Supreme Court में राज्यों द्वारा टीकाकरण अनिवार्य किए जाने के मामले में 31 जनवरी को होगी सुनवाई

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Supreme Court के चीफ जस्टिस एनवी रमना के सामने राज्यों द्वारा लोगों का टीकाकरण कराए जाने को अनिवार्य किए जाने के मामले को मेंशन करते हुए हुए कहा गया कि राज्यों के द्वारा टीकाकरण अनिवार्य किए जाने की वजह से टीकाकरण न करवाने वाले गरीबों को मुफ्त राशन जैसी सरकारी सुविधा से वंचित किया जा रहा है साथ ही कई लोगों को नौकरी से भी निकाला जा रहा है।

इस मामले में जानेमाने वकील प्रशांत भूषण से सारी बात सुनने के बाद Supreme Court के चीफ जस्टिस ने कहा की इस मामले पर वह 31 जनवरी को सुनवाई करेंगे। इस दौरान आप राज्यो को इस बात की सूचना दे दें।

Supreme Court ने कहा था, अगर टीकाकरण व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं, तो हम विचार करेंगे

मालूम हो कि इससे पहले 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोविड-19 टीकाकरण को अनिवार्य करने वाले राज्यों के आदेश अगर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं हैं, तो हम इस पर विचार करेंगे।

वहीं केंद्र सरकार ने Supreme Court में कहा था कि एक संवैधानिक अदालत होने के नाते उसे उन निहित स्वार्थी समूहों के प्रयासों को ध्यान में रखना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप टीके को लेकर हिचकिचाहट आ सकती है, जिससे देश बहुत मुश्किल से बाहर निकला है।

Supreme Court
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उस सुनवायी के दौरान Supreme Court में याचिकाकर्ता जैकब पुलियेल की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा था कि अब यह मुद्दा और गंभीर हो गया है क्योंकि तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने आदेश जारी किया है कि जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है वे अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकते।

Prashant Bhushan
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इसके साथ ही प्रशांत भूषण ने Supreme Court से यह भी कहा था कि दिल्ली सरकार ने भी इसी तरह का एक आदेश जारी किया है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी, जिसने टीके की दोनों खुराक नहीं ली है उसे काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाएगा जैसे वह वेतन के साथ छुट्टी पर है।

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https://youtu.be/iO-a08uc9rI