योग दिवस के प्रचार-प्रसार को लेकर भी कई राजनीतिक दल खफा हैं उनका कहना है कि योग के प्रचार-प्रसार के बहाने राजनीतिकरण किया जा रहा है और इसका इस्तेमाल बीजेपी और प्रधानमंत्री अपने छवि निर्माण के रुप में कर रहे हैं। विपक्षी दलों के इन तर्कों के पीछे सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन बेहाल किसानों ने योग दिवस के दिन सड़क पर योग कर और इस दिन को शोक दिवस के रुप में मना कर सरकार के सामने एक सवाल तो जरुर खड़ा कर दिया है।

 बुधवार 21 जून को एपीएन न्यूज के खास कार्यक्रम मुद्दा में योग दिवस के मुद्दे पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन न्यूज), सुरेन्द्र राजपूत (प्रवक्ता कांग्रेस), रविदास मेहरोत्रा (नेता सपा), सुदेश वर्मा (प्रवक्ता बीजेपी), विजय प्रकाश मिश्रा (योगाचार्य सुबह-ए-बनारस) व दीपक झा (योग विशेषज्ञ) शामिल थे।

सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि हमें योग से कोई आपत्ति नही है। हमें आज की तारीख में कर्म योग से कोई आपत्ति नही है हमें प्रचार योग पर आपत्ति है। योग के नाम पर आप ये प्रचार तंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं। 275 करोड़ रुपये की एलईडी खरीदी गई प्रधानमंत्री के 15-20 मिनट के कार्यक्रम को देश भर में दिखाने के लिए इस बात से आपत्ति है।

रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है इस पर लोग योग करें हमको आपत्ति नही है लोग योग करें योग से असाध्य रोग भी ठीक होते हैं योग का प्रचार हो योग से लोग स्वस्थ हो ये हम लोग भी चाहते हैं। साईकिल चलाने से योग की सारी क्रियाएं होती है प्रधानमंत्री जी और भारत सरकार ये भी कहे की साईकिल चलाना भी एक प्रकार का योग है। हम लोगों ने आज साईकिल चला करके योग करने का काम किया है। हमको ये आपत्ति है कि लगभग 600 करोड़ रुपया प्रचार में खर्च किया गया है। एक तरफ किसान आंदोलन कर रहे हैं शोक दिवस मना रहे हैं वो भूखे हैं मजदूर परेशान हैं और इतनी बड़ी धनराशि योग के प्रचार तंत्र के ऊपर खर्च कर दी गई।

सुदेश वर्मा ने कहा कि इनका दुर्भाग्य है कि मोदी जी इस देश के प्रधानमंत्री हैं। मोदी जी जो भी करते हैं वो अपने आप में पब्लिसीटी हो जाती है कुछ करने की आवश्यक नही होती है। मीडिया खुद ही उनको दिखाता है और पूरा विश्व उनको देखना चाहता है सुनना चाहता है। पूरा विश्व आज योग दिवस मना रहा हैं। चीन भी योग दिवस मना रहा है और वो कोशिश कर रहा है कि भारत जो योग दिवस मना रहा है उससे बड़ा हम मना पायें। इस तरह की प्रतिस्पर्धा हो रही है। शरीर अगर अच्छा रहेगा तो आप किसानों के लिए भी लड़ पायेंगे।

विजय कुमार मिश्रा ने कहा कि योग का प्रचार प्रसार होना चाहिए इसमें किसी को अगर तकलीफ हो रही है तो उसको उस दृष्टिकोण से हमें नही लेना चाहिए। योग का जितना प्रचार-प्रसार हो लोग स्वस्थ रहें ये अच्छी बात है। कुछ राजनीतिक पार्टीयां हैं जो इसको अलग दृष्टिकोण से देखती हैं। योग का विस्तार हो प्रचार-प्रसार हो लेकिन उसका राजनीतिकरण ना हो मैं इसके खिलाफ हूं।

गोविंद पंत राजू ने कहा कि सरकार का दृष्टिकोण बिल्कुल साफ है सरकार योग को एक धरोहर के रुप में देखती है। पूरी दुनियां में ये धरोहर फैले इसका प्रभाव फैले लोग इसके अनुयायी बने। अगर योग को पूरी दुनियां में स्वीकार्यता मिलती है तो यह कहीं न कहीं भारत के परंपराओं की स्वीकार्यता है। सरकार का उद्देश्य बिल्कुल साफ है। हमारे जो राजनीतिक दल हैं उनके अंदर प्रतिक्रियाओं को लेकर बहुत गुंजाईश है। सकारात्मक प्रतिक्रियाओं को लेकर सामने आना शायद बड़ा मुश्किल है और विरोध और नकारात्मक प्रतिक्रियाएं करना बहुत आसान है। किसानों का योग को लेकर आज जो विरोध है वो सार्थक विरोध है। किसानों की समस्या अपनी जगह है सरकार ने क्या किया क्या नही किया वो अपनी जगह है। किसान अगर अपने विरोध को जताने के लिए सड़क पर योग करते हुए विरोध कर रहे हैं तो ये एक सकारात्मक तरीका है विरोध का। ये राजनीतिक विरोध नही है जैसा की कुछ राजनीतिक दल सिर्फ इसलिए की ये नरेन्द्र मोदी की सोच है इसलिए इसका विरोध किया जाये। किसानों को विरोध कम से कम इस मामले में ज्यादा सार्थक दिखा।

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