भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर (Dr S Jaishankar) ने बुधवार को आस्ट्रिया (Austria) के ओआरएफ (ORF) को दिये साक्षात्कार में यूक्रेन (Ukraine) संकट के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि रूस (Russia) से सस्ता कच्चा तेल खरीद कर भारत (India) युद्ध (War) का लाभ उठा रहा है।
इसी साक्षात्कार में जयशंकर ने कहा कि रूसी कच्चे तेल (Russian Crude Oil) की कीमतें तय करने के पश्चिमी देशों के फैसले के बारे में कहा कि ये फैसला भारत के साथ विचार-विमर्श के बिना लिया गया था। जयशंकर ने आगे बोलते हुए कहा कि भारत उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता है, जो दूसरों द्वारा तय की जाती हों।
क्या है पूरा मामला?
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक साक्षात्कार में कहा है कि यूरोप ने फरवरी 2022 से भारत की तुलना में रूस से छह गुना कच्चे तेल और गैस का आयात (Import) किया है। उन्होंने कहा कि ‘यूरोप अपने आयात को आराम से कम कर रहा है, अगर 60,000 यूरो (प्रति व्यक्ति आय) पर, आप अपनी जनसंख्या के बारे में इतनी चिंता कर रहे हैं, तो मेरे यहां (भारत में) 2,000 अमेरिकी डॉलर की आय वाली आबादी है, जिसके लिए हमें भी ऊर्जा (Energy) की जरूरत है, और मैं इस स्थिति में नहीं हूं कि मैं तेल के लिए ऊंची कीमत चुका सकूं।‘ जयशंकर ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि अगर यह सिद्धांत की बात थी तो यूरोप (EU) ने 25 फरवरी को ही रूस से तेल और गैस खरीदना बंद क्यों नहीं किया।
आखिर रूस से क्यों तेल खरीद रहा है भारत?
भारत ने रूसी तेल (Russian Crude Oil) को तब खरीदना शुरू किया जब कई देशों ने रूस-यूक्रेन (Russia Ukraine War) के बीच जारी युद्ध के कारण रूस (Russia) पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया जिसके बाद रूस ने अपने URAL तेल पर के दामों में छूट देनी शुरू कर दी थी। हालांकि पश्चिमी देश ने भारत पर भी रूस से तेल न खरीदने को लेकर दबाव डाला था लेकिन भारत सरकार ने रूस के साथ अपने तेल व्यापार का यह कहते हुए बचाव किया कि वह तेल वहीं से लेगी जहां से ये सबसे सस्ता (Oil Price) मिलेगा।
आखिर Russia से कितना तेल खरीद रहा है भारत?
एनर्जी कार्गो ट्रैकर कंपनी वोर्टेक्सा के मुताबिक, दिसंबर में भारत में आयात होने वाला 25 फीसदी तेल रूस से आया था। रूस, दिसंबर 2022 में लगातार तीसरे महीने देश का भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बना रहा। दिसंबर 2022 में रूस ने भारत को हर दिन 1.17 मिलियन बैरल कच्चे तेल (एमबीडी) की आपूर्ति की, जो एक रिकॉर्ड है। यह नवंबर में रूस से आयात किये गये तेल की तुलना में 24 फीसदी अधिक था, इसके पिछे का सबसे बड़ा कारण निजी क्षेत्र के रिफाइनरों द्वारा किये जा रहे आयात में लगातार वृद्धि है।
सरकारी रिफाइनरों (IOC, BPCL, ONGC, HPCL) द्वारा रूसी कच्चे तेल का आयात लगभग 6,00,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) पर लगभग स्थिर रहा, लेकिन निजी क्षेत्र के रिफाइनरों द्वारा आयात लगभग 5,70,000 बैरल प्रति दिन तक बढ़ गया। भारत के कुल कच्चे आयात नवंबर से दिसंबर की अवधि में 7 फीसदी बढ़कर 4.6 मिलियन बीपीडी हो गया। भारत के इराक और यूएई से तेल आयात में मामूली गिरावट आई, जबकि सऊदी अरब से आयात में मामूली वृद्धि देखी गई है।
भारत को अमेरिकी कच्चे तेल का निर्यात लगभग 20 फीसदी गिर गया। वहीं दिसंबर में, भारत में समुद्र के रास्ते आने वाले रूसी कच्चे तेल का आयात चीन की तुलना में 50 फीसदी अधिक था और यूरोपीय संघ की तुलना में नौ गुना अधिक था क्योंकि रूस से आयात पर यूरोपीय संघ का प्रतिबंध 5 दिसंबर को लगाया गया था। पहली बार, भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात चीन से अधिक हो गया, जो दिसंबर में 27 फीसदी की गिरावट के साथ 7,70,000 बैरल प्रति दिन हो गया है।
भारत और चीन पर सबकी नजर, लेकिन क्यों?
G7 देशों द्वारा रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कैप लगाने के बाद से कहा जा रहा था कि इससे रूस का तेल निर्यात कम होगा, लेकिन ये भी माना जा रहा है कि, भारत और चीन जैसे दुनिया के दो बड़े बाजार रूस पर इस कदम के असर को कम कर रहें हैं। भारत और चीन दोनों ही रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं।
रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से पहले भारत रूस से एक फीसदी से भी कम तेल का आयात करता था जो दिसंबर 2022 में बढ़कर 35.10 लाख टन या आसान शब्दों में कहें तो लगभग 1.17 लाख बैरल प्रतिदिन हो गई, जो भारत की कुल तेल जरूरतों का लगभग 25 फीसदी थी।
G7 देशों द्वारा 5 दिसंबर को लगाई गई मूल्य सीमा भारत, चीन (China) और अन्य प्रमुख खरीदार जो रूस से सस्ती दरों पर तेल खरीद रहे हैं के लिए फायदेमंद होने की संभावना है। इस मूल्य सीमा के चलते इन देशों को रूस को किए जाने वाले भुगतान को कम करने का अवसर देगी।
भारत और Crude Oil?
भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी पिछले महीने ही 19 फीसदी से बढ़कर 23 फीसदी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, वहीं, भारत में आयात होने वाले मध्य पूर्व के तेल की हिस्सेदारी 59 फीसदी से घटकर 56.4 हो गई है। रूस के बाद इराक भारत का शीर्ष आपूर्तिकर्ता है इसके बाद सऊदी अरब तीसरे स्थान पर है।
हालांकि, भारतीय रिफाइनर पहले से ही मूल्य सीमा के नीचे या उसके पास रूसी तेल खरीद रहे हैं। इसलिए, जब कभी भी मूल्य सीमा लगाई जाएगी, भारत के तेल आयात पर इसका कोई खासा नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। लेकिन, हाल के महीनों में रूस ने कच्चे तेल पर छूट को सीमित कर दिया है, इसलिए भारत अब रूस से आने वाले तेल पर लगने वाले ज्यादा किराये की वजह से अफ्रीका और मध्य पूर्व की ओर रुख कर रहा है।
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कितना तेल मंगाता है भारत?
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और 2021-22 (वित्त वर्ष 2021-22) तक कच्चे तेल की अपनी कुल मांग का 85 फीसदी आयात से पूरा करता है। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119.2 बिलियन डॉलर हो गया। जो 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना है।
पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष के 196.5 मिलियन टन से ज्यादा है। भारत ने 2022 वित्तीय वर्ष में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी। इसी तरह, देश ने 2021-22 में आयातित 32 बिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी पर 11.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, वहीं पिछले वर्ष 33 बीसीएम गैस के आयात पर 7.9 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे।