2 हजार, 500, 50 और 10 के नए नोट लाने के बाद अब सरकार 100 के नए नोट लाने की तैयारी में है। सूत्रों की मानें तो 100 के इस नए नोट पर एक ऐतिहासिक स्थल का चित्र हो सकता है जिसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है। चलिए हम आपको बताते हैं कि इस स्थान का धार्मिक महत्व क्या है।
हम बात कर रहे है रानी की बाव ऐतिहासिक स्थल की। यह गुजरात राज्य के पाटन जिले में स्थित है। इस मंदिर की नक्काशी और यहां लगी मूर्तियों की खूबसूरती न केवल मन मोह लेती है बल्कि अपने वैभवशाली इतिहास पर गर्व भी कराती है। साल 2001 में इस बावड़ी से 11वीं और 12वीं शताब्दी में बनी दो मूर्तियां चोरी कर ली गईं थी। इनमें एक मूर्ति गणपति की और दूसरी ब्रह्मा-ब्रह्माणि की थी। भारत की इस विरासत को यूनेस्को ने साल 2014 में विश्व विरासत की सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने इस बावड़ी को भारत में स्थित सभी बावड़ियों की रानी के खिताब से नवाजा है।
इस बावड़ी की लंबाई 64 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और गहराई 27 मीटर है। गुजराती भाषा में बावड़ी को बाव कहते हैं इसलिए इसे रानी की बाव कहा जाता है क्योंकि इस बावड़ी का निर्माण रानी उदयामति ने कराया था। रानी की इस बाव का निर्माण साल 1063 में किया गया था। इस बाव की दीवारों पर भगवान राम, वामनावतार, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि अवतार और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के चित्र अंकित हैं
सनातन धर्म में माना जाता है कि प्यासे को पानी पिलाना ही सबसे बड़ा पवित्र कर्म है। इसी कारण हमारे राजा-महाराज जगह-जगह राहगीरों के लिए बावड़ियों का निर्माण कराते थे। इस बावड़ी की दीवारों पर अंकित धार्मिक चित्र और नक्काशी इस बात का प्रतिनिधित्व करते हैं कि उस समय हमारे समाज में धर्म और कला के प्रति कितना समर्पण था। यह बावड़ी वास्तु के लिहाज से भी बहुत विकसित मानी जाती है।
रानी उदयामति सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी थीं। राजा की मृत्यु के बाद उन्होनें राजा की याद में इस बावड़ी का निर्माण कराया था। इस बावड़ी में कई स्तर की सीढ़ियां हैं और यह देखने में बेहद सुंदर लगती है। पहली नजर में इसे देखने पर, धरती में गढ़े किसी छोटे सुंदर महल का अहसास होता है।
जानकारी के मुताबिक, सरस्वती नदी के विलुप्त होने के बाद यह बाव उसके गाद से भर गई कई सदियों तक धरती में दबी रही। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम ने इसे खोजा। यह 7 मंजिला बावड़ी है और मारू-गुर्जर शैली का जीवंत साक्ष्य है और भारत में बावड़ियों के निर्माण की गाथा को दर्शाती है।