तमिलनाडु (Tamil Nadu) समेत दक्षिण भारत के कई हिस्सों में मशहुर सांड़ों पर काबू पाने का खेल जल्लीकट्टू (Jallikattu) और बैलगाड़ी दौड़ सांस्कृतिक अधिकार हैं या नहीं, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ जल्द ही फैसला सुनाएगी।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इससे पहले आठ दिसंबर को तमिलनाडु, कर्नाटक (Karnataka) और महाराष्ट्र (Maharashtra) जैसे राज्यों में जलीकट्टू (Bull-Taming Sport Jallikattu), कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
‘जल्लीकट्टू’ को ‘एरुथाझुवुथल’ के रूप में भी जाना जाता है। सांडों को वश में करने वाला यह खेल तमिलनाडु के अलावा कर्नाटक में पोंगल (Pongal) फसल उत्सव अवसर पर खेला जाता है।
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कौन-कौन से जज कर रहें है सुनवाई?
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच जिसमें जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रवि कुमार हैं, इस मामले की सुनवाई कर रही है।
क्या है पूरा Jallikattu मामला?
केंद्र सरकार ने वर्ष 2011 में बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल कर दिया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी पर प्रतिबंधित है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2011 में जारी की गई अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते हुए वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
इसके बाद एनिमल बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ए नागराजा और अन्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में दिए गए फैसले का पालन करने के लिए संबंधित राज्यों को निर्देश देने के लिए एक याचिका दायर की गई। लेकिन, 2017 में जब मामला लंबित था तभी पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 पारित किया गया था जिसमें जल्लीकट्टू को लेकर हरी झंडी दे दी गई थी। इसके बाद इस संशोधन अधिनियम को रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई रिट याचिकाओं को दाखिल किया गया था।
जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी की दौड़ की कोर्ट के आदेश के बावजूद मंजूरी देने के लिए तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने केंद्र सरकार के पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम कानून, 1960 (Prevention of Cruelty to Animals Act – 1960) में संशोधन किया था।
याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस रोहिंटन नरीमन की एक पीठ ने कहा कि जलीकट्टू के इर्द-गिर्द घूमती रिट याचिकाओं में संविधान (Constitution) की व्याख्या से जुड़े हुआ एक पर्याप्त प्रश्न शामिल हैं। इसके साथ-साथ रिट याचिकाओं में उठाए गए सवालों के अलावा अन्य चीजों को देखने के लिए इस मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि ‘हम विवाद का अंत चाहते हैं।‘ जिसके बाद वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहां यह मामला अज तक लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को इस मामले में यह तय करना है कि क्या तमिलनाडु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29(1) जो नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देता है के तहत अपने सांस्कृतिक अधिकार के रूप में जलीकट्टू का संरक्षण कर सकता है या नहीं?
क्या है जलीकट्टू?
जल्लीकट्टू लगभग 2,000 वर्ष पुराना एक खेल होने के साथ-साथ बैल मालिकों को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम भी है। जल्लीकट्टू एक हिंसक खेल है जिसमें ईनाम पाने के लिए बैल को नियंत्रण में करने की कोशिश करते हैं; लेकिन अगर इस मुकाबले में प्रतियोगी बैल जीत जाता है तो बैल के मालिक को पुरस्कार मिलता है। तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को बचा कर रखने का एक पारंपरिक तरीका भी माना जाता है।
कहां सबसे ज्यादा खेला जाता है?
जल्लीकट्टू को जल्लीकट्टू बेल्ट के नाम से प्रसिद्ध तमिलनाडु के पांच जिलों मदुरई, थेनी, पुदुक्कोट्टई, तिरुचिरापल्ली और डिंडीगुल में सबसे ज्यादा खेला जाता है।
कब खेला जाता है?
जल्लीकट्टू को फसल कटने के समय आने वाले तमिल त्योहार पोंगल (Pongal 2023) के दौरान जनवरी के दूसरे सप्ताह (15 से 18 जनवरी) में मनाया जाता है।
कौन-कौन सी सांड़ों की नस्लों का होता है प्रयोग?
तमिलनाडु में जल्लीकट्टू के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लोकप्रिय देशी मवेशी नस्लों में कंगायम, पुलिकुलम, उमबलाचेरी, बारगुर और मलाई मडु सबसे प्रमुख हैं। तमिलनाडु के कई जिलों में इन उन्नत नस्लों के मवेशियों को पालना बड़े सम्मान की बात मानी जाती है।
क्या है अन्य राज्यों में ऐसे खेलों को लेकर स्थिति?
तमिलनाडु में जल्लीकट्टू के अलावा कर्नाटक ने भी कंबाला नामक खेल को बचाने के लिये भी एक कानून पारित किया गया था। वहीं, 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तमिलनाडु और कर्नाटक को छोड़कर, जहां कहीं भी बैल को नियंत्रित या उनकी दौड़ का आयोजन अभी भी जारी था वहां प्रतिबंध के आदेश के बाद ऐसे खेल आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में बैन कर दिये थे।