Bombay High Court से नवाब मलिक को झटका, रिहाई की याचिका खारिज

बॉम्‍बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) से महाराष्ट्र के अल्‍पसंख्‍यक मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक को झटका लगा है। कोर्ट ने मलिक को अंतरिम रिहाई से इंकार किया।

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Bombay High Court:
Bombay High Court

बॉम्‍बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) से महाराष्ट्र के अल्‍पसंख्‍यक मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक को झटका लगा है। कोर्ट ने मलिक को अंतरिम रिहाई से इंकार किया।हाई कोर्ट ने उनकी रिहाई की मांग खारिज कर दी। मलिक ने हैबियस कॉर्पस अर्जी यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपनी गिरफ्तारी को अवैध बताया था, अपने खिलाफ दाखिल मामले को भी रद्द करने की मांग की थी। नवाब मलिक फिलहाल न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं।

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Bombay High Court: कोर्ट बोला, सुनवाई की तारीख बाद में होगी तय

अदालत ने कहा कि अर्जी में कई मुद्दे हैं, जिनपर चर्चा होनी अभी बाकी है। ऐसे में अर्जी पर सुनवाई की तारीख बाद में तय की जाएगी, लेकिन अभी कोई अंतरिम राहत नही दी जा सकती है। इससे पहले न्यायमूर्ति पीबी वराले और न्यायमूर्ति एसएम मोदक की पीठ ने दोनों पक्षों की तीन दिनों तक चली लंबी जिरह के बाद 3 मार्च को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, कहा था कि 15 मार्च को आदेश सुनाया जाएगा।

दाऊद से जुड़े धनशोधन मामले की जांच में हुई थी गिरफ्तारी
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता नवाब मलिक को ईडी ने भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों की गतिविधियों से जुड़े धनशोधन मामले की जांच के सिलसिले में 23 फरवरी को गिरफ्तार किया था मंत्री को पहले ईडी की हिरासत में भेजा गया और बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। मलिक के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने पहले उच्च न्यायालय को बताया था कि मंत्री की गिरफ्तारी और उसके बाद की हिरासत अवैध है। उन्होंने अपील की थी कि गिरफ्तारी रद्द की जाए और उन्हें तुरंत हिरासत से रिहा कर अंतरिम राहत प्रदान की जाए।

ईडी ने दिया था अपना तर्क
ईडी के वकील और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह और अधिवक्ता हितेन वेनेगाओकर ने अदालत को बताया था, कि मलिक को उचित प्रक्रिया अपनाने के बाद ही गिरफ्तार किया गया। विशेष पीएमएलए अदालत द्वारा जारी रिमांड आदेश ने उन्हें ईडी की हिरासत और फिर न्यायिक हिरासत में भेजने के वैध कारण बताए गए हैं। अदालत को बताया था, कि मंत्री की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जायज नहीं है। इसके बजाय उन्हें मामले में नियमित जमानत की अपील करनी चाहिए।

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