मोदी सरकार अपने विदेश नीति में एक नई कूटनीति चाल चलने जा रही है। वह अगले साल होने वाले गणतंत्र दिवस के मौके पर आसियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित करेगा। इसके लिए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के सदस्यों- मलेशिया, लाओस, म्यांमार, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम से संपर्क किया जा रहा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन को घेरने के लिए यह भारत की एक नई कूटनीति चाल है। साथ ही यह पहली बार होगा कि इतने देशों के राष्ट्राध्यक्ष ‘रिपब्लिक डे परेड’ में शिरकत करेंगे।

गौरतलब है कि दक्षिण-चीन सागर विवाद के बाद आसियान देशों के संबंध चीन के साथ उतने मधुर नहीं हैं। बता दें कि वियतनाम, फिलिपिंस, मलेशिया और ब्रुनेई का चीन के साथ दक्षिण-चीन सागर को लेकर काफी समय से मतभेद चल रहा है। ऐसे में सिक्किम सीमा को लेकर हाल ही में चीन और भारत के बीच भी गतिरोध देखने को मिला है। इस कारण भारत की यह रणनीति कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। वहीं विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत और आसियान देशों के संबंधों को 25 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस मौके पर भारत में और आसियान देशों में स्थित उच्चायोग में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
ज्ञात दिला दें कि 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने लुक ईस्ट नीति को एक्ट ईस्ट नीति में बदल दिया था। भारत और आसियान ने मिलकर 2012 में आपसी संबंधों को और मजबूत करते हुए रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया था। केंद्र सरकार ने इस साझेदारी में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए रक्षा और सुरक्षा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की शुरुआत की थी। इस मुद्दे पर भारत को वियतनाम की ओर से पूरा सहयोग मिला है। दरअसल, एनडीए सरकार का जोर था कि भारत की नीति ज्यादा गतिशील होनी चाहिए और न केवल आसियान बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत को लेकर होनी चाहिए।

भारत-आसियान दिल्ली डॉयलॉग में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि भारत-आसियान एक भौगौलिक स्पेस को शेयर करते हैं। उन्होंने कहा कि ‘हमने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूती प्रदान करने की कोशिश की है’।

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