Chattisgarh News: राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव का आगाज, लोगों को लुभा रहा जनजातियों की समृद्ध संस्कृति और कला का अनूठा संगम

Chattisgarh News: महोत्‍सव में खासतौर से चापड़ा चटनी और महुआ के लड्डू लोग पसंद कर रहे हैं। लोगों ने लांदा, माड़िया पेज, तीखुर का शर्बत, चापड़ा चटनी, महुआ लड्डू का खूब स्वाद लिया और तारीफ की।

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Chattisgarh News: छत्‍तीसगढ़ में राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव के अवसर पर रायपुर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय सभागार में मंगलवार से तीन दिवसीय हस्त कला प्रदर्शनी का आगाज हुआ।यहां विभिन्न विभागों,जनजातीय समूहों के 29 स्टॉल लगाए गए हैं।जनजातियों के खान-पान ,आभूषणों सहित उनके रहन-सहन के तरीकों को जानकर लोग आकर्षित हो रहे हैं।

जनजातियों की संस्कृति के प्रति उत्सुकता के साथ बस्तर की खास चापड़ा चटनी, महुआ लड्डूका स्वाद लेने की भी बहुत ललक दिखाई दे रही है। नई पीढ़ी भी सदियों पुरानी परंपरा और संस्कृति को जानने और उससे जुड़ने के लिए उत्साहित दिख रही है।
आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान छत्तीसगढ़ और भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय के सहयोग से हस्तकला प्रदर्शनी सह विक्रय का आयोजन किया गया है। यहां जनजातियों की प्राचीन हस्त कला बांस कला, छिंद कला, गोदना कला, रजवार कला, शीशल कला, माटी कला और काष्ट कला का प्रदर्शन सह कलाकृतियों का विक्रय किया जा रहा है।

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Chattisgarh News: लोगों को लुभा रहे जनजातीय वाद्य यंत्र, नंगाड़ा और दफड़ी

जनजातियों के नंगाड़ा, दफड़ी, मांदर जैसे वाद्य यंत्र यहां आने वाले लोगों को लुभा रहे हैं।वहीं खिनवा, पटा जैसे आभूषण, तुमा और खाना बनाने के प्राचीन बर्तन और औजारों, कपड़ों का प्रदर्शन भी किया गया है। जनजाति व्यंजनों का लुत्‍फ कराने के लिए यहां खास इंतजाम हैं।

खासतौर से बस्‍तर से आए बालमती बघेल, शांता नाग और गंगाराम कश्यप ने अपने स्टॉल में राजधानी रायपुर में लोगों को जंगल के खान-पान के स्वाद से परिचय करा रहे हैं।यहां पुरानी के साथ नई पीढ़ी भी बस्तरिया डोडा (भोजन) के प्रति आकर्षित दिखाई दे रहा है।

यहां चखें चापड़ा चटनी और महुआ के लड्डू

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महोत्‍सव में खासतौर से चापड़ा चटनी और महुआ के लड्डू लोग पसंद कर रहे हैं। लोगों ने लांदा, माड़िया पेज, तीखुर का शर्बत, चापड़ा चटनी, महुआ लड्डू का खूब स्वाद लिया और तारीफ की। यहां लगे गढ़ कलेवा के स्टॉल में छत्तीसगढ़िया व्यंजन ठेठरी, अनरसा, पिड़िया, लाडू जैसे स्वाद के खजाने रखे गए हैं।
विलुप्तप्राय जनजातीय आभूषणों के हाटुम में भेनु ठाकुर ने बताया कि बटकी, खिनवा, सूता जैसे प्राचीन आभूषण नई पीढ़ी ने पहनना बंद कर दिये थे। प्रदर्शनी के माध्यम से उन्हें इन गहनों के फैशन ट्रेंड के बारे में जानकारी मिल रही है।

बांस की कंघी और पुराने गहने छाए
पुराने गहने मॉडर्न फैशन में भी ट्रेंडिंग हैं, इससे नई पीढ़ी का रूझान भी अपनी प्राचीन कला के प्रति बढ़ा है। वह अपनी संस्कृति और कला से जुड़ने लगे हैं। स्टॉल में घोटुल में बनाए गए कलगी, झलिंग, फरसा, तुमड़ी, फुंदरा, पनिया (बांस की कंघी) का भी प्रदर्शन किया गया है।

समय के साथ प्राचीन कला में हो रहा नवाचार

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आदिवासी विकास विभाग द्वारा लगाए गए स्टॉल में रायगढ़ से आए अजय कुमार सिदार ने बताया कि समय के साथ ढोकरा शिल्प कला में भी नवाचार आया है। अब लोगों की मांग के अनुसार लाइट यूटिलिटी आइटम भी बनने लगे हैं।
प्रदर्शनी में माटी कला बोर्ड द्वारा मिट्टी के बर्तनों का स्टॉल भी लगया गया है।

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स्टॉल में बिहारी लाल मलिक ने बताया कि मिट्टी के बर्तनों का दुष्प्रभाव न होने के कारण इनकी अच्छी मांग है, जिससे कुम्हारों को भी अच्छी आय हो रही है। अनाज से बनी सुंदर पेंटिंग का भी स्टॉल लगा है। धान, मक्का, चावल, मूंग जैसे विभिन्न अनाजों के उपयोग से राज्यपाल अनुसुईया उईके, महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और भगवान की सुंदर पेंटिंग बनाई गई है।

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