इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (21 दिसंबर) को एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर हैरानी जताई। मामला मथुरा और वृंदावन में यमुना किनारे बने आवासीय भवनों की संख्या को लेकर था। उच्च न्यायालय में जस्टिस अरुण टंडन और जस्टिस राजीव जोशी की खंडपीठ के सामने गुरुवार को हलफनामा देकर सरकार की तरफ से यह कहा गया कि मथुरा और वृंदावन में यमुना किनारे 11,034 आवासीय भवन हैं। इसी पर कोर्ट ने हैरानी जताई और इस संख्या को अविश्वसनीय बताया और कहा कि व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है।

सरकार की तरफ से पेश हुए एडवोकेट जनरल ने भी बेंच के सामने स्वीकार किया कि यह आंकड़ा विश्वसनीय नहीं है। उच्च न्यायालय ने हलफनामा में दी गई संख्या का हवाला देते हुए सरकार को नोटिस जारी किया और गलत जानकारी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर कार्रवाई नहीं होती है तो हाईकोर्ट गलत हलफनामा पेश करने के लिए मुख्य सचिव के खिलाफ आदोश पारित करेगा। पूरे मामले में उच्च न्यायालय ने 22 दिसंबर को रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है।  

पिछली सुनवाई के दौरान भी उच्च न्यायालय ने नगर आयुक्त के हलफनामे को संतोषजनक नहीं माना था और सही आंकड़े पेश करने को कहा था। कोर्ट ने यह बताने के लिए कहा था कि कितने मकान हैं जिनसे गंदा पानी निकलता है और यमुना में जाता है।

बता दें कि न्यायमूर्ति अरुण टंडन और न्यायमूर्ति राजीव जोशी की खंडपीठ मथुरा और वृंदावन में यमुना नदी में प्रदूषण को रोकने के लिए मधु मंगल शुक्ला की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि यमुना किनारे बने मकानों से गंदगी यमुना में जा रही है जिससे इसमें प्रदूषण बढ़ रहा है।

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