उत्तरप्रदेश विधानसभा में कल जो कुछ हुआ, उसे टीवी चैनलों और अखबारों के मुखपृष्ठों ने करोड़ों लोगों को दिखाया। ऐसा मजेदार और अहिंसक दृश्य अब से पहले किसी विधानसभा या अपनी संसद में भी कभी देखने को नहीं मिला। राज्यपाल राम नाइक अपना औपचारिक भाषण पढ़ रहे हैं और उन पर समाजवादी पार्टी के विधायक कागज के गोले बना-बनाकर फेंक रहे हैं। कागज के गोलों से कहीं राज्यपाल जी को चोट नहीं लग जाए, इसीलिए सदन के मार्शल और उनके एडीसी वगैरह उन्हें घेरे हुए खड़े हैं।
गोले गिर रहे हैं और 82 साल के नाइक जी अपना भाषण मजे में पढ़े जा रहे हैं। ऐसा लग रहा था, जैसे हम किसी रोचक प्रहसन को मंचित होता देख रहे हैं। इस सुखद अनुभूति के लिए समाजवादी विधायकगण बधाई के पात्र हैं। उनके इस गरिमामय आचरण से उप्र की जनता अभिभूत हुए जा रही थी। आश्चर्य है कि उनके नेता अखिलेश यादव हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। उनके विधायकों ने उनकी अनुमति के बिना ही यह नौटंकी कर डाली क्या ?
उन्हें अब किसी नेता की जरुरत नहीं रही क्या ? वे सब अब खुदमुख्तार हो गए हैं, क्या ? अब से 50 साल पहले मैंने संसद में डा. लोहिया, मधु लिमए, किशन पटनायक, मनीराम बागड़ी और रामसेवक यादव को विरोध करते हुए देखा है। उनमें से कुछ को मार्शल द्वारा बाहर निकालते हुए भी देखा है। लोहिया के वे पांच-सात लोग ही काफी होते थे, 500 की संसद को हिलाने के लिए। उनका अड़ना, उनका लड़ना, उनके तथ्य, उनके तर्क, उनके तेवर और उनकी ललकार से इंदिरा गांधी- जैसी परम प्रतापी प्रधानमंत्री भी घबराई रहती थीं।
लोहिया के उन सांसदों के पास तर्क की तीर होते थे लेकिन अखिलेश-पार्टी के विधायकों के पास क्या है ? कागज के गोले हैं। जिसके पास जो है, वह वही तो फेंकेगा, मारेगा, उछालेगा। नेताओं पर लोग फूलों के गुच्छे बरसाते हैं, इन सपा विधायकों ने बुजुर्ग राज्यपालजी पर कागज के गोले बरसाए हैं। भाजपा के विधायक चुप बैठे रहे। उन्होंने जवाबी धींगामुश्ती नहीं की। उन्होंने अच्छा ही किया। समाजवादी विधायकगण जब खुद ही अपनी इज्जत लुटा रहे हों तो वे उनके मुंह क्यों लगें?
डा. वेद प्रताप वैदिक
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