Happy Birthday Gulzar Sahab: गुलज़ार की शायरी रूह को छू लेती है..

Happy Birthday Gulzar Sahab: गुलजार द्वारा लिखी गई कई किताबें मसलन चौरस रात, एक बूँद चाँद ,रावी पार, रात पश्मीने की दर्शकों को खूब पसंद आयी। गुलज़ार को भारत सरकार द्वारा सन 2004 में कला के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिये “पद्म भूषण” से सम्मानित किया गया।

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Happy Birthday Gulzar Sahab
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Shweta Rai – जिस्म सौ बार जले तब भी वही मिट्टी है,रूह इक बार जलेगी तो वो कुंदन होगी ,रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है…। वाकई में अल्फाज़ों की ऐसी जादूगरी जिसमें एक तरफ जहाँ ठहराव है तो वहीं मुँह में मिस्री की डली सी घुलती मिठास भी है और ये मिठास गुलज़ार की है। सीधा-सीधा अल्फज़ों को पिरोना और फिर उसे गीतों में गढ़ना कोई आसान बात नहीं है और यही हुनर गीतकार,शायर गुलज़ार को दूसरों से अलहदा बनाता है। गुलज़ार के लिखे गानों के हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कई चाहने वाले हैं लेकिन कहते हैं कि बात तो तब मानी जाये जब उनके कद्रदान ख़ुद एक लीजेंड हो ।

जब वो युवा थे तब भी उनके कद्रदानों की कमी नहीं थी । खुद लता और एस.डी. बर्मन दा भी उनकी लेखनी के मुरीद हुआ करते थे और यही वजह थी की गुलजार के लिखे गीत को सुनकर ही लता जी और बर्मन दा का बरसों पुरना झगड़ा भी खत्म हो गया था । ऐसी कशिश है गुलजार और उनके अल्फाज़ों में….

गुलजार साहेब वो नायाब हीरा हैं जिसकी चमक से कोई अछूता नहीं है उनके लिखे गाने उस अनमोल नगीने की तरह हैं जिसकी कशिश सभी को अपनी ओर खींच लेती है । उनके लिखे गीतों का जादू ही था कि जिसकी तपिश ने संगीतकार एसडी बर्मन और गायिका लता मंगेशकर के रिश्तों पर पड़ी बर्फ़ को भी पिघला दिया ।

बात उस समय की है जब 60 के दशक में लता और सचिनदेव बर्मन के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा चल रहा था और लता ने बर्मन दा के लिये गाने से मना कर दिया था। लता मंगेशकर खुद मानती हैं कि “ गुलज़ार की शायरी बाकी शायरों से बिलकुल अलहदा है और यही नहीं उनके सोचने का ढंग भी बिलकुल जुदा है ।” गुलज़ार के लिखे लता के कई पसंदीदा गाने हैं लेकिन उनमें से एक गाना “नाम गुम जायेगा” उनके दिल के बेहद करीब था। लता खुद बताती हैं कि “बर्मन दादा के साथ मेरा झगड़ा चल रहा था। इस बीच एक दिन उनका फ़ोन आया कि एक नया लड़का आया है उसने फ़िल्म ‘बंदिनी’ के लिए गाना लिखा है ‘मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे’। मुझे ये गाना इतना पसंद आया कि मैंने गाने के लिए हाँ कर दी।”

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Happy Birthday Gulzar Sahab: शायरी ही उनका पहला प्यार है

जिंदगी को लम्हों में जीने वाले इस शायर की लेखनी का विस्तार इतना है कि जिसमें हर शख्स डूब जाना चाहता है उसने शब्दों को न केवल जिया बल्कि ऐसे पिरोया कि हर किसी की ज़िन्दगी के अहसासों को छूता चला गया। ऐसे हैं शायर, गीतकार, लेखक, डायलॉग राइटर और निर्देशक गुलज़ार साहेब, जिनकी शायरी ही उनका पहला प्यार है ।

Happy Birthday Gulzar Sahab: गुलज़ार, “वो लम्हें ही हैं,उसी में मुझे ज़िंदगी के आसार ज़्यादा नज़र आते हैं”…

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Happy Birthday Gulzar Sahab.

जब उन्होंने अपने करियर का पहला फ़िल्मी गीत ‘मोरा गोरा अंग लई ले’ लिखा तब वह हिन्दी फ़िल्मों में गाने लिखने को लेकर बहुत ज़्यादा खुश नहीं थे, लेकिन फिर एक के बाद एक उन्हें गाना लिखने का मौका मिलता गया और वो गाने लिखते चले गये। गुलज़ार ने अब तक ढेरों नज्में लिखी और उनकी लिखी नज़्मों ने लोकप्रियता की बुलंदियों को छुआ।
गुलजार कहते हैं कि “ज़िंदगी लम्हों को जोड़ कर बनाई जा सकती है, बरसों की नहीं होती, हासिल तो वो लम्हें ही हैं, उसी में मुझे ज़िंदगी के आसार ज़्यादा नज़र आते हैं बजाय कि किसी बड़े फ़लसफ़े के।” शायद इसीलिए ही गुलज़ार के जो दिल में है ,जो महसूस करते हैं वो लिख डालते हैं ,इसमें एहसास उनकी सोच से कहीं ज्यादा हैं जो कागज़ों पर शब्दें के अनमोल मोती बनकर निखरते हैं।

Happy Birthday Gulzar Sahab: जब शायर गुलज़ार को एक गैरेज में मैकेनिक बनना पड़ा

सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ़ गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त 1936 में दीना, झेलम ज़िला के, पंजाब प्रान्त यानि ब्रिटिश भारत में हुआ था, जोकि अब पाकिस्तान में है। गुलज़ार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं। इनके पिता माखन सिंह कालरा और माँ सुजान कौर थीं। जब गुलजार बहुत छोटे थे तभी उनकी माँ का इंतकाल हो गया था और देश के बंटवारे के बाद इनका परिवार पंजाब के अमृतसर में आकर बस गया और वहीं गुलज़ार साहब मुंबई चले आए।
 मुंबई आकर गुलज़ार ने एक गैरेज में बतौर मैकेनिक का काम करना शुरू कर दिया और खाली समय में शौकिया तौर पर शायरी भी लिखने लगे। इसके बाद उन्होंने गैरेज का काम छोड़ दिया और उस समय के हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्देशकों बिमल रॉय, हृषिकेश मुख़र्जी और हेमंत कुमार के सहायक के रूप में काम करने लगे।

उन्होंने बिमल रॉय की फ़िल्म बंदिनी से अपने करियर की शुरूआत की और “मोरा गोरा अंग ले ले”पहला गीत लिखा। जो बेहद हिट रहा। साल 1968 में उन्होंने हृषिकेश मुख़र्जी निर्देशित फिल्म “आशीर्वाद” के लिये संवाद लिखे।  इस फिल्म में अशोक कुमार मुख्य भूमिका में नज़र आये।इसके बाद उन्होंने आशीर्वाद ,आनंद,खामोशी जैसी कई फिल्मों के लिए संवाद और पटकथा लिखी। 1971 में गुलज़ार ने बतौर निर्देशक अपना सफर फिल्म “मेरे अपने” से शुरू किया। ये फिल्म तपन सिन्हा की बंगाली फिल्म “अपंजन” की रीमेक थी। फ़िल्म में अपने ज़माने की मशहूर अदाकारा मीना कुमारी ने आनंदी देवी की भूमिका निभाई, जो एक बूढ़ी विधवा का किरदार था । फिल्म क्रिटिक्स ने इस फिल्म को बेहद पसंद किया।

Happy Birthday Gulzar Sahab: मीना कुमारी ने अपनी नज्मों की ढाई सौ डायरियां गुलजार को दे दी…

 मीना कुमारी एक अदाकारा के साथ-साथ शायरा भी थीं ।उन्हें शायरी का बहुत शौक था। शायद यही वजह थी कि वो गुलज़ार के करीब आयीं। गुलज़ार साहब अकसर मीना कुमारी की गजलें, नज्म व शायरी सुना करते थे। जिस वक्त दोनों की दोस्ती फिल्म ‘बेनजीर’ के दौरान हुई थी उस समय उनके अपने पति कमाल अमरोही के साथ दूरियां बढ़ने लगीं थी। कमाल ने उन्हें कभी नहीं समझा। वहीं गुलजार उनके हर एक शब्द की तारीफ किया करते थे। शायद वो उनके अन्दर के दर्द को महसूस करने लगे थे।

एक समय ऐसा भी आया कि जब एक्ट्रेस गम्भीर बिमारी से जूझ रहीं थीं और उनके अपनों ने ही उनका साथ छोड़ दिया था । तब उन्होंने गुलज़ार के लिये फिल्म ‘मेरे अपने’ साइन की लेकिन वो उसे पूरा कर नहीं पा रही थी हालांकि उनके ही कहने पर एक्ट्रेस ने फिल्म को पूरा किया । मौत को गले लगाने से पहले मीना कुमारी अपनी गज़ल व नज्म की ढाई सौ डायरियां गीतकार गुलज़ार के नाम वसीयत कर गईं औऱ आज भी ये सभी डायरियां गुलजार साहब के पास मौजूद हैं। मीना के जाने के बाद गुलज़ार ने उनकी शायरी पब्लिश भी करवाई , जिसे लोगों का खूब प्यार मिला ।

Happy Birthday Gulzar Sahab: जब राखी की मुलाकात गुलज़ार से हुयी…

1971 में फ़िल्म ‘शर्मिली’ में राखी को गुलज़ार के साथ पहली बार बॉलीवुड फ़िल्मों में डबल रोल करने का मौका मिला और 15 मई, 1973 में मशहूर गीतकार गुलज़ार से राखी ने शादी कर ली। दोनों की एक बेटी मेघना गुलज़ार हैं। मेघना गुलज़ार माता-पिता के अलग होने के बाद अपने पिता गुलज़ार के साथ ही रहती हैं। मेघना इन दिनों बॉलीवुड की लोकप्रिय फ़िल्म निर्देशकों में भी गिनी जाती हैं।

Happy Birthday Gulzar Sahab: आखिर राखी और गुलज़ार क्यों अलग हुये..…

राखी ने विवाह के कुछ समय बाद ही पति गुलज़ार के घर को छोड़ दिया था, जिसकी वजह राखी का गुलज़ार को बिना बताए फ़िल्म ‘कभी-कभी’ में काम करना था और गुलज़ार नहीं चाहते थे कि राखी विवाह के बाद भी फ़िल्मों में काम करें। इस बात से नाराज़ होकर राखी ने गुलज़ार का घर हमेशा के लिये छोड़ दिया।

हालांकि दोनों ने अब तक एक-दूसरे से तलाक तो नहीं लिया, लेकिन अलग ज़रूर रहते हैं, जब दोनों अलग हुये तो उस समय उनकी बेटी मेघना की उम्र महज एक वर्ष थी। कहा तो ये भी जाता है कि गुलज़ार के व्यवहार की वजह से राखी ने अलग रहने का फैसला लिया था। उस समय राखी यश चोपड़ा से मिलीं जो कश्मीर में अपनी फिल्म ‘कभी-कभी’ के लिए लोकेशन ढूंढ़ने आए हुए थे। यश चोपड़ा चाहते थे कि राखी इस फिल्म में अभिनय करें । वो इसके लिए गुलज़ार से भी अनुमति मांगने को तैयार थे कि वे राखी को काम करने दें। लेकिन इसकी जरूरत नहीं हुई और राखी ने ख़ुद चलकर कहा कि वो उनकी फिल्म मे काम करेंगी ।

Happy Birthday Gulzar Sahab: फिल्म ‘आंधी’ ने राखी और गुलज़ार के रिश्तों में भी आंधी ला दी…

उस वक्त ये भी अफवाह फिल्म इंडस्ट्री में हो रही थी कि राखी औऱ गुलजार के अलग होने की वजह आपस में हुयी मारपीट है। गुलजार फिल्म ‘आंधी’ की लोकेशन की तलाश में कश्मीर गए हुये थे तो राखी को भी अपने साथ ले गए।कहते हैं कि जब फिल्म की पूरी यूनिट वहां पहुंची तो इसके उपल्क्षय में पार्टी रखी गई। इस पार्टी में अभिनेता संजीव कुमार भी आये हुये थे और संजीव कुमार ने ज्यादा शराब पी ली थी।

नशे की हालत में उन्होंने सुचित्रा सेन का हाथ पकड़ लिया । गुलजार को ये सब ठीक नहीं लगा तो उन्होंने सुचित्रा को वहां से निकाला और उन्हें कमरे तक पहुंचाया। राखी ने जब ये सब देखा तो उन्होंने गुलजार से सवाल किया कि “उन्हें अपनी पसंदीदा अभिनेत्री को कमरे तक छोड़कर कैसा लगा।“ कहते हैं कि गुलजार इस बात से काफी नाराज हो गए और उनकी राखी से बहस होने लगी। इसी गहमागहमी में गुलजार का हाथ राखी पर उठ गया। इसके बाद गुलज़ार ने राखी से माफी मांगी लेकिन वो ये बातें कभी भुला नहीं पाईं। लेकिन राखी ने हमेशा इससे बात से इन्कार किया है। 2013 में एक फिल्म मैगज़ीन में अपने एक इंटरव्यूह में राखी गुलज़ार ने खुद कहा है कि , “जब मैं अपना आपा खो देती हूं तो पुरुष भी कांपने लगते हैं।”

Happy Birthday Gulzar Sahab: गुलज़ार राखी को आज भी बेहतरीन साड़ियां गिफ्ट करते हैं…

राखी खुद कहती हैं कि वे और गुलज़ार इतने सहज हैं कि एक-दूसरे को लेकर जितने शादीशुदा दंपत्ति भी नहीं होते हैं जो साथ रहते हैं। वे हमेशा एक-दूसरे के लिए मौजूद हैं।एक इंटरव्यू में राखी कहती हैं कि , “गुलजार आज भी मुझे अपनी पत्नी की तरह ट्रीट करते हैं।अपने घर से मुझे फोन करते हैं और कहते हैं, मैंने चार दोस्तों को डिनर पर बुलाया है और घर पर कोई खाना नहीं है। तो जल्दी से कुछ झिंगा करी भेज दो और मैं भेजती हूँ। उनकी अन्य पसंदीदा चीज़ ख़ीर है और उन्हें मेरे हाथ की बहुत पसंद है।”
 राखी और गुलज़ार का रिश्ता दो ऐसे कलाकारों का है जिसे समझना आसान नहीं कई बार रिश्ते की संजीदगी और उसकी समझ बाकी लोगों के लिये आसान नहीं होती। यही वजह रही कि राखी और गुलज़ार आज भी अपने रिश्ते की उस गर्माहट को बनाये रखे हुये हैं जो शायद उनके रिश्तों को उस मुकाम पर ले आयी है जहाँ शब्द से ज़्यादा एहसास मायने रखते हैं।
राखी अपनी पुरानी बातें याद करते हुये बताती हैं कि “अलग होने के बाद भी हम दोनों किस तरह मिलते हैं।” उन्होंने एक किस्सा भी शेयर करते हुये कहती हैं कि “एक बार मेरे जन्मदिन पर मैं बोस्की के कमरे में कुछ कर रही थी कि अचानक देखती हूं कि गुलज़ार मेरे पीछे खड़े हैं। मैं चौंक गई, वो बोले, चलो-चलो क्या कर रहे हो ? कुछ खीर खिलाओ। बाद में मुझे पता चला कि बोस्की और उन्होंने गुप्त करार किया था कि मुझे सरप्राइज़ देंगे और मुझे खुश करेंगे।”
अपनी बेटी मेघना के बचपन से लेकर उसके बड़े होने तक दोनों ने सभी पलों को साथ शेयर किया । मतभेद, लड़ाईयाँ से लेकर खुशनुमा पलों को भी दोनों ने साथ जिया। गुलज़ार कहतें हैं कि “अगर ये साथ होना नहीं है,तो मुझे नहीं पता की साथ रहना किसे कहते हैं।”
गुलजार की बेटी मेघना ने उनकी बायोपिक ‘Because He Is’ लॉन्च की। गुलजार ने अपनी यादों को शेयर करते हुये कहा कि “इतने सालों से अपनी पत्नी से अलग रहने के बावजूद हम कभी अलग नहीं हो पाए।  आज भी जब मुझे राखी के हाथों की बनी मछली खाने की इच्छा होती है तो मैं उसे रिश्वत में एक साड़ी गिफ्ट कर देता हूं। मैं उन्हें हमेशा से ही बेहतरीन साड़ियां गिफ्ट करता आया हूं और अब भी करता हूँ।”

Happy Birthday Gulzaar Sahab: वो प्यार ही क्या, जिसमें एक-दूसरे से झगड़ा न हो

गुलज़ार साहेब ने अपनी खट्टी मीठी यादें शेयर करते हुये कहा कि “ अब भी हम दोनों की हर 2-3 घंटे में बहस हो जाती है। मुझे लगता है कि ये ठीक भी है। वो प्यार ही क्या, जिसमें एक-दूसरे से झगड़ा न हो। राखी का जो मन होता है वो करती हैं। मेरा जो मन होता है मैं वो करता हूं। सभी अच्छे दोस्त इसी तरह रहते हैं। सालों पहले हम जैसे थे अब भी वैसे ही हैं। मैंने उन्हें कभी किसी बात को लेकर ज्ञान नहीं दिया और उन्होंने मेरी मनोदशा को हमेशा समझा है।”गुलज़ार से अलग होने के बाद राखी अपने बंगले “मुक्ताआंगन” को छोड़कर मुम्बई के अपार्टमेन्ट में एक फ्लैट में रहने लगीं और इसके बाद 2015 में पनवेल में शिफ्ट हो गयीं।

Happy Birthday Gulzar Sahab: गुलज़ार हंसमुख इंसान हैं पर सबसे एक दूरी बनाकर चलते हैं…

गुलज़ार की शख़्सियत की तारीफ करते हुये एक इंटरव्यूह में शर्मिला टैगोर कहती हैं कि, “गुलज़ार जैसे दिखते हैं वैसे वे हैं नहीं। वो बहुत क़ायदा पसंद आदमी हैँ, हर वक़्त उनका ख़ौफ़ बना रहता था, समय के भी बड़े पाबंद हैं। अगर सेट पर कोई पांच मिनट भी लेट हो जाता तो वातावरण में अजीब सी ख़ामोशी छा जाती थी, हालांकि वो वैसे बड़े ही हंसमुख इंसान हैं पर सबसे एक दूरी बनाकर चलते हैं।”
गुलज़ार की लेखनी औऱ फिल्मों में बिमल दा की छाप साफ देखी जा सकती है ।बिमल रॉय के सहायक के तौर पर फ़िल्मी करियर शुरु करने वाले गुलज़ार खुद मानते हैं कि “मेरी फ़िल्मों में बिमल रॉय की छाप है, मैं ही नहीं बल्कि उनके साथ काम करने वाले सभी असिस्टेंट्स पर इसकी छाप दिखायी देती है। चाहे बासु भट्टाचार्य हों या हृषिकेश मुखर्जी … सभी ने अपनी फ़िल्मों में साहित्य को आधार बनाया है और मैंने भी वहीं से कहानियां ली हैं लेकिन चुनाव और इज़हार हर शख़्स का अपना अलग-अलग होता है।”

Happy Birthday Gulzar Sahab: आर.डी. बर्मन के मुफलिसी के समय भी गुलज़ार ने उनका साथ नहीं छोड़ा…

राजेश खन्ना ,आशा और किशोर कुमार की तिकड़ी पंचम की सबसे फेमस तिकड़ी थी। लेकिन कोई और भी था जो पंचम के लिये बेहद खास था और वह थी गुलजार साहब और पंचम दा की दोस्ती। दोनों ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक यादगार नगमों को दिया औऱ उस वक्त भी गुलज़ार ने पंचम का साथ दिया जब वो नये संगीतकारों की भीड़ में गुम से हो गये थे । 1980 के दशक की शुरूआत में बप्पी लाहिड़ी और अन्य संगीतकारों के आ जाने से पंचम दा को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

कई निर्माताओं ने उन्हें अपने फिल्मों में नहीं लिया और एक के बाद एक फ्लॉप फिल्मों की वजह से उन्हें काम मिलना बन्द हो गया था। नासिर हुसैन जिनकी फिल्म ‘तीसरी मंज़िल’ में पंचम दा ने हिट संगीत दिया था, उन्होंने भी अपनी फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में पंचम दा को नहीं लिया । 1986 में पंचम दा को गुलज़ार ने ‘इजाज़त’ फिल्म में संगीत देने का मौका दिया ,जो उनके सर्वश्रेष्ठ संगीत में से एक माना गया । हालांकि, यह फिल्म कला फिल्म यानि समानांतर सिनेमा शैली से संबंधित थी , इसलिए इसने पंचम दा के व्यावसायिक फिल्मी करियर के पतन को नहीं रोक पायी। इस फिल्म के सभी 4 गाने जिन्हें आशा जी ने गाया था और गुलज़ार ने लिखा था बेहद हिट रहे।
गुलज़ार और पंचम की दोस्ती इतनी गहरी थी कि गुलजार ने अपने दोस्त पंचम दा के दुनिया से जाने के बाद उनके लिए बाकयदा एक नज्म लिखी। जिसका संगीत गुलजार साहब के पसंदीदा संगीतकार विशाल भारद्वाज ने तैयार किया और आवाज दी भूपिंदर ने और वो गाना था, “बारिशों का दिन,पंचम याद है,जब पहाड़ी के नीचे वादी में धुंध से झांककर निकलती हुई केल की पटरियां गुज़रती थीं,धुंध में ऐसे लग रहे थे हम जैसे दो पौधे पास बैठे हों।“

Happy Birthday Gulzar Sahab: गुलजार अपने चाहने वालों और आलोचकों को हैरान कर देते हैं…

गुलजार की लेखनी कई बार उनके चाहने वालों और आलोचकों को हैरान कर देती है। 1972 में आयी संजीव कुमार और जया भादुड़ी अभिनीत फिल्म “कोशिश” एक ऐसी कहानी जो गूंगे बहरे दम्पति के जीवन पर आधारित है । आप जब भी इस फिल्म को देखते हैं तो आप गुलज़ार के एहसासों को पूरी कहानी में समेटते हुये देख सकते हैं ।जिसे दोनों कलाकारों ने अपने अभिनय से और अधिक जीवंत कर दिया।

संजीव कुमार को इस फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। संजीव कुमार के साथ गुलज़ार ने बेहतरीन फिल्में निर्देशित कीं । जिनमें  आंधी, मौसम,नमकीन,अंगूर जैसी फिल्में थीं।जो कमर्शियल सिनेमा से हटकर आपको एक नयी दुनिया की तरफ ले जाती है जिसकी कहानी और पात्र आपको अपने आसपास ही नज़र आ जायेंगे।
गुलज़ार के लिए बँटवारे की त्रासदी एक न भुलाने वाला एहसास है, बंटवारे का दर्द गुलज़ार की लेखनी का बहुत अहम हिस्सा रहा है क्योंकि बहुत ही कम उम्र में उन्होंने वो मंजर देखा जिसका असर ताउम्र उनकी ज़िंदगी पर पड़ा रहा। अमृता प्रीतम के उपन्यास पर बनी फिल्म “पिंजर” के गीतों में बंटवारे के दर्द को गुलज़ार ने बेहतरीन तरीके से अपनी कलम से लिखा।

Happy Birthday Gulzar Sahab: आधुनिक स्त्री के मन और सोच को गुलज़ार ने बारीकी से समझा…

पुराने और नये शायरों की बात की जाये तो गुलज़ार का अंदाज़ सबसे अलहदा था। जहाँ पर उन्होंने आधुनिक स्त्री के मन और सोच को बड़े बेबाकी से या यूँ कहें बेलौस होकर अपनी कलम से लिखा । याद करिये “खामोशी” फिल्म का वो गीत ‘हमने देखी है उन आंखों की महकती ख़ुशबू, हाथ से छूकर इसे रिश्तों के इल्ज़ाम न दो। जिसमें शायर आंखों की गहराई के बजाय उनमें ख़ुशबू ढूंढ रहा है तो वहीं अस्सी साल पर ‘दिल तो बच्चा है जी’ जैसे गाने लिखता है।ये सब गुलज़ार जैसे शायर के लिये ही मुमकिन है। गुलज़ार ने मिर्जा ग़ालिब की शायरी को अपने लेखन के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया।
वाइफ कहती हैं कि “अगर तुम राइटर न होते तो बड़े ही ऑर्डिनरी आदमी होते”…
गुलज़ार की सादगी इनकी शायरी और नज़्मों में खासतौर से देखने को मिलती है ।याद करिये इजाज़त फिल्म का वो गाना “मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है” जिसे आशा जी ने गाया था। इस पूरे गाने में आपको सादगी के साथ भावनाओं,एहसासों और कोमल स्त्री के मनोभावों को बड़ी खूबसूरती से उकेरा गया है । शायद यह कहना ग़लत नहीं होगा कि गुलज़ार ने स्त्री मन को सबसे अधिक महसूस किया और लोगों तो पहुँचाया भी और यही सादगी उनके लिबास में भी दिखती है ।हमेशा चौड़े पांयचे वाला सफ़ेद पायजामा , कुर्ता पहनने वाला यह शायर जिसके व्यक्तित्व में सादगी तो है ही और यही सादगी इनकी शायरी में भी नज़र आती है।वो चाहे कितने भी बड़े नामचीन शख़्सियत हो गये हैं लेकिन कभी ख़ुद को बड़ा नहीं बताया बल्कि खुद ही सार्वजनिक मंच पर वो कहते रहते हैं कि, “मेरी वाइफ कहती हैं कि अगर तुम राइटर न होते तो बड़े ही ऑर्डिनरी आदमी होते।”

Happy Birthday Gulzar Sahab:“मैं ग़ालिब की पेंशन खा रहा हूँ”…

गुलज़ार पास अपने हर एहसास को कहने का एक बड़ा ही नर्म लहज़ा है। अगर वो तल्ख़ भी हुये तो बड़े अदब और तहजीब के साथ अपनी बात कह देते हैं औऱ उनकी ये तल्खी चाहे किसी की लेखनी पर एक आलोचक के तौर पर भी हो, तो भी वह डांट मीठी सी लगती है। हिन्दी-उर्दू-बांग्ला-पंजाबी समेत कई भाषाएँ उनकी रगों में बहती हैं। जब वो कहते हैं कि “मैं ग़ालिब की पेंशन खा रहा हूँ।“ यहाँ तक कि अपने गुरू के लिये भी कहते हैं कि “मेरे उस्ताद शैलेंद्र जो कुर्सी छोड़ गए थे मैं उसके बगल में खड़ा हूँ लेकिन बैठने की हिम्मत नहीं होती।“ जो उनकी शख्सियत के उस पहलू को दिखाती हैं जहाँ गुलज़ार न केवल एक शायर या लेखक रहते हैं बल्कि एक शफ़्फ़ाफ़ ख्यालों वाले बेहतरीन इंसान नज़र आते हैं , जिसका दिल एक कोमल बच्चे जैसा है औऱ यही बात तब दिखायी देती है जब वो बच्चों की कहानियाँ लिखते हैं। ऐसा लगता है मानों खुद के बाल मन को टटोल रहे हों और जब फिल्में बनाते हैं तो उनका अक्स उनकी फिल्मों में साफ नज़र आता है।

बतौर निर्देशक उनकी प्रसिद्ध फ़िल्में मेरे अपने, परिचय, कोशिश, अचानक, खुशबू, आँधी, मौसम,किनारा, किताब, अंगूर, नमकीन, मीरा, इजाजत, लेकिन, लिबास, माचिस, हु तू तू रहीं।  जिसके ज़रिये वो आज भी हिन्दी सिनेमा में ग़ालिब, एसडी बर्मन, शैलेंद्र, बिमल रॉय की विरासत को आगे लिये जा रहे हैं ।
साल 2007 में उन्होंने हॉलीवुड फिल्म “स्लमडॉग मिलेनियर” का गाना जय हो लिखा और उन्हें इस फिल्म के लिये “ग्रैमी अवार्ड” से नवाजा गया। बड़े पर्दे के अलावा गुलज़ार ने छोटे पर्दे के लिए भी काफी कुछ लिखा है। जिनमे दूरदर्शन का शो “जंगल बुक” खास तौर से बच्चों की पहली पंसद रहा है ।

गुलजार द्वारा लिखी गई कई किताबें मसलन चौरस रात, एक बूँद चाँद ,रावी पार, रात पश्मीने की दर्शकों को खूब पसंद आयी। गुलज़ार को भारत सरकार द्वारा सन 2004 में कला के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिये “पद्म भूषण” से सम्मानित किया गया औऱ सन् 2013 में “दादा साहेब फालके” पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

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