ISRO ने आजादी के 75वीं वर्षगांठ से पहले लॉन्च किया सबसे छोटा राकेट SSLV-D1, जानें इसकी खासियत

SSLV-D1 छह मीटर रिजोल्यूशन वाला एक इन्फ्रारेड कैमरा भी लेकर जा रहा है। उस पर एक स्पेसकिड्ज इंडिया द्वारा संचालित सरकारी स्कूलों के 750 छात्रों द्वारा निर्मित आठ किलोग्राम का आजादी सैट सैटेलाइट भी है। इस योजना को आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर बनाया गया है।

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ISRO ने आजादी के 75वीं वर्षगाठ पर SSLV Satellite को सफलतापूर्वक किया लॉन्च, जानें इसकी खासियत
ISRO ने आजादी के 75वीं वर्षगाठ पर SSLV Satellite को सफलतापूर्वक किया लॉन्च, जानें इसकी खासियत

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज यानी रविवार को सुबह 9 बजकर 18 मिनट पर आजादी के 75वीं वर्षगांठ से पहले सबसे छोटे राकेट ‘स्माल सैटेलाइट लांच व्हीकल’(SSLV-D1) को लांच कर दिया है। इस मिशन को SSLV-D1/EOS-02 का नाम दिया गया है। इसरो के इस सबसे छोटे राकेट एसएसएलवी-D1 (SSLV-D1) को श्रीहरिकोटा (Sriharikota) से लॉन्च किया गया। यह राकेट 500 किलोग्राम से अधिकतम सामान ले जाने की क्षमता वाला राकेट एक ‘पृथ्वी अवलोकन उपग्रह-02’ (EOS-02) को लेकर जा रहा है, जिसे पहले ‘माइक्रोसेटेलाइट-2 ए‘ (‘Microsatellite-2A’) के नाम से जाना जाता था।

बता दें कि SSLV-D1 देश का सबसे छोटा राकेट है। 110 किलो वजनी SSLV तीन स्टेज का राकेट है जिसके सभी हिस्से सॉलिड स्टेज के हैं। इसे महज 72 घंटों में असेंबल किया जा सकता है, जबकि बाकी लॉन्च व्हीकल को करीब दो महीने लग जाते हैं। इसका वजन लगभग 142 किलोग्राम है।

बता दें कि SSLV-D1 छह मीटर रिजोल्यूशन वाला एक इन्फ्रारेड कैमरा भी लेकर जा रहा है। उस पर एक स्पेसकिड्ज इंडिया द्वारा संचालित सरकारी स्कूलों के 750 छात्रों द्वारा निर्मित आठ किलोग्राम का आजादी सैट सैटेलाइट भी है। इस योजना को आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आजादी के अमृत महोत्सव के तहत बनाया गया है।

दरअसल, इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया है कि SSLV-D1 ने सभी चरणों में इसका प्रदर्शन किया और सैटेलाइट को कक्षा में भी पहुंचा दिया। लेकिन, मिशन के अंतिम चरण में, कुछ डाटा की क्षति हो रही है जिससे सैटेलाइट से संपर्क टूट गया है।

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SSLV-D1

क्यों खास है SSLV-D1 मिशन?

यह देश का पहला स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। इससे पहले ऑर्बिट तक पहुंचने के लिए PSLV पर निर्भर थे। वहीं, बड़े मिशन जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट के लिए जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क 3 का इस्तेमाल किया जाता था। जहां पीएसएलवी को लॉन्च पैड तक लाने और असेंबल करने में दो-तीन महिनों का समय लगता है। इसे इस तरह बनाया गया है कि इसे कहीं से और कभी भी लॉन्च किया जा सकता है, फिर चाहे वो ट्रैक के पीछे लोड करना हो या फिर किसी मोबाइल लॉन्च व्हीकल पर या कोई भी तैयार किया लॉन्च पैड से इसे लॉन्च करना हो।

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क्यों खास है SSLV मिशन?

दरअसल, SSLV-D1 के आते ही लॉन्च के नंबर बढ़ेंगे, जिससे कमर्शियल मार्केट में भी भारत अपनी नई पहचान बनाएगा, साथ ही रिवेन्यू के लिहाज से भी काफी फायदा होगा। इससे माइक्रो, नैनो या कोई भी 500 किलो से कम वजनी सैटेलाइट भेजे जा सकेंगे। अब SSLV-D1, PSLV के मुकाबले सस्ता भी होगा और PSLV पर मौजूदा लोड को कम करेगा।

क्या है SSLV-D1 की डिटेल्स

S SSLV-D1 की खास बात यह है कि 10 किलो से 500 किलो के पेलोड को 500 किलोमीटर के प्लैनर ऑर्बिट तक ले जाने की क्षमता है।
PSLV की खास बात यह है कि 1750 किलो तक का पेलोड, सन सिंक्रोनस ऑर्बिट तक ले जाया सकता है।
GSLV की खास बात यह है कि जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट तक 2500 किलो वजनी पेलोड और लोअर अर्थ ऑर्बिट तक 5000 किलो तक पेलोड ले जाने की क्षमता है।
GSLV मार्क3, जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट तक 4000 किलो वजनी पेलोड और लोअर अर्थ ऑर्बिट तक 8,000 किलो तक पेलोड ले जा सकता है।

जानें इस सैटेलाइटन की डिटेल

EOS-02 इस मिशन का खास प्राथमिकिता यह है कि इस सैटेलाइट की नई तकनीक और इंफ्रारेड कैमरा से लैस है जो कि मैपिंग, फॉरेस्ट्री, एग्रीकल्चर, जियोलॉजी और हाइड्रोलॉजी जैसे क्षेत्र में काम करेगा। इसके अलावा यह डिफेंस सेक्टर के लिए इस्तेमाल में लिया जाएगा। ये स्टूडेंट्स स्पेस किड्स इंडिया से जुड़े हैं। इसमें 50 ग्राम वजनी कुल 75 अलग अलग पेलोड हैं।

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